शिमला/शैल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा प्रदेश के दो दिन के प्रवास पर थे। इस प्रवास में नड्डा ने एक पत्रकार वार्ता में प्रदेश की सुक्खू सरकार पर जमकर हमला बोला है। प्रदेश सरकार जब से सत्ता में आयी है तभी से पूर्व की जयराम सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती आ रही है। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति के लिये पूर्व सरकार को जिम्मेदार ठहराती आ रही है। केन्द्र सरकार पर भी यह आरोप लगाया जाता रहा है कि केन्द्र प्रदेश को वांच्छित वित्तीय सहयोग नहीं दे रहा है। नड्डा ने प्रदेश सरकार के आरोपों का केन्द्र द्वारा दी जा रही सहायता के आंकड़े जारी करते हुये जवाब दिया है। नड्डा ने आंकड़े जारी करते हुए प्रदेश सरकार पर नॉन परफॉरमिंग का आरोप लगाया है। इसके खुलासे में नड्डा ने बताया कि जब वह पहली बार केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री बने थे तब प्रदेश के लिये एक मेडिकल डिवाइस पार्क की 100 करोड़ों की योजना स्वीकृत करवाई थी और इसके लिये 25 करोड़ रुपए रिलीज भी कर दिये गये थे। लेकिन अब इस सरकार ने वह 25 करोड़ यह कहकर वापस कर दिये कि यह हमसे नहीं हो पायेगा। यह आरोप अपने में बहुत गंभीर है।
इस आरोप की गंभीरता को समझते हुये प्रदेश के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान और तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने जवाब देते हुए आरोप लगाया है कि इसमें 500 करोड़ की जमीन को 12 लाख में उद्योगपतियों को देने का प्रस्ताव था। इसलिये प्रदेश के हितों के साथ यह समझौता न करते हुये यह पैसा केन्द्र को वापस लौटा दिया गया। क्योंकि 100 करोड़ की सहायता के साथ ऐसी शर्तें जोड़ रखी गयी थी जो प्रदेश हित में नहीं थी। नड्डा जब पहली बार स्वास्थ्य मंत्री बने थे तब यह योजना प्रदेश के लिये स्वीकृत हुई थी। यह योजना प्रदेश हित में नहीं थी इसका खुलासा अब हुआ जब नड्डा ने सरकार पर हमला बोला। सुक्खू सरकार को भी सत्ता में आये दो वर्ष से अधिक का समय हो गया है लेकिन इस पर प्रदेश सरकार चुप रही। अब जब नड्डा ने नॉन परफॉरमिंग का आरोप लगाया तब प्रदेश सरकार ने यह खुलासा सामने रखा। संभव है नड्डा प्रदेश सरकार के आरोपों का जवाब अवश्य देंगे यदि आरोप लगाना केवल अदायगी नहीं है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा में राजनीतिक रिश्ते जिस तरह तलख हो उठे हैं उसके परिदृश्य में नड्डा और प्रदेश सरकार का यह एक दूसरे पर हमला बोलना गंभीर परिणामों का संकेत हो सकता है। क्योंकि नड्डा ने सुक्खू को स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार नहीं चला सकते हैं तो छोड़ दो। राष्ट्रीय संबंधों के परिपेक्ष में इस समय कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करना शायद भाजपा की राजनीतिक आवश्यकता होती जा रही है। हिमाचल में जिस तरह से एक पुराने मुद्दे को नये रूप में उठाया गया है और उसमें भी राष्ट्रीय अध्यक्ष की भागीदारी हो गई है उसके संकेत प्रदेश के लिये सुखद नजर नहीं आ रहे हैं।