आरोप पत्र की गंभीरता तय करेगी कांग्रेस का भविष्य
क्या आरोप पत्र रस्म अदायगी से आगे बढ़ेगा
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के नेता उपचुनावों में चारों सीटें जीतने के बाद आने वाले विधानसभा चुनावों में साठ सीटें जीतकर 60ः 8 होने का दावा करने लगे हैं। यह सही है कि इस समय प्रदेश के जो हालात चले हुये हैं उनके चलते यदि 68ः0 भी परिणाम हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि उपचुनावों के बाद मण्डी आये प्रधानमंत्री प्रदेश को कुछ देकर नही गये हैं और प्रदेश सरकार की हालत यह है कि वह उस काल में भी जनहित से जुड़ी 96 योजनाओं पर एक पैसा तक खर्च नहीं कर पायी है जब कोरोना का संकट भी सामने नही था। जबकि इसी बीच मुख्यमंत्री के सरकारी आवास दो मंजिला और ओवर में लिफ्ट लगाई गयी। आगन्तुकों से मिलने के लिये अलग से एक निर्माण करवाया गया और गाय के लिये आवास और सड़क बनाये गये। ओक ओवर शहर के कोर एरिया में पड़ता है और कोर एरिया में एनजीटी ने हर तरह के निर्माण पर नवंबर 2017 में ही पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है। स्वभाविक है कि यह निर्माण अदालत के फैसले की अवहेलना है। एनजीटी के इस फैसले की जानकारी संभव है कि मुख्यमंत्री को न रही हो लेकिन प्रशासन के शीर्ष पदों पर बैठे हर अधिकारियों को अवश्य रही है। ऐसे में यह निर्माण ही एक ऐसा सवाल बन जाता है जो प्रशासनिक समझ का खुलासा जनता के सामने रख देता है। यही नहीं कुछ ऐसे अधिकारियों को मुख्यमंत्री को बचाना पड़ा है जिन्हें एनजीटी और उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने नामतः चिन्हित करते हुये दोषी करार देकर उनके खिलाफ कारवाई करने के आदेश दिये हैं। लेकिन इन आदेशों की अनुपालना नहीं हुई है। इस चुनावी वर्ष में जब इस तरह के मामले जनता के बीच उछलेंगे तो इस सबका परिणाम क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे दर्जनों मामले जब पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ सामने आयेंगे तो उसका चुनावी परिदृश्य पर निश्चित रूप से नकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा।
इसी परिदृश्य में अब कांग्रेस ने पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाकर नौ मुद्दों पर सरकार की असफलताओं और भ्रष्टाचार पर एक प्रमाणिक आरोप पत्र तैयार करने का ऐलान किया है। इस आरोप पत्र में क्या-क्या सामने आता है यह तो आरोप पत्र आने पर ही पता चलेगा। लेकिन यह तथ्य तो आम आदमी के सामने ही है कि यह सरकार बेरोजगारों युवाआें को रोजगार नहीं दे पायी है। इस समय प्रदेश के रोजगार कार्यालय में बारह लाख लोग रोजगार के लिए पंजीकृत हैं। जबकि यह सरकार अब तक केवल 23804 लोगों को ही अनुबंध के आधार पर नौकरी दे सकी है। कोरोना के कारण ही 17142 लोगों का रोजगार खत्म हुआ जिनमें से 17033 को सरकारी क्षेत्र और 4311 को प्राइवेट क्षेत्र में रोजगार दिया जा सका है। रोजगार के इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार इतने लोगों को रोजगार नहीं दे पायी है जितने इस काल में रिटायर हुये हैं। गांवों में जहां लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध होता था वहां पर भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 127637 कार्य निष्पादन के लिए चयनित हुए जिनमें से 74527 कार्यों पर काम नहीं हुआ है। मनरेगा में जो काम हुए हैं उनमें से 4726.88 लाख मजदूरी के और 5383.40 लाख सामान के भुगतान के लिये अब तक लंबित पड़े हैं।
रोजगार की स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार रोजगार उपलब्ध करवाने में कितनी सफल हुई है। आउट सोर्स के माध्यम से जो रोजगार दिया जा रहा है वह बेरोजगारों के उत्पीड़न का माध्यम बनकर रह गया है। क्योंकि आउट सोर्स का संचालन कर रही कंपनियों के संचालकों को बैठे-बिठाये मोटा कमीशन मिल रहा है। जबकि जिन लोगों को इनके माध्यम से रोजगार मिल रहा है उनके प्रति और रोजगार देने वाले विभाग के प्रति इन कंपनियों की कोई जिम्मेदारी नहीं है। क्योंकि इनके पंजीकरण में राज्य सरकार की कोई भूमिका ही नहीं है। बल्कि आज आउट सोर्स कंपनियां कुछ राजनेताओं और बड़े अधिकारियों की आय का एक बड़ा साधन बन गये हैं । जब स्व. वीरभद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब आउट सोर्स कंपनियों का बड़ा जखीरा शिमला था। अब क्योंकि मुख्यमंत्री मण्डी से ताल्लुक रखते हैं तो दर्जनों कंपनियों के कार्यालय मण्डी में हो गये हैं और कमीशन के रूप में करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। आउटसोर्स कर्मचारियों को सरकार कभी भी नियमित न कर सकती है क्योंकि यह लोग सरकारी कर्मचारी है नही। सरकार हर बार इन्हें आश्वासन देकर केवल छलने का काम कर रही है ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के प्रस्तावित आरोप पत्र में क्या मुद्दे रहते हैं।