शिमला/शैल। राज्यसभा में हारने के बाद सरकार सदन के पटल पर गिरने के कगार पर पहुंच गयी थी। इसलिये 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव के बाद बजट का पारण 29 तारीख को होना था और 28 फरवरी को कटौती प्रस्तावों के दौरान सरकार गिरने की संभावना बलवती हो गयी थी। इससे बचने के लिये 28 फरवरी को भाजपा के 15 विधायकों को निलंबित करके उसी दिन बजट पास करवाकर सत्रावसान कर दिया गया। इसी के साथ 28 फरवरी को ही कांग्रेस के छः बागियों की दल बदल कानून के तहत सदन से सदस्यता समाप्त कर दी गयी। ऐसा करने से कांग्रेस की संख्या 34 रह गयी और विधानसभा की सीटें भी 62 रह गयी। ऐसे में 62 के सदन में जहां कांग्रेस की संख्या 34 रह गयी वहीं पर भाजपा के पास 25 और 3 निर्दलीयों के साथ सरकार के विरोधियों की संख्या 28 हो गयी। ऐसे में न्यायालय में कांग्रेस के छः निष्कासितों को राहत मिल जाती है तो फिर 68 के सदन में कांग्रेस और विरोधी 34-34 पर पहुंच जाते हैं। लेकिन सरकार चलाने के लिए 35 का आंकड़ा चाहिये। इस गणित में कांग्रेस अल्पमत में आ जाती है।
इस स्थिति से बचने के लिये अब भाजपा के भी सात विधायकों को विशेषाधिकार हनन के तहत नोटिस जारी करके उनकी भी सदस्यता रद्द करने की चाल चल दी गयी है। इसी के साथ फील्ड में कांग्रेस के बागियों और तीन निर्दलीयों को खिलाफ रोष प्रदर्शन उनके होर्डिंग पर कालिख पोतने आदि की गतिविधियां शुरू हो गयी हैं। भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिंदल ने तो यहां तक आरोप लगाया है इन नौ विधायकों के खिलाफ पुलिस और प्रशासन का डंडा चलाने का काम शुरू हो गया है। उनके घरों पर छापे मारना उनके बिजनेस आउटलेट्स पर छापे मारने का काम शुरू हो गया है। उनके घरों के रास्ते रोकना उनको डराना धमकाना उनसे जुड़े लोगों पर कारवाइयां करके प्रदेश में भय का वातावरण पैदा किया जा रहा है। बिंदल और जयराम ने इसकी घोर निंदा करके सरकार पर आरोप लगाया है कि सुक्खू सरकार अल्पमत में आने के कारण इस तरह के हथकण्डों पर उतर आयी है। भाजपा नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि यह सब सहन नहीं किया जायेगा।
विश्लेषको के मुतबिक जो कुछ प्रदेश में घट रहा है ऐसा कभी नहीं हुआ है। यदि यह स्थिति ऐसे ही बढ़ती रही तो इसका अंतिम परिणाम राष्ट्रपति शासन ही होगा। क्योंकि जिस तरह से विधानसभा अध्यक्षों का आचरण विभिन्न राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है तो हिमाचल को भी उसी गिनती में शामिल होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।