सुरेश कश्यप ने अतिविश्वास और सहानुभूति को हार का कारण बताया
रणधीर शर्मा ने कहा भीतरघात से हुई हार
कृपाल परमार और पवन गुप्ता के त्याग पत्रों का जिक्र तक नहीं हुआ
शिमला/शैल। जयराम सरकार उपचुनाव में चारों सीटें हार गयी है। यह हार तब हुई है जबकि प्रदेश और केंद्र दो जगह भाजपा की सरकारें हैं। तीन विधानसभा और एक लोकसभा की सीट पर उपचुनाव हुए। ऐसे में चारों सीटों पर हार का अर्थ है कि लोग प्रदेश और केंद्र दोनों ही सरकारों से खफा हैं। इस हार के कारणों को चिन्हित करने के लिए शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई। तीन दिन की इस बैठक में पहले दो दिन तो कोर कमेटी और उसकी विस्तारित बैठक ने ही ले लिये। दो दिन की कोर कमेटी में जो कुछ पका उसे तीसरे दिन कार्यकारिणी को परोसा गया। कोर कमेटी की दूसरे दिन की बैठक के बाद मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने प्रैस को संबोधित किया और कहा कि भीतरघात के कारण हार हुई तथा इन भीतरघातियों के खिलाफ कारवाई की जायेगी। मुख्य प्रवक्ता के इस ब्यान से यह स्पष्ट हो जाता है कि भीतरघातियों को चिन्हित कर लिया गया था। लेकिन तीसरे दिन की बैठक के बाद प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने लंच पर मीडिया को संबोधित किया। सुरेश कश्यप ने भाजपा नेताओं के अति विश्वास और कांग्रेस के 6 बार रहे मुख्यमंत्रा स्वर्गींय वीरभद्र सिंह के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर को अपनी हार तथा कांग्रेस की जीत का कारण बताया। सुरेश कश्यप ने भीतरघात का जिक्र तक नहीं किया। यहां यह उल्लेखनीय हो जाता है कि इस मंथन बैठक से ठीक पहले पूर्व राज्यसभा सांसद और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष कृपाल परमार ने अपने पद से त्यागपत्रा दे दिया। यह त्यागपत्रा देने के साथ ही परमार का जो पत्रा सोशल मीडिया में सामने आया उसमें उन्होंने आरोप लगाया कि वह चार वर्षों से लगातार जलालत का सामना कर करते आ रहे हैं। कृपाल परमार ने यह भी कहा कि उन्होंने इस संबंध हर स्तर पर बात करके देख लिया और अब त्यागपत्र देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प उनके पास नहीं बचा है। कृपाल परमार के बाद प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य और सिरमौर के प्रभारी पवन गुप्ता का त्यागपत्र सामने आया। पवन गुप्ता ने तो सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाया। बघाट सरकारी बैंक का संद्धर्भ उठाते हुये गुप्ता ने पूरी बेबाकी से यह आरोप लगाया कि मुख्यमंत्रा कार्यालय में बैठा एक अधिकारी भ्रष्टाचारियों को बचा रहा है क्योंकि उसने अपनी पत्नी के नाम से भारी कर्ज ले रखा है।
इन त्याग पत्रों को प्रदेश प्रभारी ने यह कहकर हल्का बताने का प्रयास किया कि यह त्यागपत्रा अभी सोशल मीडिया में ही चर्चा में है। जब उनके पास आयेंगे तब उस पर चर्चा करेंगे। इसी तर्ज को दोहराते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी अपने आभासी संबोधन में इन त्यागपत्रों का उल्लेख तक नहीं किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक सभी की यह राजनीतिक मजबूरी है कि वह त्यागपत्रां के कड़वे घूंट को चुपचाप निगल जायें। लेकिन यह त्यागपत्रा और इनमें उठे मुद्दे पर देश की जनता के संज्ञान में आ चुके हैं क्योंकि यह सब लंबे अरसे से संगठन और सरकार में घटता आ रहा है। एक समय इन्दु गोस्वामी ने भी अपने पद से त्यागपत्रा देते हुये यही सब कुछ कहा है। भले ही संगठन सरकार और मीडिया के कुछ हल्के इस सबको नजरअंदाज कर दे लेकिन प्रदेश की जनता ने इसका संज्ञान लिया है और उसका प्रमाण चार शून्य के परिणाम में सामने की भी आ चुका है। इसी मन्थन बैठक में मुख्य प्रवक्ता और प्रदेश अध्यक्ष के भीतरघातियों को लेकर अलग-अलग ब्यानों से यह स्पष्ट हो जाता है की इन त्यागपत्रों ने जयराम से लेकर नड्डा तक सभी की नींद हराम कर दी है।
सुरेश कश्यप जब भाजपाइयों के अति विश्वास को हार का कारण मान रहे हैं तब उन्हें यह बताना होगा कि जयराम सरकार की ऐसी कौन सी उपलब्धियां जिनसे अति विश्वास बना। कल तक तो कांग्रेस को हर भाजपाई नेता विहीन पार्टी करार दे रहा था। यदि नेता विहीन होते हुए भी कांग्रेस जयराम सरकार से चारों सीटें छीन ले गयी तो अब आगे क्या होगा। स्वर्गीय वीरभद्र के निधन से उपजी सहानुभूति की लहर की पूरी पिक्चर तो आम चुनाव में सामने आयेगी। इस मंथन में भले ही भाजपा नेतृत्व ने अपने ही नेताओं के उन ब्यानों का संज्ञान लिया हो जिनमें यह कहा गया था कि आगे ठेकों के काम उसी को मिलेंगे जिन की सिफारिश पार्टी के प्रत्याशी से आयेगी। यह भी कहा गया था कि यदि हमारा कुत्ता भी पड़ोसी के घर चला जाये तो हम उसे भी घर वापस नहीं आने देते हैं। इन ब्यानों के वीडियोज चुनावों में खूब चर्चित रहे हैं। क्या ऐसे ब्यानों से पार्टी की छवि निखरेगी या यह सामने आयेगा कि अब सत्ता का नशा दिमाग तक चढ़ चुका है। इस मंथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों तक प्रदेश में न तो सरकार और न ही संगठन के स्तर पर किसी भी तरह का कोई परिवर्तन होगा। जो भी घटेगा वह यूपी के परिणामों के बाद ही घटेगा। इसका प्रमाण त्यागपत्रों पर अपनाई गयी खामोशी से सामने आ चुका है। इसी दौरान यह भी सामने आ जायेगा की मुख्यमंत्री की कार्यशैली में क्या अंतर आता है।