Friday, 19 September 2025
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प्रदेश किसान यूनियन ने जयराम सरकार को भेजा मांग पत्र

केंद्रीय बजट से निराश होकर राज्य सरकार से अपने बजट में इन्हें पूरा करने को कहा
देश के जीडीपी का 45% किसानी बागवानी से आता है
रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर भी यही क्षेत्र पैदा करता है

शिमला/शैल। किसान की राजनीतिक ताकत कितनी और क्या है इसका एहसास तेरह माह चले किसान आंदोलन ने सबको करवा दिया है। इसी आंदोलन के कारण अंततः सरकार को विवादित कृषि कानून वापस लेने पड़े। किसानों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामले वापस लेने और एम एस पी के लिए कमेटी गठित करने की घोषणाएं करनी पड़ी। संसद में जब कृषि कानून वापस लेने का बिल पारित हो गया तो उसके बाद किसानों ने अपना आंदोलन वापस लिया। लेकिन व्यवहारिक रुप से जब मामले वापस लेने और एम एस पी के लिए कमेटी गठित करने की घोषणाओं पर अमल नहीं हो सका तब किसान यूनियन ने फिर से आंदोलन की घोषणा कर दी है। 2023 में भी आंदोलन जारी रखने का ऐलान किसान नेताओं की ओर से आ गया है। इसके लिए किसान संगठन ने जो रणनीति अपनाई है उसके तहत एक पूरे शोध के बाद कुछ किसान समस्याओं को चिन्हित करने के बाद इन्हें राज्य सरकारों को भेजा गया है। हिमाचल में भी भारतीय किसान यूनियन ने इसके अध्यक्ष अनेंदर सिंह नॉटी की अध्यक्षता में राज्य सरकार को एक ग्यारह सूत्रीय मांग पत्र सौंपा है। मांग पत्र में साफ कहा गया है कि केंद्र सरकार के बजट से किसानों को घोर निराशा हुई है। इसलिए राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह अपने बजट में किसानों की इन मांगों को पूरा करने के लिए निश्चित और ठोस कदम उठाये। इस मांग पत्र में साफ कहा गया है कि प्रदेश की 80% जनता कृषि और बागवानी पर आश्रित है रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर भी यही क्षेत्र पैदा करता है मांग पत्र में यह भी साफ कर दिया गया है कि सरकार जिस गंभीरता से प्रदेश के कर्मचारियों वर्ग को लेती है किसानों को उससे भी ज्यादा गंभीरता से लें ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि क्या जयराम सरकार अपने बजट में किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए व्यवहारिक कदम उठा पाती है या नहीं

यह है किसानों का मांग पत्र

1. केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना हिमाचल प्रदेश के किसानों को लाभ पहुंचाने में पूर्णत विफल रही है इसलिए स्थानीय परिस्थितियों और मौसम को देखते हुए राज्य सरकार अपने स्तर पर फसल बीमा योजना लाए ताकि हिमाचल के किसानों को इसका असली लाभ मिल सके।
2. हिमाचल प्रदेश के किसानों , बागवानों, खासतौर पर ऊपरी क्षेत्र के बागवानों हेतु यूटिलिटी तथा पिकअप जैसे वाहन जो अभी तक ’व्यवसायिक श्रेणी’ में रखे गए हैं उनको ’प्राइवेट रजिस्ट्रेशन’ के दायरे में लाया जाए तथा इस पर भी ’ट्रैक्टर’ की तर्ज पर सरकार सब्सिडी दे क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में ट्रैक्टर से अधिक इन वाहन की जरूरत पड़ती है तथा खेती में उपयोग होने वाली वस्तुओं से लेकर अपनी फसल की ढुलाई के लिए इन वाहनों की सारा साल जरूरत पड़ती है। निजी उपयोग के बावजूद व्यवसायिक श्रेणी में होने के कारण किसानों को ’रोड टैक्स, पासिंग और इंश्योरेंस’ के रूप में भारी-भरकम पैसा सरकार को भरना पड़ता है।
3. कृषि उपज मंडी समिति की आय का खर्च भी किसानों के लिए होना चाहिए और किसी अन्य मद में इसका पैसा खर्च ना हो। एपीएमसी की आय का एक हिस्सा ’कोल्ड स्टोर बनाने और खेती में रिसर्च’ हेतु रखा जाए। हिमाचल प्रदेश में हर ब्लॉक स्तर पर एक नई मंडी बनाई जाए तथा पहले से मौजूद मंडियों की क्षमता और सुविधा बढ़ाई जाए। टमाटर, अदरक, लहसुन,सेब, स्टोन फ्रूट पर आधारित पल्प प्लांट्स को लगाया और बढ़ावा दिया जाए फल सब्जी साथ मटर आदि के कैनिंग यूनिट भी कृषि मंडी में लगाए जाएं।
4. पहाड़ी क्षेत्रों में जहां सड़क नहीं है वहां फसलों को सड़क तक लाने हेतु छोटे रोपवे पर भी सरकार 80% तक सब्सिडी का प्रावधान करें इससे सुदूर पहाड़ों पर बगीचों में नए होमस्टे भी खुलेंगे तथा किसान पर्यटन के द्वारा भी अपनी आर्थिकी को मजबूत कर पाएंगे।
5. गेहूं के साथ मक्की हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल है, इसलिए सरकार 2022 वर्ष से मक्की की फसल की भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित करे तथा हिमाचल प्रदेश की मक्की का आटा पूरे भारत में सबसे अधिक पौष्टिक तथा गुणवत्ता वाला है इसलिए सरकारी डिपो में गेहूं के साथ-साथ मक्की का आटा भी उपलब्ध करवाया जाए ताकि हिमाचल प्रदेश में खरीदी गई ’मक्की का आटा हिमाचल प्रदेश में ही रसोई घरों’ तक पहुंचे।
6. हिमाचल प्रदेश में किसानों की सुविधा तथा फसलों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोर चेन के लिए उचित बजट का प्रावधान हो तथा हिमाचल प्रदेश में ’कोल्ड स्टोर कॉरपोरेशन’ की स्थापना करके अलग से विभाग बनाया जाए।
7. भांग व अफीम के औषधीय और औद्योगिक उपयोग के लिए सरकार इसकी खेती को कानूनी दर्जा जल्द से जल्द प्रदान करें।
8. इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में धान की खरीद में किसानों को बहुत दिक्कत आई जिसका मुख्य कारण किसी प्रादेशिक एजेंसी का मध्यस्थ ना होना रहा है अतः सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन व कृषि उपज मंडी समिति को खरीद में मध्यस्थ नियुक्त किया जाए तथा टोकन की व्यवस्था को और सरल किया जाए।
9. जिला सिरमौर स्थित धौलकुआं में कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर की स्थापना हो ताकि किसानों के बच्चे कृषि के विषय में पढ़ाई कर सकें।इसके अतिरिक्त स्कूली पाठ्यक्रम में भी कृषि बागवानी को दसवीं तक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
10. बड़े शहरों में किसान हाट हेतु जगह उपलब्ध करवाई जाए जहां किसान अपने उत्पाद सीधे बेच पाए और उपभोक्ता को भी ताजे फल सब्जी सीधे सस्ते मिलें।
11. दिल्ली चंडीगढ़ देहरादून जैसे शहरों हिमाचल के फलों और सब्जी के अपने आउटलेट हों और हिमाचली ब्रांड के तहत सीधे किसानों से खरीद कर कृषि विभाग वहां फल सब्जी बेचे।

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