Friday, 19 September 2025
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क्या प्रदेश का दलित असुरक्षित और प्रताड़ित है भनालग प्रकरण से उठी चर्चा

शिमला/शैल। जिला शिमला के कुमारसेन क्षेत्र के भनालग महिला मण्डल में 28 जुलाई के दलित और ऊंची जाति की सदस्यों में एक विवाद खड़ा हो गया था। यह विवाद किसी समारोह में कोरोना बन्दिशो और आर्थिक साधनों की कमी के चलते स्वर्ण जाति के लोगोें को न बुलाये जाने के कारण हुआ था। समारोह में न बुलाये जाने से नाराज हुए स्वर्ण जाति के लोगों ने दलितों को महिला मण्डल से ही निकालने का फरमान सुना दिया। इस पर दोनो पक्षों मे 

जुबानी जंग शुरू हो गया जो हाथापाई के मुकाम तक पहुंच गया और उसमें जातिसूचक शब्दों तक का भी प्रयोग किया गया। दलित समाज ने इसके खिलाफ स्थानीय पुलिस थाना में शिकायत भी दी लेकिन इस पर कोई कारवाई नही हुई। अन्ततः 17 सितम्बर को इन लोगों ने एसपी शिमला से भेंट कर उन्हें यह शिकायत सौंपी। शिकायत सौपनें के बाद इन सदस्यों ने मीडिया से भी बात की। शैल ने इनकी बात को स्थान दिया और पाठकों के सामने रखा जिसे 60,000 से ज्यादा पाठकों ने देखा पढ़ा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश के दलित समाज के भीतर का लावा सुलग रहा है। 

भनालग प्रकरण पर जब दलित समाज की महिलाओ ने एसपी शिमला से भेंट की तब पुलिस प्रशासन हरकत में आया लेकिन अभी तक कोई ठोस कारवाई सामने नही आयी है। लेकिन भनालग की घटना के बाद दलितों के खिलाफ पूर्व में इसी सरकार के कार्यकाल में जो मामले घट चुके हैं वह फिर से चर्चा में आ गये हैं। इन मामलों में कर्मचन्द भाटिया द्वारा दर्ज कारवाई गयी एफआईआर से लेकर दलित नेता नरेन्द्र कुमार एडवोकेट द्वारा उठाये मामले फिर से चर्चा में आ गये हैं क्योंकि इन पर अबतक कोई प्रभावी कारवाई सामने नही आयी है। सबसे बड़ा आरोप तो यह लग रहा है कि स्कूलों में दिये जाने वाले मीड डे मील में कई स्थानों पर दलित समाज के बच्चो को स्वर्णों से अलग बैठाया जाता है। इस भेदभाव का शिकार तो दलित मन्त्री तक हो चुके हैं जब उन्हें मन्दिर में प्रवेश नहीं मिला था। स्कूलों में दलित और ऊंची जाति के बच्चों को अलग अलग भोजन परोसने के मामले कुल्लु, मण्डी ही नहीं बल्कि लगभग सभी जिलों में घट चुके हैं। ऐसे मामलों मे दलित उत्पीडन अधिनियम के तहत मामला दर्ज करवाने के लिये CRPC156 (3) के माध्यम से अदालत का भी सहारा लेना पडा है। 
दलित महिलाओं के मामलो में कांगड़ा के फतेहपुर में नाबालिग लड़की के साथ हुए गैंगरेप का मामला सबसे बड़ा मामला बन गया है। इसके बाद चुराह की बिमला देवी की हत्या, दरंग की लीला देवी और उसके बेटे के साथ मारपीट सराज की उमा देवी के अपहरण का मामला ऐसे प्रकरण हैं जो सभी के लिये गंभीर चिन्ता के मामले हैं। कई स्थानों पर दलितों का स्वर्णों के मन्दिरो में प्रवेश आज भी वर्जित है। दलित और स्वर्ण एक ही रास्ते से नहीं गुजर सकते ऐसा दरंग में है और उल्लघंन करने पर देवता दलितों से बकरे की मांग करता है। स्वभाविक है कि जब इस तरह का आचरण व्यवहार होगा तो दलित समाज मेें ऐसी मानसिकता के प्रति रोष और घृणा एक साथ उभरेंगे। लेकिन हैरानी इस बात की है कि सरकार का महिला सशक्तिकरण और समाज कल्याण विभाग ऐसे मामलों का गंभीरता से संज्ञान नहीं ले रहा है जबकि वह उसके अधिकार और कर्तव्य क्षेत्र में आता है। 
ऊना का एक मामला रविदास समाज को लेकर विधानसभा के इस सत्र में विधायक राकेश सिंघा एक प्रश्न के माध्यम से उठा चुके हैं। इसमें अदालत के आदेश के बावजूद इन लोगों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामलों को वापिस नहीं लिया जा रहा है। यह स्वभाविक है कि जब प्रशासन इस तरह करेगा तो इस समाज में रोष और बढ़ेगा ही। सिरमौर मेे एक वकील की हत्या का प्रकरण भी अभी तक किसी मुकाम तक नहीं पहुंचा है।











 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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