Friday, 19 September 2025
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क्या सुक्खु सरकार पत्रकारों का गोदीकरण करना चाहती है

  • क्या संशोधनों को बैक डेट से लागू किया जा सकता है?
  • क्या विज्ञापन बन्द करना समाचार पत्र को बन्द करवाने का प्रयास है?

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने पत्रकारों को मिले सरकारी आवासों का किराया पांच गुणा से भी अधिक बढ़ा दिया है। किराया बढ़ाने के साथ ही पत्रकारों से उनका आयु प्रमाण पत्र और शिमला में उनका अपना कोई मकान है या नहीं इसकी भी जानकारी मांगी है। इसी के साथ संबंधित समाचार पत्र की प्रदेश में प्रसार संख्या और शैक्षणिक योग्यता का भी संशोधित नियमों में उल्लेख किया है। मैंने पिछले अंक में सम्पादकीय लिखा था जिस पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं और सवाल पाठकों की ओर से आये हैं। प्रतिक्रियाएं और सवाल जानने की नीयत से ही यह लेख लिखा गया था। इसलिये उनके प्रति उत्तर के तौर पर यह लेख लिखना आवश्यक समझ रहा हूं। मैं 1974 से शैल का सम्पादन और प्रकाश्न लगातार करता आ रहा हूं। एक साप्ताहिक पत्र के लिये आज की भीड़ में अपना स्थान बनाना कितना चुनौती पूर्ण होता है यह मैं जानता हूं। क्योंकि समाचार पत्रों के जगत में एक साप्ताहिक अपने बेबाक विश्लेषण से ही अपना स्थान बना सकता है और बेबाक विश्लेषण सत्ता में बैठे किसी भी राजनेता और बड़े नौकरशाह को अच्छा नहीं लगता है। इसी कारण से सरकारों से टकराव एक सामान्य नीयती बन जाती है क्योंकि अपना भ्रष्टाचार उजागर होता किसी को भी अच्छा नहीं लगता। इसलिये हर सरकार ऐसे समाचार पत्रों को कुचलने दबाने के लिये सब कुछ करती है। इस कड़ी में सबसे पहला हथियार विज्ञापन बन्द करना और यदि आवास आदि की सुविधा भी मिली हुई है तो उसे भी किसी न किसी बहाने छीनना। क्योंकि हिमाचल में कोई भी राजनेता अपने ही दम पर सत्ता का विरोध आज तक नहीं कर पाया है। इसमें अग्रणी भूमिका अखबारों ने ही निभाई है। हिमाचल में तो भ्रष्टाचार कतई बर्दाशत न करने की घोषणा करके भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की भूमिका निभाने में आ गयी है सरकारें। वर्तमान सरकार भी व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का किरदार ही निभा रही है। इसलिये पत्रकार साथियों से यही आग्रह है कि आप अपनी भूमिका स्वयं तय करें। अब सवाल है नियमों की अनुपालना का। 2023 में ही कितने मान्यता प्राप्त पत्रकार है इन्हें किन नियमों के तहत मान्यता दी गई थी? उन नियमों में संशोधन करने की आवश्यकता कैसे महसूस की गयी? क्या उसके लिये सरकार के किसी अधिकारी ने पत्रकारों से सामूहिक रूप से कोई विचार विमर्श किया? ऐसे विचार विमर्श में समाचार पत्रों के प्रकाशकां से भी विचार विमर्श किया गया? पत्रकारों की योग्यता तय होनी चाहिए। लेकिन क्या यह काम सरकार करेगी या प्रेस परिषद। शायद योग्यता तय करना पत्रकारिता का कोर्स करवाने वाले संस्थाओं और विश्वविद्यालय का है। सरकार अपने यहां सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी नियुक्त करने के लिए तो योग्यता तय कर सकती है लेकिन किसी समाचार पत्र को ऐसा करने के लिए निर्देशित नहीं कर सकती। फिर जिन नियमों में आज संशोधन किया जा रहा है उन्हें पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता यह एक सामान्य नियम है। ऐसे में जब सरकार पूर्व से इन संशोधनों को लागू करने का प्रयास करेगी तो तय है कि कुछ इन लोगों को नियतम दंडित करने की मंशा है। सरकार पत्रकारों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिये बाध्य कर रही है। अपने यहां व्यापक भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद पर नियंत्रण पाने की जगह पत्रकारों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है। पत्रकार को सरकारी कर्मचारी बनाने का प्रयास करना गलत होगा। आज पड़ोसी राज्य पत्रकारों को सुविधाएं देते हुये पैन्शन तक दे रहे हैं। लेकिन हिमाचल सरकार उनके विज्ञापन बन्द करने और आवास छीनने का प्रयास कर रही है। यदि सरकार की नीयत साफ होती तो जैसे पहले पत्रकारों को आवासीय कॉलोनी दी गयी है उसी तर्ज पर आज दो-दो बिस्वा जमीन देकर उनको घर बनाने की सुविधा देती जैसे अन्यों के लिए अभी किया है। जिन पत्रकारों के पास अपने घर है उन्हें सरकारी आवास सरकार ने दिये ही क्यों? जो लोग आज सरकार में हैं वह शायद बीस वर्ष पहले भी इसी विधानसभा के सदस्य थे तब उनकी सोच क्या थी? सरकार को समझना होगा कि विज्ञापन बन्द कर देने और सुविधाएं छीनने से आप किसी का लिखना बन्द नहीं कर सकते। वैसे भी यह कहावत है कि शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं फैंकते।

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