Friday, 19 September 2025
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सुक्खू सरकार की पहली चुनावी परीक्षा होगी नगर निगम शिमला के चुनाव

  • अराजकता का पर्याय बन चुका है नगर निगम
  • सत्ता परिवर्तन का कोई असर नहीं हुआ प्रशासन पर
  • एन.जी.टी. के फैसले पर स्पष्ट रुख अपनाना होगा चुनाव में उतरने से पहले

शिमला/शैल। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद होने जा रहे नगर निगम शिमला के चुनाव सुक्खू सरकार की पहली चुनावी परीक्षा होने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री सुक्खू के लिये यह और भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है कि वह इसी नगर निगम से दो बार छोटा शिमला वार्ड से पार्षद रहे हैं। उनकी पढ़ाई लिखाई भी इसी शहर में हुई है। लेकिन अब मुख्यमंत्री बनने के बाद होने जा रहा यह चुनाव उनकी सरकार के लिये भी किसी परीक्षा से कम नहीं होगा। क्योंकि शिमला को मिनी हिमाचल की संज्ञा भी हासिल है। प्रदेश के हर भाग का आदमी शिमला में मिल जाता है। फिर यह नगर निगम क्षेत्र का सबसे बड़ा क्षेत्र भी है। इस नाते यह चुनाव सुक्खू सरकार द्वारा चार माह में लिये गये फैसलों का भी आकलन होगा। सुक्खू सरकार ने यह घोषित कर रखा है कि वह व्यवस्था परिवर्तन करने आयी है और इसी व्यवस्था परिवर्तन के तहत शिमला नगर निगम के आयुक्त और संयुक्त आयुक्त नहीं बदले गये है। इस निगम के चुनाव पिछले वर्ष होने थे जो कुछ कारणों से नहीं हो पाये और आज यह प्रशासक के अधीन चल रही है। प्रशासक का दायित्व जिलाधीश शिमला के पास है और वह भी नहीं बदले गये हैं। पुराने प्रशासन के साये में ही यह चुनाव हो रहे हैं। नगर निगम के वार्ड 34 हो या 41 इस संबंध में भाजपा की एक याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है । बल्कि इस पर फैसला सुरक्षित है जो कभी भी घोषित हो सकता है। उस फैसले का असर भी निगम चुनावों के परिणाम पर पड़ेगा। यदि वार्ड 41 हो जाते हैं तो इसका कुछ लाभ वामदलों को भी मिलेगा। इस बार आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। आप के रिश्ते कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी पर हैं। इसका असर दोनों कांग्रेस और भाजपा पर एक बराबर पड़ेगा। अभी जो वार्डों को लेकर रोस्टर जारी हुआ है उसमें कांग्रेस की गुटबन्दी ज्यादा चर्चा में है।
इस सबसे हटकर यदि राजनीतिक आकलन किया जाये तो इस समय मंत्रिमंडल और अन्य राजनीतिक ताजपोशी की बात की जाये तो सबसे अधिक प्रतिनिधित्व जिला शिमला का है। यह इसलिये हुआ कहा जा रहा है कि सुक्खू की कार्यस्थली ही शिमला रही है। कई ऐसे लोगों की ताजपोशियां भी शायद हो गयी हैं जो शायद कांग्रेस संगठन में भी कोई बड़े कार्यकर्ता नहीं थे। शिमला में ही कई वरिष्ठ कार्यकर्ता नजरअंदाज हो गये हैं जिनकी निष्ठा शायद हॉलीलाज के साथ थी। जितना प्रतिनिधित्व जिला शिमला को दे दिया गया है उतना किसी भी अन्य जिले को मिल पाना अब संभव नहीं रह गया है और देर सवेर यह एक बड़ा मुद्दा बनेगा यह तय है। इसलिए यह राजनीतिक असंतुलन यदि कहीं नगर निगम चुनावों में चर्चित हो गया तो निश्चित रूप से संकट खड़ा हो सकता है। क्योंकि गारंटीयां देकर सत्ता में आयी सरकार अभी तक व्यवहारिक तौर पर जनता को कोई राहत नहीं दे पायी है। बल्कि आते ही तीन रूपये प्रति लीटर डीजल के दामों में बढ़ौतरी कर दी गयी। अब बिजली की दरें 22 से 46 पैसे प्रति यूनिट बढ़ा दी गयी हैं। कैग रिपोर्ट के मुताबिक 74वें संविधान संशोधन के अनुरूप स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के लिये शक्तियां ही नही दे पायी हैं। क्या सुक्खू सरकार कैग की सिफारिशों के अनुरूप कदम उठाने का वायदा करेगी।
शिमला नगर निगम प्रशासन एक तरह से अराजकता का पर्याय बना हुआ है यहां पर अदालती फैसलों पर अमल करने या उनके खिलाफ अगली अदालत में अपील करने की बजाये फैसलों पर पार्षदों की कमेटियां राय बनाकर लोगों को परेशान करती है। एन.जी.टी. के फैसले को नजरअंदाज करके शहर में कितने निर्माण खड़े हो गये हैं यह अराजकता का ही परिणाम है। शिमला जल प्रबन्धन निगम रिटायरियों की शरण स्थली बनकर रह गयी है वहां पर सुक्खू सरकार के आदेश भी लागू नहीं हो पाये हैं। स्मार्ट सिटी के तहत कितने निर्माण बनने की स्टेज पर ही गिर गये और किसी की कोई जिम्मेदारी तय नही हो पायी। अब चुनावों के दौरान ऐसे दर्जनों मामले जवाब मांगेंगे। क्योंकि निगम प्रशासन में सत्ता परिवर्तन की कोई झलक देखने को नहीं मिली है।

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