जब प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा परोसा जा रहा है तो साथ ही कर्ज का क्यों नहीं जिस प्रदेश के हर आदमी की आय दो लाख है उस सरकार को कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है कर्ज के सहारे रेवड़ीयां कब तक बंटेगी?
शिमला/शैल। भाजपा ने अभी उर्मिल ठाकुर, चेतन बरागटा, राकेश चौधरी की पार्टी में वापसी करवा कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि अब उन्होंने डैमेज कन्ट्रोल कर लिया है। पार्टी के जो कार्यकर्ता खीमीराम और इन्दु वर्मा के कांग्रेस में जाने से हताशा में आ गये थे उन्हें इस डैमेज कन्ट्रोल कवायद से क्या राहत मिली होगी और कितना मनोबल बड़ा होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यहां विचारणीय अवश्य है कि क्या उर्मिल ठाकुर और चेतन बरागटा किसी अन्य दल में शामिल हो गये थे? शायद नहीं क्योंकि उर्मिल ठाकुर का कांग्रेस में जाना नाममात्र का ही रहा है। यह घर के नाराज लोग अब घर वापस आ गये हैं बस इतनी सी उपलब्धि है। जबकि असली समस्या उन लोगों की है जो 2017 के चुनाव तक पार्टी के बड़े चेहरे माने जाते थे और 2017 के बाद उन्हें ऐसे भुला दिया गया कि यह शायद कभी इस संगठन का हिस्सा ही
नहीं थे। इन्हीं लोगों के लिये यह खबरें प्लांट होती रही कि दो दर्जन से भी अधिक पुराने प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिये जायेंगे। यह कारण है कि इस समय एक दर्जन से भी अधिक ऐसे लोगों ने हर हालत में अगला चुनाव लड़ने की परोक्ष/अपरोक्ष में घोषणा कर रखी है। राकेश चौधरी के वापसी भाजपा में आने पर संजय शर्मा ने जिन तेवरों से पत्राकार वार्ता के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया दी है वह भविष्य को लेकर बड़ा संकेत है। क्योंकि इसी डैमेज कन्ट्रोल की कवायद के बाद भी जसवां परागपुर से क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण के सदस्य रहे मुकेश कुमार ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। आज अधिकांश मंत्रियों के खिलाफ संघ के पुराने लोगों ने ही बगावत का बिगुल बजा दिया है। ऊना में वीरेन्द्र कंवर के खिलाफ संघ के संस्थापक रहे स्व. वेद रत्न आर्य के परिवार ने ही बगावत कर दी है। प्रशासन पर सरकार की पकड़ कितनी है इसका अनुभव ऊना में भी सतपाल सत्ती को उस समय हो गया जब उन्हें डैड बॉडी वैन तक प्रशासन उपलब्ध नहीं करवा पाया। ऐसे प्रकरण लगभग हर चुनाव क्षेत्र में घट चुके हैं। आज मुख्यमंत्री चुनावों के परिदृश्य में हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। इन घोषणाओं का प्रदेश की जनता पर कितना सकारात्मक प्रभाव पढ़ सकेगा। क्योंकि यह प्रदेश की जनता के सामने ही है कि जब केन्द्र द्वारा घोषित 69 राष्ट्रीय राजमार्ग अभी तक सिद्धांत से आगे नहीं बढ़ पाये हैं तो मुख्यमंत्री की घोषणाओं को पूरा होने में तो दशकों लग जायेंगे। आज सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के सम्मेलन बुलाकर उन्हें अपरोक्ष में यह कहा जा रहा है कि इस लाभ के बढ़ते तुम्हें अब भाजपा को वोट देना है। लेकिन इन लाभार्थियों से यह जानने का प्रयास किसी ने नहीं किया है कि इस महंगाई में उनका चूला कैसे जल रहा है? उनसे यह भी नहीं पूछा है कि उन्हीं के घर में बेरोजगार कितने हैं और क्या वह उज्जवला योजना में मुफ्त मिले गैस सिलैण्डर को आसानी से रिफिल करवा पाये हैं। अभी प्रधानमंत्री ने मुफ्ती योजनाओं को रेबड़ियां कहकर भविष्य के लिए घातक करार दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय ने भी इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए सरकार से इस संबंध में पॉलिसी बनाने के लिये कहा है। याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया है कि जो राज्य मुफ्ती की घोषणा करेंगे उन्हें कर्ज लेने की सुविधा न दी जाये। आज जयराम सरकार जिन लाभार्थियों के सम्मेलन आयोजित करने जा रही है क्या उन सम्मेलनों में इन लोगों को यह भरोसा दिला पायेगी कि प्रधानमंत्री की चेतावनी के बावजूद वह इन मुफ्ती योजनाओं को जारी रख पायेगी? क्या यह आश्वासन दे पायेगी कि वह इसके लिए जनता पर कर्ज का बोझ और नहीं डालेगी? आज सरकार जब प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 201854 बता रही है तो इसके साथ प्रति व्यक्ति कर्ज का आंकड़ा क्यों नहीं बताया जा रहा है? जिस प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय दो लाख है उस पर देश को इतना कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है? उस प्रदेश का राजस्व में कुल बजट का कैग के मुताबिक 90% क्यों हो गया है? यह वह सवाल है जिनका जवाब आने वाले दिनों में देना पड़ेगा। इन व्यवहारिक प्रश्नों से जब आम आदमी का वास्ता पड़ेगा तो वह सरकार को कितना समर्थन दे पायेगा? यह देखना रोचक होगा। इस परिदृश्य में स्पष्ट है कि लोगों की नाराजगी सरकार से है जिसे किसी भी डैमेज कन्ट्रोल से नहीं रोका जा सकता और न ही दूसरे दलों में तोड़फोड़ करना इसका हल है।
सरकार की असफलताओं का कोई डैमेज कंट्रोल नहीं होता
जब प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा परोसा जा रहा है तो साथ ही कर्ज का क्यों नहीं
जिस प्रदेश के हर आदमी की आय दो लाख है उस सरकार को कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है
कर्ज के सहारे रेवड़ीयां कब तक बंटेगी?
शिमला/शैल। भाजपा ने अभी उर्मिल ठाकुर, चेतन बरागटा, राकेश चौधरी की पार्टी में वापसी करवा कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि अब उन्होंने डैमेज कन्ट्रोल कर लिया है। पार्टी के जो कार्यकर्ता खीमीराम और इन्दु वर्मा के कांग्रेस में जाने से हताशा में आ गये थे उन्हें इस डैमेज कन्ट्रोल कवायद से क्या राहत मिली होगी और कितना मनोबल बड़ा होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यहां विचारणीय अवश्य है कि क्या उर्मिल ठाकुर और चेतन बरागटा किसी अन्य दल में शामिल हो गये थे? शायद नहीं क्योंकि उर्मिल ठाकुर का कांग्रेस में जाना नाममात्र का ही रहा है। यह घर के नाराज लोग अब घर वापस आ गये हैं बस इतनी सी उपलब्धि है। जबकि असली समस्या उन लोगों की है जो 2017 के चुनाव तक पार्टी के बड़े चेहरे माने जाते थे और 2017 के बाद उन्हें ऐसे भुला दिया गया कि यह शायद कभी इस संगठन का हिस्सा ही
नहीं थे। इन्हीं लोगों के लिये यह खबरें प्लांट होती रही कि दो दर्जन से भी अधिक पुराने प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिये जायेंगे। यह कारण है कि इस समय एक दर्जन से भी अधिक ऐसे लोगों ने हर हालत में अगला चुनाव लड़ने की परोक्ष/अपरोक्ष में घोषणा कर रखी है। राकेश चौधरी के वापसी भाजपा में आने पर संजय शर्मा ने जिन तेवरों से पत्रकार वार्ता के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया दी है वह भविष्य को लेकर बड़ा संकेत है। क्योंकि इसी डैमेज कन्ट्रोल की कवायद के बाद भी जसवां परागपुर से क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण के सदस्य रहे मुकेश कुमार ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। आज अधिकांश मंत्रियों के खिलाफ संघ के पुराने लोगों ने ही बगावत का बिगुल बजा दिया है। ऊना में वीरेन्द्र कंवर के खिलाफ संघ के संस्थापक रहे स्व. वेद रत्न आर्य के परिवार ने ही बगावत कर दी है। प्रशासन पर सरकार की पकड़ कितनी है इसका अनुभव ऊना में भी सतपाल सत्ती को उस समय हो गया जब उन्हें डैड बॉडी वैन तक प्रशासन उपलब्ध नहीं करवा पाया। ऐसे प्रकरण लगभग हर चुनाव क्षेत्र में घट चुके हैं।
आज मुख्यमंत्री चुनावों के परिदृश्य में हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। इन घोषणाओं का प्रदेश की जनता पर कितना सकारात्मक प्रभाव पढ़ सकेगा। क्योंकि यह प्रदेश की जनता के सामने ही है कि जब केन्द्र द्वारा घोषित 69 राष्ट्रीय राजमार्ग अभी तक सिद्धांत से आगे नहीं बढ़ पाये हैं तो मुख्यमंत्री की घोषणाओं को पूरा होने में तो दशकों लग जायेंगे। आज सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के सम्मेलन बुलाकर उन्हें अपरोक्ष में यह कहा जा रहा है कि इस लाभ के बढ़ते तुम्हें अब भाजपा को वोट देना है। लेकिन इन लाभार्थियों से यह जानने का प्रयास किसी ने नहीं किया है कि इस महंगाई में उनका चूला कैसे जल रहा है? उनसे यह भी नहीं पूछा है कि उन्हीं के घर में बेरोजगार कितने हैं और क्या वह उज्जवला योजना में मुफ्त मिले गैस सिलैण्डर को आसानी से रिफिल करवा पाये हैं।
अभी प्रधानमंत्री ने मुफ्ती योजनाओं को रेबड़ियां कहकर भविष्य के लिए घातक करार दिया है। सर्वाेच्च न्यायालय ने भी इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए सरकार से इस संबंध में पॉलिसी बनाने के लिये कहा है। याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया है कि जो राज्य मुफ्ती की घोषणा करेंगे उन्हें कर्ज लेने की सुविधा न दी जाये। आज जयराम सरकार जिन लाभार्थियों के सम्मेलन आयोजित करने जा रही है क्या उन सम्मेलनों में इन लोगों को यह भरोसा दिला पायेगी कि प्रधानमंत्री की चेतावनी के बावजूद वह इन मुफ्ती योजनाओं को जारी रख पायेगी? क्या यह आश्वासन दे पायेगी कि वह इसके लिए जनता पर कर्ज का बोझ और नहीं डालेगी? आज सरकार जब प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 201854 बता रही है तो इसके साथ प्रति व्यक्ति कर्ज का आंकड़ा क्यों नहीं बताया जा रहा है? जिस प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय दो लाख है उस पर देश को इतना कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है? उस प्रदेश का राजस्व में कुल बजट का कैग के मुताबिक 90% क्यों हो गया है? यह वह सवाल है जिनका जवाब आने वाले दिनों में देना पड़ेगा। इन व्यवहारिक प्रश्नों से जब आम आदमी का वास्ता पड़ेगा तो वह सरकार को कितना समर्थन दे पायेगा? यह देखना रोचक होगा। इस परिदृश्य में स्पष्ट है कि लोगों की नाराजगी सरकार से है जिसे किसी भी डैमेज कन्ट्रोल से नहीं रोका जा सकता और न ही दूसरे दलों में तोड़फोड़ करना इसका हल है।