Friday, 19 September 2025
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आपदा काल में सुरक्षित सरकारी भवन से कार्यालयों को निजी भवनों में ले जाना कितना सही

  • यू एस क्लब से सरकारी कार्यालयों की शिफ्टिंग क्यों?

शिमला/शैल। प्रदेश में राज्य आपदा घोषित है क्योंकि जान माल का अकल्पनीय नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई करने में लम्बा समय लगेगा। सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है। मुख्यमंत्री ने सत्ता संभालते ही प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी है। स्वभाविक है कि ऐसी चेतावनी सचिवालय में बैठी वरिष्ठ अफसरशाही द्वारा दिये गये फीडबैक पर आधारित रही होगी। इस वित्तीय चेतावनी के परिदृश्य में ही नये संसाधन जुटाने के उपाय सोचे गये होंगे। जल-उपकर के लिये अध्यादेश तक लाया गया। डीजल पर दो बार वैट बढ़ाया गया। बिजली-पानी और कूड़े तक के रेट बढ़ाये गये। मंदिरों में वी.आई.पी दर्शन की सुविधा के लिये 1100रू का शुल्क तक लगा दिया। बसों में सामान ले जाने के लिये अतिरिक्त किराया लगाने का फैसला लिया गया। अधिकारियों/कर्मचारियों तक के तबादले नहीं किये गये। ताकि सरकार पर कोई खर्च का बोझ न पड़े। मुख्यमंत्री ने निजी भवनों में चल रहे सरकारी कार्यालय को सरकारी भवनों में शिफ्ट करने के निर्देश दिये ताकि खर्च कम किया जा सके।
ऐसे संकट पूर्ण हालत में सरकार ने यू.एस.क्लब स्थित पांच सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करने के निर्देश दिये हैं। इन्हें कहा गया है कि वह अपने लिये स्थान का प्रबंध करें। स्वभाविक है कि इन्हें निजी भवनों में ही अपने लिये जगह तलाशनी होगी। शायद पर्यटन विभाग ने तो इन आदेशों की अनुपालना के लिए कदम भी उठा लिए हैं। सरकार के इस आदेश के बाद पहली आशंका तो इस ओर जाती हैं की कहीं यू.एस. क्लब भी सरकारी रिपोर्टों में अनसेफ भवनों की श्रेणी में तो नहीं आ गया है। जिससे वहां स्थित कार्यालय को दूसरी जगह शिफ्ट करने की आवश्यकता खड़ी हो गयी है। लेकिन सरकार के आदेशों के बाद जो चर्चाएं सामने आयी हैं उनके मुताबिक यू.एस. क्लब से सरकारी कार्यालयों को शिफ्ट करके वहां पर अधिकारियों के लिए क्लब की व्यवस्था की जायेगी। क्योंकि यह स्थान माल रोड के निकट है और गाड़ियों की पार्किंग आदि की सुविधा भी उपलब्ध है। इस क्लब में अधिकारियों के लिये क्लब बनाने के प्रयास पिछली सरकारों के दौरान भी हुये हैं लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है। जयराम सरकार के समय भी वरिष्ठ अफसरशाही ने ऐसा प्रयास किया था लेकिन मुख्यमंत्री इसके लिये नहीं माने थे।
लेकिन अब आपदा काल में जिस तरह से यह फैसला आया है उससे सरकार की संवेदनशीलता पर गहरे सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसे फैसला मंत्री परिषद की बैठक में लिया गया है। क्या मुख्यमंत्री के अपने स्तर पर यह फैसला लिया गया है या अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ऐसा फैसला यह मानकर ले लिया होगा कि मुख्यमंत्री के स्तर पर कोई सवाल नहीं उठाये जाएंगे। वैसे मुख्यमंत्री या उनके सहयोगी किसी भी मंत्री की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। आपदा काल में इस तरह के फैसले लिये जाना कठिन वितीय स्थिति और आपदा में सरकारी तंत्र की गंभीरता पर गहरे सवाल छोड़ जाता है। यह चर्चा चल पड़ी है कि सरकार का अफसरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। क्योंकि सरकार इस आपदा में हर एक से सहयोग मांग रही है। यदि आम आदमी का सहयोग ऐसे ही कार्यों पर निवेशित होना है तो फिर सहयोग से पहले उसकी पात्रता पर सवाल उठेंगे यह तय है।

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