Thursday, 18 September 2025
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यदि मुख्य संसदीय सचिवों को बाहर का रास्ता देखना पड़ा तो भाजपा के नौ लोग भी बाहर जाएंगे

  • चुनाव आचार संहिता के चलते देहरा को मिला पुलिस जिला और लोक निर्माण विभाग का अधीक्षण अभियंता कार्यालय
  • कमलेश ठाकुर के चुनावी शपथ पत्र पर होशियार सिंह ने उठाये सवाल एसडीएम को दी शिकायत
शिमला/शैल। लोकसभा चुनाव से लेकर अब इन उपचुनाव तक विपक्ष और सत्ता पक्ष में सरकार के गिरने को लेकर जो दावों प्रतिदावों का खेल चल रहा है वह अब मुख्य संसदीय सचिवों और भाजपा के नौ विधायकों के संभावित निष्कासन तक पहुंच गया है। मुख्य संसदीय सचिवों का मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है। यह मामला उच्च न्यायालय में इस आधार पर पहुंचा है कि संसद में हुये 91वें संविधान संशोधन में हर सरकार में केंद्र से लेकर राज्यों तक मंत्रियों की संख्या 15प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। इस संशोधन के मुताबिक हिमाचल में मंत्रियों की संख्या बारह ही हो सकती है। लेकिन इस संशोधन के प्रभाव को कम करने के लिये राज्यों की कई सरकारों ने अपने-अपने एक्ट पास करके संसदीय सचिवों के पद सृजित कर रखे हैं जो व्यवहारिक तौर पर मंत्रियों के ही समक्ष प्रभावशाली हो गये हैं। हिमाचल में स्व. वीरभद्र सिंह के शासनकाल में मुख्य संसदीय सचिवों और संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की गई थी। इन नियुक्तियों को सिटीजन प्रोटेक्शन फॉरम के अध्यक्ष देशबंधु सूद ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक करार दिया और यह लोग हट गये। उसके बाद सरकार ने इस मामले की अपील सर्वाेच्च न्यायालय में दायर कर दी और साथ ही इस आश्य का नया कानून भी पारित कर दिया। प्रदेश के कानून को उच्च न्यायालय में चुनौती मिली हुई है जिस पर फैसला संभावित है। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल की अपील असम के मामले के साथ संबंद्ध हो गई और फैसला आ गया कि राज्य विधायिका इस तरह का कानून पारित करने के लिये सक्षम ही नहीं है। इस पृष्ठभूमि में यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है और कभी भी फैसला आ सकता है। भाजपा इस मामले को ऐसे प्रचारित कर रही है की मुख्य संसदीय सचिवों को संभावित फैसले में सदन से बाहर होना पड़ेगा। बाहर होने की स्थिति में इनके संस्थानों पर भी उपचुनाव की नौबत आ जायेगी। लेकिन यह सब उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करेगा। परन्तु इस संभावना का जवाब सरकार की ओर से इस तर्ज पर दिया जा रहा है कि यदि ऐसा हुआ तो भाजपा के नौ विधायकों के खिलाफ भी निष्कासन की कार्यवाही को अंजाम दे दिया जायेगा। स्मरणीय है कि राज्यसभा का चुनाव हार जाने के बाद ही कांग्रेस के बागियों को सदन से बाहर किया गया था। उसी के प्रतिफल के रूप में निर्दलीयों के स्थान पर अब उप चुनाव हो रहे हैं। उसी चुनाव के दौरान भाजपा विधायकों पर असंसदीय आचरण का आरोप लगा और इस मामले में कारवाई विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित है। ऐसा लगता है कि यदि मुख्य संसदीय सचिवों को सदन से बाहर जाना पड़ा तो भाजपा के लोगों के खिलाफ चल रहे मामले में भी उनको बाहर का रास्ता दिखाकर उनके स्थानों पर भी उपचुनाव की नौबत आ जायेगी। यह स्पष्ट संकेत दिया जा रहा है कि यदि संसदीय सचिवों को बाहर जाने की नौबत आयी तो भाजपा के नौ लोगों को भी बाहर कर दिया जायेगा। आज प्रदेश की राजनीति इस मुकाम पर पहुंच चुकी है।
देहरा में उपचुनाव हो रहा है और आदर्श आचार संहिता लागू है। आचार संहिता के चलते मंत्रिपरिषद द्वारा देहरा को पुलिस जिला बनाने का फैसला जाना और लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता का कार्यालय खोलने का फैसला लेना आचार संहिता की अहवेलना है लेकिन इन फैसलों पर भाजपा की ओर से कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है। केवल चुनाव आयोग को शिकायत भेजने की औपचारिकता निभाकर शांत होकर बैठ गये हैं यही नहीं देहरा से कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की पत्नी कमलेश ठाकुर को चुनाव में उतारा है। चुनाव में कमलेश ठाकुर द्वारा दायर किये गये शपथ पत्र पर भाजपा प्रत्याशी होशियार सिंह ने कुछ एतराज उठाते हुए इस संबंध में सबंद्ध अधिकारी के पास शिकायत दर्ज करवाई है। लेकिन इस शिकायत के तथ्यों पर भाजपा द्वारा कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की गई है। देहरा में भाजपा को रैली की अनुमति देकर बाद में उसे रद्द कर दिया गया। भाजपा ने इसकी शिकायत चुनावआयोग को करके एसडीएम देहरा के तुरंत स्थानांतरण की मांग की थी। लेकिन शिकायत की औपचारिकता निभा कर चुप बैठ जाना एक अलग ही कहानी बयां करता है। इस परिदृश्य में मुख्य संसदीय सचिवों और भाजपा के नौ विधायकों के खिलाफ कारवाई की चर्चाएं केवल जनता का ध्यान आकर्षित करने की औपचारिकता से अधिक कुछ भी नहीं माना जा रहा है मुख्यमंत्री की पत्नी के प्रत्याशी होने के कारण देहरा का वातावरण ऊपर से जितना शान्त दिखाई दे रहा है अंदर से उतना ही विस्फोटक होने की कगार पर पहुंच रहा है

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