शिमला/शैल। क्या कांग्रेस हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु की धर्मपत्नी श्रीमती कमलेश ठाकुर को प्रत्याशी बनाने जा रही है। यह चर्चा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह के उस ब्यान के बाद सामने आयी है जिसमें उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री ने हमीरपुर से उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की बेटी डॉ.आस्था का नाम सुझाया है और उपमुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर का नाम प्रपोज किया है। सूत्रों के मुताबिक यह दोनों हाईकमान के संज्ञान में आ चुके हैं। स्मरणीय है कि हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस एक लम्बे अरसे से हारती चली आ रही है। इस समय संयोग वश मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से ही आते हैं। फिर विधानसभा चुनावों में हमीरपुर जिले में भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पायी है। सत्रह विधानसभा क्षेत्रों पर आधारित इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के पांच ही विधायक हैं। कांग्रेस के पास ग्यारह और दो निर्लदलीय हैं। इस गणित में कांग्रेस के लिये सबसे आसान क्षेत्र हमीरपुर ही माना जा रहा है। मुकेश अग्निहोत्री की पत्नी के अचानक निधन से उस परिवार का सारा गणित बिगड़ गया है। इसलिये ऐसी परिस्थितियों में उस परिवार पर लोकसभा लड़ने की जिम्मेदारी डालना जायज नहीं माना जायेगा।
फिर हमीरपुर क्षेत्र से भाजपा के दो शीर्ष नेता ताल्लुक रखते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा बिलासपुर से ताल्लुक रखते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर यहां से सांसद हैं। भाजपा की ओर से अनुराग या नड्डा में से ही कोई यहां से चुनाव लड़ेगा यह तय है। ऐसे में भाजपा के इन दिग्गजों के मुकाबले में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी से बेहतर और कोई उम्मीदवार हो नहीं सकता। कमलेश ठाकुर नादौन विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय भी हो गयी हैं। बल्कि नादौन विधानसभा क्षेत्र का संचालन मुख्यमंत्री ने श्रीमती कमलेश ठाकुर को ही सौंप रखा है। स्थानीय रेस्ट हाउस सेरा उनकी गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है और यहीं से वह स्थानीय प्रशासन को निर्देशित करती हैं। इसलिये वर्तमान परिदृश्य में यदि कमलेश ठाकुर को कांग्रेस हमीरपुर से उम्मीदवार बनाती है और वह जीत जाती हैं तो मुख्यमंत्री के लिये इससे बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकती।
हिमाचल के कांग्रेस संगठन और सरकार में किस तरह का तालमेल चला हुआ है यह प्रतिभा सिंह और राजेन्द्र राणा तथा अन्य नेताओं के ब्यानों से सामने आ चुका है। इस सब की जानकारी कांग्रेस हाईकमान को भी हो चुकी है। सरकार की एक वर्ष की उपलब्धियां क्या हैं इसकी व्यवहारिक परीक्षा इन लोकसभा चुनाव में हो जायेगी। अभी बजट सत्र होने जा रहा है उसमें वित्तीय प्रबन्धन का खुलासा सामने आ जायेगा। सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन का जो प्रयोग शुरू कर रखा है उसके कितने सार्थक परिणाम जनता तक पहुंचे हैं इसका भी खुलासा यह चुनाव कर देंगे। क्योंकि सरकार की हर कारगुजारी की परीक्षा चुनाव परिणाम होते हैं। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जो स्थिति बनती जा रही है उसके परिदृश्य में कांग्रेस शासित राज्यों से हाईकमान को पूरी-पूरी सीटें जीतने की अपेक्षा होगी। उस गणित में प्रदेश सरकार और संगठन दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। क्योंकि एक वर्ष में सरकार बेरोजगार युवाओं को कुछ विशेष नहीं दे पायी है। विपक्ष और अन्य वर्गों ने जो भी सवाल एक वर्ष में उछाले हैं उनका जवाब चुनावों में व्यवस्था परिवर्तन नहीं बन पायेगा। जो परिस्थितियां इस समय बनी हुयी है उनमें विश्लेषकों के अनुसार कमलेश ठाकुर का नाम सामने लाकर मुख्यमंत्री के विरोधियों ने एक तीर से कई निशाने साधने का काम किया है क्योंकि संगठन के सक्रिय सहयोग के बिना चुनावों में सफलता कठिन हो जाती है। कर्मचारियों के कई वर्ग सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं। आम जनता को कोई राहत यह सरकार दे नहीं पायी है। केवल केन्द्र पर असहयोग के आरोप के सहारे चुनावी सफलता संभव नहीं लगती। क्योंकि सरकार ने अपने खर्चों पर कोई लगाम नही लगायी है। इस वस्तुस्थिति में मुख्यमंत्री के लिये कमलेश ठाकुर के नाम का अनुमोदन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।