शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश एक कठिन वित्तीय स्थिति से गुजर रहा है यह चेतावनी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु ने प्रदेश की सत्ता संभालते ही जनता को दे दी थी। यह दूसरी बात है की जयराम सरकार के समय जब वह विधायक थे तब उन्हें इस स्थिति का अन्दाजा नहीं हो पाया था। यहां तक कि जब कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिये दस गारंटियां प्रदेश की जनता को दी थी तब भी ऐसी वित्तीय स्थिति का कोई इंगित तक नहीं हो पाया था। इस कठिन वित्तीय स्थिति के नाम पर ही प्रदेश में सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाये गये। संवैधानिक प्रावधान न होते हुये भी प्रदेश में छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की गयी और उन्हें महंगी गाड़ियों से नवाजा गया। इसी वित्तीय स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिये हजारों आउटसोर्स कर्मियों को सेवा से निकला गया। ऐसे दर्जनों फैसले हैं जो कठिन वित्तीय स्थिति के नाम पर जनता पर लादे गये हैं। कई गैर विधायकों को ताजपोशीयों से नवाजा गया है। कठिन वित्तीय स्थिति के परिदृश्य में ही जनता गारंटीयों की मांग नहीं कर रही है।
ऐसी कठिन वित्तीय स्थिति से गुजर रही सरकार पर जब प्राकृतिक आपदा ने भी अपना योगदान दिया तब सही में प्रभावितों को पता चला कि आपदा का दंश क्या होता है और ऐसे समय में जब सरकार का खजाना खाली हो तो तब पता चलता है कि इसका व्यवहारिक प्रभाव क्या पड़ रहा है। सुक्खु सरकार ने दिसम्बर में सत्ता संभाली थी और आपदा का प्रकोप जुलाई से शुरू हुआ। लेकिन सरकार ने डीजल पर वैट मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही बढ़ा दिया था। इस आपदा में 500 से अधिक लोग मारे गये हैं या गुम हुये हैं। सरकारी अनुमानों के अनुसार 12000 करोड़ का नुकसान इस आपदा में हुआ है। स्वभाविक है कि इतने बड़े नुकसान कि राज्य सरकार अपने ही संसाधनों से भरपाई नहीं कर सकती है। उसके लिये केंद्र सरकार की सहायता चाहिये थी। आपदा के इस आकार पर राज्य सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी। जोशीमठ और भुज की त्रासदी की तर्ज पर सहायता की मांग की थी। इस आपदा की में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी प्रदेश के दौरे पर आये थे और प्रदेश को 300 करोड़ की सहायता की घोषणा की थी। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर तो प्रदेश से ताल्लुक रखनेे के नाते केंद्र सरकार की पूरी सहायता प्रदेश को मिलने की बात कह चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने तो शिमला में सरकार से बैठक करके कहा था की प्रदेश सरकार जो भी मांगेगी उसे वह सब मिलेगा। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तो वाकायदा आंकड़े गिनाकार यह बता रहे थे कि सुक्खु सरकार ने जो 4500 करोड़ का राहत पैकेज घोषित किया है वह केंद्रीय सहायता पर ही आधारित है।
लेकिन सुक्खु सरकार लगातार यह कह रही है कि केंद्र सरकार से कोई सहायता प्रदेश को नहीं मिल पायी है। 4500 करोड़ का राहत पैकेज सरकार में अपने ही संसाधनों से दिया है। इसके लिये विधायकों की क्षेत्रीय विकास निधि में कटौती की गयी है। विभागों के बजट में कटौती की है। 1000 करोड़ मनरेगा से लिया गया है। इस समय केंद्रीय सहायता का सच आपदा से बड़ा सवाल बनता जा रहा है। क्योंकि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि और हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले नड्डा, अनुराग ने एक बार भी जयराम द्वारा परोसे जा रहे आंकड़ों पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया है। जयराम प्रदेश में जहां भी जा रहे हैं वह जनता को केंद्रीय सहायता के बारे में बराबर जानकारी दे रहे हैं। दूसरी और सुखविंदर सिंह सुक्खु लगातार केंद्रीय सहायता मिलने से इनकार कर रहे हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष इस सरकार द्वारा दस माह में ही दस हजार करोड़ का कर्ज लेने की बात कह रहे हैं और कर्ज लेने में इस आंकड़े का कोई खंडन नहीं कर पा रहा है। ऐसे में यह सवाल अलग से खड़ा होता जा रहा है की यह कर्ज कहां खर्च किया जा रहा है? मुख्यमंत्री हर सहायता की राशि दो गुनी करने की घोषणा करते आ रहे हैं ऐसे में अब वह समय आता जा रहा है जब मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की घोषणाओं का व्यवहारिक सच आने वाले दिनों में जनता के सामने आयेगा ही।
इस समय केंद्रीय सहायता पर जिस तरह का वाकयुद्ध सुक्खु और जयराम में चल निकला है उस पर स्वतः ही यह सवाल खड़ा हो गया है की इन दोनों शीर्ष नेताओं में से कोई एक तो झूठ बोल ही रहा है। दो बार के मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे शान्ता कुमार ने ऐसे समय में यह सवाल उठाया है कि प्रदेश में इतनी बड़ी त्रासदी पर भी मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री जब जनता में इस तरह की ब्यानबाजी पर आ गये हैं तो प्रदेश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता है।