शिमला/शैल। हिमाचल के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं यह आशंका व्यक्त की है मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने। मुख्यमंत्री ने यह आशंका व्यक्त करते हुये प्रदेश के कर्ज भार का आंकड़ा 75000 करोड़ और कर्मचारियों के वेतन पैन्शन का बकाया जिसकी अदायगी पूर्व सरकार नहीं कर पायी है वह 11000 करोड़ विरासत में मिलने का भी खुलासा जनता के सामने रखा है। यही नहीं पूर्व सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का भी गंभीर आरोप लगाया है। मुख्यमंत्री के इस खुलासे से प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमा गयी है। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लेकर नीचे तक सभी भाजपा नेताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हुये कहा है कि यदि ऐसा होता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस सरकार की होगी। लेकिन यह प्रतिक्रिया देते हुये प्रदेश की माली हालत और बढ़ते कर्ज पर कोई टिप्पणी नहीं की है। जबकि धर्मशाला में हुये विधानसभा के पहले सत्र में प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर हुई खुली चर्चा के बाद पूर्व सरकार पर सबसे ज्यादा कर्ज लेने का तमगा लगा है।
अब मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू की टिप्पणी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल के ब्यान भी आये हैं। शान्ता कुमार ने दावा किया है कि वह प्रदेश पर शून्य कर्ज छोड़ कर गये हैं। प्रो.धूमल ने भी स्पष्ट कहा है कि उनके कार्यकाल में केवल 6646 करोड़ का कर्ज लिया गया है। स्मरणीय है कि शान्ता कुमार 1977 और फरवरी 1990 में दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। भले ही वह दोनों बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये हैं। लेकिन वित्तीय अनुशासन के लिये जाने जाते हैं। उन्हीं के कार्यकाल ने जो काम न करें उसे वेतन नहीं की नीति लायी गई थी। धूमल 1998 और फिर 2007 में दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। अपने पहले ही कार्यकाल में उन्होंने विधानसभा के पटल पर प्रदेश की वित्तीय स्थिति को लेकर श्वेत पत्र रखा था। जो बाद में आये मुख्यमंत्री नहीं रख पाये हैं। अब इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के ब्यानों से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश के इस इतने बड़े कर्ज भार के लिये या तो पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह या फिर भाजपा के जयराम ही इस कर्ज भार के लिये जिम्मेदार है। वीरभद्र सिंह आज मौजूद नहीं है इसलिये उनकी ओर से कोई भी जवाब कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व की ओर से ही आना है। जयराम सरकार इस कर्ज भार पर कुछ कह नहीं पा रही हैं। लेकिन सुक्खू के ब्यान ने कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के भीतर एक चर्चा अवश्य छेड़ दी है।
सुक्खू सरकार को सत्ता संभाले अभी दो माह का ही समय हुआ है। वित्तीय वर्ष का अन्त 31 मार्च को होना है। इसलिये चालू वित्त वर्ष के खर्चे चालू बजट के प्रावधानों से ही पूरे होते हैं। लेकिन सुक्खू सरकार को वर्ष समाप्त होने से पहले ही दिसम्बर, जनवरी और फरवरी में चार हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ गया है। संभव है कि मार्च में भी कर्ज लेना पड़े। सुक्खू सरकार द्वारा यह कर्ज लेने का अर्थ है कि उसे विरासत में सरकारी कोष खाली मिला है। इसी कारण से इस सरकार को डीजल पर वैट बढ़ाना पड़ा है। नगर निगम क्षेत्रों में पानी के दाम बढ़ाने पड़े हैं। अब बिजली के रेट बढ़ाने की बारी आ गयी है। यह एक गंभीर स्थिति है जिसका अर्थ होगा कि अगले वर्ष अन्य सेवाओं की दरों में भी बढ़ौतरी होगी। क्योंकि अब तक आयी कैग रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र द्वारा राज्य को जी.एस.टी. की प्रतिपूर्ति भी कुछ समय से नहीं हो रही है। सौ योजनाओं पर जयराम सरकार एक पैसा भी नहीं खर्च कर पायी है। स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं दी जा सकी हैं। कई केन्द्रीय योजनाओं और अन्य के लिये केन्द्र से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाया है यह एक रिपोर्ट का खुलासा है। प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क योजना में अभी भी दो सौ से अधिक सड़कें अधूरी पड़ी हुई हैं और योजना बन्द हो चुकी है। पूर्व मुख्यमन्त्री के विधानसभा क्षेत्र सिराज में बने हेलीपैड उसी समय कांग्रेस के निशाने पर रह चुके हैं। मुख्यमन्त्री के कार्यकाल में दो मंजिला भवन ओकओवर में लगायी गयी लिफ्ट के औचित्य पर जनता सवाल उठा चुकी है। उप मुख्यमन्त्री मुकेश अग्निहोत्री बतौर नेता प्रतिपक्ष तब प्रदेश की स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किये जाने की मांग कर चुके हैं जो आज कांग्रेस की सरकार आने पर भी जारी नहीं हो सका है।
आज जिस तरह से अदानी प्रकरण सामने आया है और इस पर उठते सवालों से केन्द्र सरकार और प्रधानमन्त्री भाग रहे हैं उसका असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ना निश्चित है। केन्द्रीय बजट में प्राइवेट क्षेत्र से जिस निवेश की उम्मीद की गयी है उसका लक्ष्य पूरा होना संदिग्ध हो गया है। राज्यों तक इसका सीधा असर पड़ेगा। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव के परिदृश्य में सारी बहस का रुख बदलने का प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रयास की दिशा में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रदेश की सुक्खू सरकार द्वारा डीजल पर वैट बढ़ाये जाने का तंज कसा है। राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत द्वारा नये वर्ष का बजट पेश करते हुये पिछले ही बजट का वक्तव्य सदन में पढ़ने को भी निशाना बनाया गया है। निश्चित है कि केन्द्र अगले चुनावों के परिदृश्य में गैर भाजपा सरकारों को हर ओर से घेरने और अस्थिर करने का प्रयास करेगा। वित्तीय स्थिति इस संद्धर्भ में सबसे आसान मुद्दा हो जाता है प्रदेश सरकार पर हमला करने का। अभी जिस तर्ज में शान्ता और धूमल के ब्यान आये हैं विश्लेषक इन्हें इसी प्रसंग में देख रहे हैं। बल्कि एकदम एक साथ तेरह राज्यों के राज्यपालों का बदला जाना भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। वित्तीय स्थिति के परिदृश्य में सुक्खू सरकार के सारे फैसलों पर जनता पैनी नजर रख रही है और इनका आने वाले चुनावों पर असर पड़ना तय है। ऐसे में सुक्खू सरकार शान्ता और धूमल के ब्यानों पर क्या प्रतिक्रिया लेकर आती है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं क्योंकि शान्ता काल में भी कुछ ऐसे फैसले हुये हैं जिनका आगे चलकर प्रदेश की आर्थिकी पर निश्चित रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।