Friday, 19 September 2025
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क्या आने वाला बजट यह जवाब देगा की प्रतिमाह 1000 करोड़ का कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है

  • जब वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा ही 6170 करोड़ का था तो 3 माह में 6700 करोड़ का कर्ज क्यों लिया गया
  • जब अनुपूरक मांगों में बजट का आकार ही 4836 करोड़ बढ़ा है तो इतना कर्ज क्यों?
  • क्या कर्मचारियों की पैन्शन में 20% की कटौती का प्रस्ताव व्यवहारिक होगा?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार अपना दूसरा बजट पेश करने जा रही है। यह बजट चुनावी वर्ष में आ रहा है। क्योंकि लोकसभा इसी वर्ष मई तक होने हैं। यह चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं। यह संभावना बनी हुई है। फिर सत्ता संभालते ही इस सरकार ने प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति का जिक्र करते हुये प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे हो जाने की चेतावनी भी दी थी। सुक्खू सरकार ने 2022 में दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में सत्ता संभाली थी। ऐसे में 31 मार्च 2023 तक की इस सरकार को पूर्व सरकार द्वारा पारित बजट के अनुसार ही कार्य करना था। पूर्व सरकार ने विधानसभा के चुनावी वर्ष के परिदृश्य में बजट के अन्दर घोषित कौन-कौन सी योजनाओं में आवंटित बजट से अधिक या कम खर्च किया है। इसका लेखा-जोखा 2023-24 के बजट सत्र में पिछले वर्ष की अनुपूरक मांगों के रूप में आना था और यह सरकार 13141.07 करोड़ की अनुपूरक मांगे लेकर सदन में आयी थी। स्मरणीय है कि वर्ष 2022-23 के लिये 51364.76 करोड़ का बजट सदन से पारित हुआ था। जब इस वर्ष के लिये 13141.07 करोड़ की अनुपूरक मांगे रखी गयी तो बजट के कुल आकार में केवल 4836 करोड़ की ही बढ़ौतरी हुई। इस बढ़ौतरी का अर्थ था कि वित्त वर्ष 2022-23 की बजट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सुक्खू सरकार को केवल 4836 करोड़ का ही प्रबन्ध करना था। लेकिन सुक्खू द्वारा लिये गये कर्ज के आंकड़े भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने आरटीआई से जानकारी जुटा कर जारी किये हैं। उनके मुताबिक 31 मार्च 2023 तक सरकार ने 6700 करोड़ का कर्ज लिया है। जबकि इस सरकार ने सत्ता संभालते ही पूर्व सरकार द्वारा अंतिम छः माह में लिये गये फैसलों को पलटते हुये करीब 1000 संस्थाओं और कार्यालय को बंन्द कर दिया था। मंत्रिमंडल में मंत्रियों के तीन पद खाली रखे थे। 31 मार्च 2023 तक इस सरकार ने कोई भर्तीयां भी नहीं की है। फिर मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने बजट भाषण में स्वयं स्वीकारा है कि वर्ष 2022-23 का राजकोषीय घाटा 6170 करोड़ था। ऐसे यह सवाल खड़ा होता है कि अनुपूरक मांगों से बजट का आकार केवल 4836 करोड़ बड़ा है और राजकोषीय घाटा 6170 करोड़ ही रहा है तो फिर वर्ष 2022-23 के लिये इस सरकार को 6700 करोड़ का कर्ज क्यों लेना पड़ा। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस सरकार ने डीजल पर वेट बढ़ाने का फैसला संस्थान बन्द करने के फैसले के साथ ही लिया था। इसके बाद बिजली और पानी के रेट भी 31 मार्च 2023 से पहले ही बढ़ायें हैं। कर्मचारियों के लिये ओ.पी.एस लागू करने के फैसले का मार्च 2023 तक सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा है। इसलिए मार्च 2023 तक 6700 करोड़ का कर्ज क्यों लिया गया और कहां खर्च किया गया यह सवाल इन लोकसभा चुनावों में पूरी मुखरता के साथ पूछा ही जायेगा। क्योंकि कर्ज का भुगतान आम आदमी से उठाये गये करों से ही किया जाता है। सुक्खू सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जो कर्ज ले रखा है उसकी भरपाई भी आम आदमी से लिये गये टैक्स से होती है। फिर अभी यह भी सामने आ गया है कि सरकार इस बजट में पैशन में 20% की कटौती करने जा रही है। यह खुलासा नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने प्रदेश के सामने रखा है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने व्यवस्था परिवर्तन के प्रयोग के बाद अब प्रदेश को आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि देश का अग्रणी राज्य भी अगले विधानसभा चुनावों तक बनाने की घोषणा की है। ऐसे दावों के परिदृश्य में भी यह सवाल पूछना आवश्यक हो जाता है कि यह कर्ज खर्च कहां किया जा रहा है और प्रतिमाह एक हजार करोड़ का कर्ज लेने की नौबत क्यों आयी है। क्या आने वाला बजट यह जवाब देगा की प्रतिमाह 1000 करोड़ का कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है।


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