Friday, 19 September 2025
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उपचुनाव में भ्रष्टाचार पर खामोशी क्यों ? क्या कोई राजनीतिक सहमति है

शिमला/शैल। क्या भ्रष्टाचार पर चुप रहने के लिए राजनीतिक दलों में कोई आपसी सहमति बन गयी है। यह सवाल अब जनता में उठने लग पड़ा है। क्योंकि इस उपचुनाव में कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार पर बात नहीं कर रहा है। जबकि महंगाई और बेरोजगारी सिर्फ भ्रष्टाचार की ही देन होते हैं। भाजपा जब विपक्ष में थी तब कांग्रेस की सरकार के खिलाफ कई आरोप पत्र लाये गये थे। लेकिन जयराम सरकार के अब तक के कार्यकाल में उन आरोप पत्रों पर कोई कार्यवाही सामने नहीं आ पाई है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने भी अभी तक कोई आरोप पत्र सरकार के खिलाफ जारी नहीं किया है। कुछ हल्कों में यह तर्क दिया जा रहा है कि कोविड के कारण जब सारा कामकाज भी बंद था तो फिर भ्रष्टाचार होने की कोई संभावना ही नहीं बची थी। लेकिन यह लोग भूल रहे हैं कि कोविड के कारण लॉकडाउन 24 मार्च 2020 को हुआ था और इस सरकार ने सत्ता 2018 जनवरी में संभाली थी। सत्ता संभालने से लेकर लॉकडाउन लगने तक 2019 का लोकसभा चुनाव भी हुआ है। इस चुनाव से पहले ही 2018 से ही प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना शुरू हो गई थी। इस योजना के तहत ‘‘59 मिनट में एक करोड़ ले जाओ’’ किया गया था। हिमाचल सरकार ने इस योजना के तहत 2541 करोड़ का ट्टण बांटा है । 2020 के आर्थिक सर्वेक्षण में यह एक बड़ी उपलब्धि के रूप में दर्ज है। यह योजना भी 2019 में ही समाप्त हो गयी थी। यह जो ऋण बांटा गया था यह सार्वजनिक धन है। इसलिए इस धन का कितना सदुपयोग हुआ है इसमें कितने उद्योग लगे हैं कितना रोजगार पैदा हुआ है इस ऋण में से कितना वापस आया है। कितने लोग नियमित किस्तें दे रहे हैं। इन सवालों के जवाब जानना प्रदेश की जनता का हक है क्योंकि यह उनका पैसा है। लेकिन यह जानकारी तभी सामने आयेगी जब विपक्ष सदन में यह सवाल पूछेगा और विपक्ष ने इस बारे में एक बार भी सवाल नहीं उठाया है। जबकि चर्चा है कि इस ऋण का अधिकांश एनपीए होकर बैड लोन हो चुका है। यही नहीं जिस कोविड के कारण लॉकडाउन हुआ और सारी गतिविधियां शुन्य हो गयी थी उसी कोविड के नाम पर आपदा प्रबंधन में जो खर्च हुआ है आज शायद उस खर्च के हिसाब किताब के वांछित दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। कोविड की रोकथाम के लिए स्थापित किए गए क्वारेन्टिन केंद्रों की अधिसूचना और इन केंद्रों में रखे गए संक्रमितों तथा उन पर हुए खर्च के दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। यह सारा खर्च आपदा प्रबंधन के नाम पर किया गया है। सूत्रों के मुताबिक आपदा प्रबंधन में जब इस खर्च की समीक्षा की जाने लगी तब इन दस्तावेजों की आवश्यकता हुई और यह नहीं मिल पाये हैं। आपदा प्रबंधन ने इस संबंध में जिलों को एक कड़ा पत्र भी लिखा है और इसका पूरा लेखा तैयार करने के लिए ए.जी. की टीम को भी बुला लिया गया है। कोविड के नाम पर हुये इस करोड़ों के खर्च पर गंभीर प्रश्न खड़े हो गये हैं। परंतु विपक्ष इस पर भी मौन है। इसी तरह इस सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में भी कई मामलों में गंभीरता ना दिखाने के लिए जुर्माने लग चुके हैं। कई मामलों में तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों से यह जुर्माना वसूलने के आदेश हैं। जब भी किसी विभाग की लापरवाही के लिए सर्वोच्च न्यायालय जुर्माना लगता है तो कायदे से सरकार संबद्ध अधिकारी से जवाब मांगती है। लेकिन इस सरकार में आज तक एक भी मामले में ऐसी कारवाई नहीं हो पायी है। यही नहीं करीब आधा दर्जन ऐसे मामले हैं जिनमें अदालतों के फैसलों पर अमल नहीं किया गया है और यह सारे मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं। ऐसे मामलों में कोई कार्यवाही ना किया जाना और इन पर विपक्ष के खामोश रहने को ही शायद सरकार विकास मान रही है। वैसे आज तक प्रदेश में कोई भी सरकार विकास के नाम पर चुनाव नहीं जीत पायी है। हर चुनाव में भ्रष्टाचार केंद्रीय मुद्दा रहा है। इस उपचुनाव में भ्रष्टाचार पर कांग्रेस-भाजपा दोनों का बराबर चुप रहना है क्या गुल खिलायेगा यह देखना रोचक होगा। 

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