Friday, 19 September 2025
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जुएं निकालने की जगह सिर ही काट देने से नहीं बदलेगी व्यवस्था सुक्खु और जयराम हुए आमने-सामने

  • अधीनस्थ सेवाएं चयन आयोग भंग करने से उठी चर्चा
  • चिट्टों पर भर्तियों का प्रकरण सामने आने पर गठित हुआ था हमीरपुर बोर्ड
  • हर्ष गुप्ता और अवय शुक्ला जांच कमेटियों की रिपोर्टों पर कितने दंडित हो पाये हैं आज तक सामने नहीं आया है
  • आऊटसोर्स केवल कमीशन का साधन बनकर रह गया है
  • 94 कंपनियों को मिले 23 करोड़ से उठी चर्चा
  • क्या अधीनस्थ सेवाएं चयन आयोग की जांच का अन्तिम परिणाम इसी सरकार के कार्यकाल में आ पायेगा
  • जब कर्मचारी भर्तीयों से जुड़ा हर अदारा सवालों में है तो नौकरियों के अभ्यर्थी कहां जायें?
  • क्या सरकार भ्रष्टाचारियों के नाम उजागर करेगी?

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने हमीरपुर स्थित अधीनस्थ कर्मचारी सेवाएं चयन आयोग को भंग कर दिया। यह कदम तब उठाया गया जब जे.ओ.ए.(आई.टी) की परीक्षा का पेपर लीक होने की शिकायत परीक्षा होने से पहले ही एक अभ्यर्थी के माध्यम से विजिलैन्स के पास पहुंच गयी। शिकायत मिलने पर पूरा तन्त्र हरकत में आ गया। परीक्षा रद्द कर दी गयी। कारवाई में कुछ लोगों को गिरफ्तारीयां हुई हैं। इसी कारवाई के बीच यह आशंकाएं उभरी कि कहीं पूर्व में हुई परीक्षाओं में भी ऐसा ही न हुआ हो। इसी आशंका पर आयोग निलंबित कर दिया गया और जांच के लिए एस.आई.टी. का गठन कर दिया गया। सचिव शिक्षा को भी जांच करके रिपोर्ट देने के आदेश दिये गये। यह सूचनाएं सामने आयी की अठारह कोड की परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं। विजिलैन्स की कोई रिपोर्ट अभी तक अधिकारिक रूप से सामने नहीं आयी है। न ही शिक्षा सचिव की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है। लेकिन इन्हीं रिपोर्टों के बीच आयोग को ही भंग कर दिया गया है। आयोग को भंग करने पर मुख्यमंत्री का ब्यान आया है। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि इसमें ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार व्याप्त था। मुख्यमंत्री के ब्यान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मांग की है कि इस भ्रष्टाचार में व्याप्त सबके नाम उजागर किये जायें और उनके खिलाफ कारवाई की जाये। इसी प्रतिक्रिया के साथ जयराम ने यह भी आरोप लगाया है कि यह कारवाई केवल भाजपा द्वारा लगाये गये अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने के लिये की गयी है। जयराम की प्रतिक्रिया और आरोपों के परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार एक तय समय सीमा के भीतर सारे प्रकरण को अदालत पहुंचा कर दोषियों को दण्डित करवाये।
स्मरणीय है कि एक समय प्रदेश में चिट्टों के माध्यम से हर विभाग और सरकारी उपक्रमों में हजारों की संख्या में भर्तीयां होने का मामला सामने आया था। इन भर्तीयों की जांच के लिये हर्ष गुप्ता और अवय शुक्ला दो कमेटियां गठित हुई थी। इन कमेटियों की रिपोर्टां पर प्रदेश उच्च न्यायालय के माध्यम से जांच की मांग की गयी थी। उच्च न्यायालय ने भी रिपोर्टों का कड़ा संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिये थे। लेकिन आज तक यह सामने नहीं आ पाया है कि इस प्रकरण में कौन-कौन दण्डित हुआ है। इसी परिदृश्य में भविष्य में ऐसा न हो और एक अलग संस्था सरकारी नौकरियों में भर्ती का काम देखे। इस उद्देश्य के लिये हमीरपुर में इस संस्थान का गठन हुआ था। यहां भी पेपर लीक की शिकायतें पहली बार आयी हैं। इन शिकायतों के परिदृश्य में संस्थान को ही भंग कर देने के फैसले को सिर से जुएं निकालने की बजाये सिर को ही काट देने के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि प्रदेश में नौकरियां देने वाला सरकार से बड़ा कोई अदारा नहीं है। इस आयोग के पास इस समय करीब चार हजार भर्तीयां करने की प्रक्रिया विभिन्न स्तरों पर चल रही थी। अब यह काम प्रदेश लोक सेवा आयोग को दिया गया है। लोक सेवा आयोग में 2018 जनवरी में सदस्यों के दो पद सृजित करके एक भर लिया गया था लेकिन आगे चलकर जो जो सदस्य सेवानिवृत्त होते गये उनके स्थान पर नई नियुक्तियां तत्काल नहीं हो पायी और एक समय यह स्थिति बन गयी कि आयोग में एक ही सदस्य रह गया। लेकिन इसी दौरान भर्तीयों को लेकर जो हुआ यदि उस पर नजर डाली जाये तो यह सामने आता है कि 2018 से लेकर 2022 तक भर्तीयों के जितने विज्ञापन जारी हुए हैं उनके मुताबिक करीब दो सौ विज्ञापन जारी हुए हैं। जिनमें 2018 में 18, 2019 में 25, 2020 में 12, 2021 में 62 और 2022 में 64 विज्ञापन जारी हुए हैं। 2022 चुनावी वर्ष था और इसमें 64 विज्ञापन जारी हुए। जबकि 2017 भी चुनावी वर्ष था और उसमें 17 विज्ञापन जारी हुए थे। 2021 और 2022 में जब आयोग में सदस्यों के कुछ पद खाली चल रहे थे तब आयोग में इतने विज्ञापनों की अनुपालना कैसे हो पायी होगी यह विचार का विषय है। कई भर्तीयों की प्रक्रिया तो शायद एक एक वर्ष में भी पूरी नहीं हो पायी है। ऐसे में अधीनस्थ सेवाएं चयन का काम भी अब लोक सेवा आयोग को देना अपने में ही सवाल खड़े कर जाता है। यह आंकड़े आयोग की साइट पर उपलब्ध हैं।
अधीनस्थ सेवाएं चयन आयोग और लोक सेवा आयोग के बाद भर्तीयों का तीसरा बड़ा माध्यम आऊटसोर्सिंग है। आऊटसोर्स कमीशन खाने का एक बड़ा उद्योग बन कर रह गया है। जयराम सरकार के समय रमेश धवाला, होशियार सिंह, राजेंद्र राणा और विक्रमादित्य ने सवाल पूछा था कि तीन वर्षों में सरकारी और प्राइवेट सैक्टर में कितने लोगों को रोजगार मिला है। सरकार ने जवाब में कहा है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। मोहनलाल बरागटा, मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य ने सवाल पूछा था कि सरकारी विभागों और उपक्रमों में कितने लोगों को आऊटसोर्स के माध्यम से नौकरी पर रखा गया। इसमें 12165 का आंकड़ा दिया गया और कहा गया कि पिछले वर्ष 3000 लोगों को रखा गया था। इन लोगों के लिये 94 कंपनीयों को 23,09,58,224 रुपए का कमीशन दिया गया। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि आऊटसोर्स कमीशन खाने का ही माध्यम बनकर रह गया है। फिर आऊटसोर्स कंपनियों को उनके माध्यम से लगे कर्मचारियों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है। कंपनियां किस आधार पर कर्मचारीयों का चयन करती है यह स्पष्ट नहीं है। क्योंकि वह अपने कमीशन तक ही सीमित रहते हैं। इस तरह कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया में सरकार से लेकर आऊटसोर्स तक हर माध्यम की विश्वसनीयता प्रश्नित हो चुकी है। आज जब कर्मचारी चयन आयोग को भंग कर दिया गया है तब यह सवाल बड़ा बन गया है कि एक विश्वसनीय तन्त्र की स्थापना कैसे हो पायेगी? क्योंकि हर सरकार के समय चयन की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। सरकार जांच आदेशित कर देती है जिसका अन्तिम फैसला आते-आते कई सरकारें बदल जाती हैं। इसलिये सुक्खु सरकार को अपनी व्यवस्था परिवर्तन की प्रतिबद्धता पर अमल करने के लिये सिर से जुएं निकालने का प्रयास करना होगा न कि सिर ही काटने का।

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