Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

आप के चुनावी ऐलान ने बदले प्रदेश के राजनीतिक समीकरण कांग्रेस को बड़े नुकसान की संभावना बनी

शिमला/शैल। पांच राज्यों में कांग्रेस को मिली हार और उसके बाद पार्टी के अन्दर ही बने ग्रुप 28 के नेताओं द्वारा गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाये जाने से हिमाचल में भी पार्टी के चुनावी भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। क्योंकि ग्रुप 28 का एक बड़ा चेहरा आनन्द शर्मा हिमाचल से ताल्लुक रखता है। इस ग्रुप में शुरू में कॉल सिंह ठाकुर के शामिल होने की भी बात सामने आयी थी। लेकिन उन्होंने उसी समय इससे किनारा कर लिया था। आज जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर हैं उन्हें भी आनन्द शर्मा का ही प्रतिनिधि माना जाता है। क्योंकि स्व.वीरभद्र सिंह सुक्खू को हटाना चाहते थे इसलिए उन्होंने कुलदीप राठौर के नाम पर सहमति जता दी थी और मुकेश अग्निहोत्री तथा आशा कुमारी को भी राजी कर लिया था। इस पृष्ठभूमि में यह स्वभाविक है कि दिल्ली के घटनाक्रमों का प्रदेश पर असर पड़ेगा ही। वैसे भी यदि पार्टी की वर्किंग का आकलन किया जाये तो जो प्रभावी भूमिका पार्टी विधानसभा के अन्दर निभाती रही है विधानसभा के बाहर उससे आधा काम भी संगठन नहीं कर पाया है। आज पार्टी के अन्दर पदाधिकारियों की जितनी लंबी सूची है उससे यही समझ आता है कि पदों के माध्यम से ही नेताओं को इक्कठा रखा जा रहा है। कई बार यह चर्चायें सामने आती रही है कि कई नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने के लिये तैयार बैठे हैं।
यह सही है कि पार्टी ने पिछले दिनों दो नगर निगमों और फिर विधानसभा तथा लोकसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की है। लेकिन यह जीत कांग्रेस की वर्किंग के बजाय भाजपा के केंद्र से लेकर प्रदेश तक लिए गये गलत फैसलों से उपजे जन रोष का परिणाम ज्यादा था। परंतु कांग्रेस में इस जीत के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा इसकी अघोषित लड़ाई शुरू हो गयी। इसके लिए वर्तमान अध्यक्ष को हटाकर स्वयं अध्यक्ष बनने को मुख्यमंत्री पद की पहली सीढ़ी मानकर गुट बंदी शुरू हो गयी। इसके लिये नेताओं ने दिल्ली आकर हाईकमान से मिलने के अपने अपने रास्ते तलाशने शुरू कर दिये। इस दिल्ली दौड़ का परिणाम यह हुआ कि पार्टी जयराम सरकार के खिलाफ अपना घोषित आरोप पत्र तक नहीं ला पायी। जयराम सरकार के पूरे कार्यकाल में कांग्रेस का इस संदर्भ में कोई भी बड़ा गंभीर प्रयास सामने नहीं आया है। बल्कि प्रदेश के स्वर्ण समाज ने क्षत्रिय देवभूमि संगठन के माध्यम से जो आंदोलन शुरू किया था उसे कांग्रेस के कुछ विधायकों ने विधानसभा के पटल से अपना समर्थन घोषित कर दिया था। यह समर्थन घोषणा से यह चर्चाएं भी चल पड़ी कि आंदोलन के नेता कांग्रेस के ही कुछ नेताओं के इशारे पर काम कर रहे हैं। लेकिन अब जब यह आंदोलनकारी सचिवालय का घेराव करने आ रहे थे और पुलिस प्रशासन ने इन्हें रोकने का प्रयास किया तो आंदोलन के नेतृत्व में अलग राजनीतिक दल बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और इसी पर आंदोलनकारी दो फाड़ हो गये। आंदोलन वहीं समाप्त हो गया। बाद में कुछ नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया। ऐसा क्यों हुआ कैसे हुआ इस पर वह नेता कुछ नहीं कह पा रहे हैं जिन्होंने इनकी मांगों का समर्थन किया था। इससे इन नेताओं की राजनीतिक समझ का खुलासा हो जाता है।
अब आम आदमी पार्टी के प्रदेश का चुनाव लड़ने के ऐलान से पहला नुकसान कांग्रेस को ही होना शुरू हो गया है। इसके कई लोग आप में चले गये हैं। चर्चा है कि केजरीवाल के मंडी में प्रस्तावित रोड शो के मौके पर अनिल शर्मा और उनके पिता पंडित सुखराम केजरीवाल के साथ मंच साझा करेंगे। सुखराम के पोते आश्रय शर्मा कांग्रेस में हैं। मंडी में इस परिवार का अपना प्रभाव रहा है। लेकिन इस तरह से स्वतः विरोधी फैसलों से अपने साथ-साथ पार्टी का भी नुकसान कर रहे हैं। लोकसभा उपचुनाव के बाद प्रतिभा सिंह के बयान से दोनों परिवारों के रिश्ते पहले ही उलझे हुये हैं। ऐसे में अनिल शर्मा और सुखराम का केजरीवाल के साथ आना कांग्रेस पर क्या असर डालेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तरह से पनपते राजनीतिक परिदृश्य में स्वभाविक है कि आम आदमी पार्टी के कारण कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा नुकसान होगा। यह एक खुला सच है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग भाजपा सरकार के खिलाफ ठोस आक्रमकता नहीं अपना पाया है। शायद इसी धारणा पर चलता रहा है कि इस बार कांग्रेस की ही बारी है। परंतु पांच राज्यों की हार और आप के ऐलान ने प्रदेश में दोनों स्थापित दलों के समीकरणों को बिगाड़ दिया है यह तय है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search