Thursday, 18 September 2025
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क्या प्रदेश भाजपा में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है

  • संगठनात्मक चुनाव में भाजपायी बने कांग्रेसियों को नहीं मिली कोई बड़ी जिम्मेदारी क्यों?
  • सरकार के खिलाफ भाजपा के बड़े वर्ग की चुप्पी सवालों में
  • ई.डी. की अगली कारवाई पर लगी सबकी नज़रें
शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा में इन दिनों संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं। प्रदेश में भाजपा के 17 संगठनात्मक जिले हैं और 171 मण्डल हैं। भाजपा के 171 मण्डलों में से 141 के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। 30 मण्डलों के चुनाव लटक गये हैं। 17 में से 16 संगठनात्मक जिलों के चुनाव पूरे हो चुके हैं और ऊना जिले का चुनाव लटका है क्योंकि वहीं पर 50% मण्डलाध्यक्षों की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है। चुने गये जिला अध्यक्षों में छः राजपूत, नौ एस सी, दो एस टी, दो ब्राह्मण, दो व्यापारी और एक ओबीसी वर्ग से है। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 15 जनवरी के बाद होने की संभावना है। 30 मण्डलाध्यक्षों का चुनाव लटकने से यह संकेत और संदेश उभरा है कि भाजपा में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। यह संदेश उस समय ज्यादा मुखर होकर सामने आया था जब लोकसभा चुनाव में संघ को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने यह कहा था कि भाजपा को संघ की सहायता की आवश्यकता नहीं है। भाजपा को संघ की राजनीतिक इकाई के रूप में जाना जाता रहा है। आज संघ की 80 से ज्यादा देशों में इकाइयां हैं। 55000 से ज्यादा शाखाएं लगती हैं। 50 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तथा 200 से ज्यादा क्षेत्रीय प्रभाव वाली संघ की अनुषांगिक संगठन हैं। इतने बड़े आकार वाले संगठन को लेकर आयी राष्ट्रीय अध्यक्ष की टिप्पणी से हर प्रदेश में संघ भाजपा के रिश्तों को लेकर सवाल उठे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं इसलिए उनकी टिप्पणी का हिमाचल पर भी प्रभाव पढ़ना स्वभाविक है।
इस पृष्ठभूमि में यदि प्रदेश भाजपा पर नजर डालें तो यह सामने आता है कि जब जयराम के नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तब कई बार इन अटकलें का बाजार गर्म हुआ कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है। जयराम के विकल्प के रूप में कई नाम चर्चा में आये लेकिन परिवर्तन हो नहीं सका। इसी स्थिति में हिमाचल विधानसभा के चुनाव हो गये। मोदी और शाह के चुनाव प्रचार के बावजूद भाजपा चुनाव हार गयी। लेकिन जिस तरह के चुनाव परिणाम सामने आये उसमें हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। जबकि इस क्षेत्र से ही अनुराग ठाकुर और जगत प्रकाश नड्डा आते हैं। केवल जयराम के मण्डी में ही भाजपा शानदार जीत हासिल कर पायी। इन्हीं चुनाव परिणामों के कारण इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिमाचल को स्थान नहीं मिल पाया। जगत प्रकाश नड्डा क्योंकि गुजरात से राज्यसभा आये हैं इसलिये उन्हें हिमाचल के कोटे से नहीं माना जा रहा है। इसी से यहां संकेत भी उभरे हैं की हिमाचल भाजपा भी खेमे में बंटी हुई है। लेकिन इसी भाजपा ने प्रदेश की कांग्रेस में सेंधमारी करके पहले कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हर्ष महाजन को अपने में मिलाया। उसके बाद हर्ष महाजन को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया। हर्ष महाजन की उम्मीदवारी पर कांग्रेस के छः विधायक तथा तीनों ही निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गये। इस दल बदल के बाद प्रदेश की राजनीति में जो कुछ घटा है उसने हर आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।
क्योंकि इस दल बदल को कांग्रेस ने ऑपरेशन लोटस की संज्ञा दी। इसमें धन बल के प्रयोग का आरोप लगाकर बालूगंज थाना में एफ आई आर तक दर्ज की गई। दूसरी ओर दल बदल कर गये कांग्रेस के नेताओं ने मुख्यमंत्री को घेरना शुरू कर दिया। उच्च न्यायालय में मानहानि के मामले दायर हुये। इन्हीं कांग्रेसियों की आक्रामकता का परिणाम हमीरपुर और नादौन में ई.डी. और आयकर की छापेमारी मानी जा रही है। जिसमें दो लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और दो फरार कहे जा रहे हैं। अब इसी प्रकरण में युद्ध चन्द बैंस शामिल हो गये हैं। बैंस ने दावा किया है कि ई.डी में वही शिकायतकर्ता हैं। विजिलैन्स द्वारा बैंस के खिलाफ दायर की गई एफ.आई.आर. से भी बैंस के दावे को बल मिलता है। लेकिन ई.डी. की छापेमारी और दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद भाजपा की आक्रामकता बहुत कुन्द हो गई है। जयराम के अलावा भाजपा के दूसरे नेताओं की चुप्पी अब सवालों में आ गई है। जबकि भाजपा नेताओं ने ही 2017 में हमीरपुर में पत्रकार वार्ताएं आयोजित करके तब सुक्खू के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खोला था। यही नहीं बीजेपी में गये कांग्रेसियों की भी जो आक्रामकता एक समय थी उसमें भी बहुत बदलाव आ गया है। जिस तरह धन बल के आरोप को लेकर दर्ज मामले में सरकार की पुलिस की आक्रामकता थी उसमें भी जैसे-जैसे कमी आती रही है उसी अनुपात में दूसरी ओर भी चुप्पी चल रही है।
इस परिदृश्य में यह सवाल खड़ा होने लगा है कि भाजपा में निश्चित रूप से एक अघोषित खेमेबाजी चल पड़ी है। माना जा रहा है कि भाजपा में जगत प्रकाश नड्डा और अनुराग ठाकुर भी जयराम के साथ प्रदेश नेतृत्व की रेस में शामिल हो गये हैं। भाजपा में उभरी इस अघोषित खेमेबाजी का सुक्खू सरकार को अपरोक्ष में कितना लाभ मिलता है और इसमें भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों को क्या हासिल होता है इस पर अभी से सब की नजरें लग गई हैं। क्योंकि इस समय हो रहे संगठन के चुनाव में इन नये भाजपाइयों की कोई बड़ी सक्रियता सामने नहीं आयी है। इससे सभी लोग अपने-अपने तरीके से ई.डी. और सीबीआई की अगली कारवाई की प्रतीक्षा में आ गये हैं। माना जा रहा है की सुक्खू प्रशासन में बैठे भाजपा के हितैशियों ने अब सरकार के खिलाफ अपने तरीके से रणनीति बनाकर उतरने की योजना तैयार कर ली है और कभी भी 1990 की तर्ज पर एक बड़ा कर्मचारी आन्दोलन देखने को मिल सकता है।

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