Friday, 19 September 2025
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क्या मरीजों को घटिया दवाईयां दी जा रही है कैग रिपोर्ट से उठा सवाल

कोरोना काल में भी डाक्टरों के 370 पद खाली

दो वर्षो में 128 करोड़ की दवा खरीद भी सवालों में

शिमला/शैल। जयराम सरकार का स्वास्थ्य विभाग उस समय से विवादों और चर्चाओं का केन्द्र चला आ रहा है जब से विभाग की कारगुज़ारीयों को लेकर शान्ता कुमार के नाम लिखा गया एक गुमनाम पत्र सोशल मीडिया में वायरल होकर सामने आया था। इस गुमनाम पत्र से चलकर हालात विभाग के निदेशक की गिरफतारी तक पहुंच गये। क्योंकि इस बार एक आडियो वायरल हुआ सरकार को इसका संज्ञान लेकर विजिलैन्स में केस दर्ज करवाना पड़ा। केस दर्ज होने के बाद निदेशक की गिरफतारी  हुई। निदेशक की ज़मानत के बाद आडियो संवाद के दूसरे पात्र पृथ्वी सिंह की गिरफतारी हुई। पृथ्वी सिंह की जमानत की सुनवाई के दौरान ही निदेशक की पत्नी ने अग्रिम जमानत की याचिका डाल दी। उसका आरोप था कि विभाग उसे भी गिरफतार कर सकता है। इस याचिका पर अदालत ने विजिलैन्स को निर्देश दिये हैं कि ऐसी किसी भी संभावना में इस महिला को पूर्व नोटिस दिया जाना होगा। पृथ्वी सिंह को राजीव बिन्दल का निकटस्थ प्रचारित किया गया और इस प्रचार के कारण बिन्दल को पार्टी अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा। लेकिन यह सब होने के बाद यह मामला चर्चा से बाहर हो गया है। ऐसे माना जा रहा है कि इसी कारवाई से शायद विभाग पाक साफ हो गया है।
लेकिन विभाग के अन्दर की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इस कोरोना काल में भी विभिन्न स्तरों पर डाक्टरों के 370 पद खाली हैं। इन खाली पदों से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि इस कोरोना संकट में सरकार को लोगों के स्वास्थ्य की कितनी चिन्ता है जबकि इस समय कोरोना ही राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता है। कोरोना के मरीज का ईलाज करने के लिये सात डाक्टरों की एक टीम गठित करने का मानक तय है। लेकिन राजधानी में ही कोविड अस्पताल नामज़द किये गये। दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में इसके लिये केवल चार डाक्टरों की ही टीम नामजद है। ऐसा इसलिये है कि सरकार डाक्टरों की भर्ती ही नहीं कर पा रही है। यही नहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में गुणवत्ता के साथ भी किस कदर समझौता किया जा रहा है इसका खुलासा 31 मार्च 2018 को आयी कैग रिपोर्ट से हो जाता है। इसमें कहा गया है कि  The system of quality control was practically non-existent as drug samples were not being taken at the time of supply, and drugs were being issued without  testing or waiting for test reports, resulting  in  distribution of substandard drugs.आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ और कुछ नही हो सकता है। कैग की यह रिपोर्ट विधानसभा पटल पर भी रखी जा चुकी है लेकिन सरकार की ओर से इस पर आज तक कोई कारवाई नहीं की गयी है।
विभाग में भ्रष्टाचार किस कदर व्याप्त है इसका भी कैग ने कड़ा संज्ञान लिया है। कैग की रिपोर्ट में 2015 से लेकर 2018 तक विभाग की कारगुज़ारी की समीक्षा की गयी है। विभाग में दवाईयों और अन्य सामग्री तथा उपकरणों की खरीद नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि

Assessment of demand for procurement of drugs & consumables and their distribution was neither scientific nor systematic, leading to instances of non-procurement, delay in procurement and non-availability of drugs; and non-issuing, short- issuing, excess issuing of drugs to health institutions. Drugs were purchased irregularly and without requirement resulting in their expiry. Ineffective quality control resulted in distribution of substandard drugs to patients. Procurement of machinery & equipment was not systematic in the absence of any inventory management system leading to cases of non-procurement and procurement without requirement, which resulted in items remaining unutilised/ idle and non-functional. Items were also found to be lying unutilised owing to non-posting of technical staff.

सरकार ने 1999 में ही जैनरिक औषधीयां खरीदने का फैसला ले लिया था और निदेशक स्वास्थ्य ने अक्तूबर 2016 में इस संबंध में फिर से निर्देश भी जारी किये थे। लेकिन इन निर्देशों को नज़रअन्दाज करते हुए सीएमओ मण्डी ने 2016 से 2018 के बीच 1.75 करोड़ की गैर जैनरिक दवाईयां लोकल सप्लायरों से खरीद लीं। जिनमें से 30.14 लाख की दवाईयां मार्च 2018 तक उपयोग में ही नही लायी गयी और 1.33 लाख की दवाई तो एक्सपायर भी कर गयी। रोगी कल्याण समितियों के माध्यम से वर्ष में अधिक से अधिक पचास हज़ार की ही खरीद की जा सकती है लेकिन चम्बा, कुल्लु और धर्मशाला में 2015 से 2018 बीच 5.27 करोड़ की नाॅन जैनरिक दवाई खरीद ली गयी। क्योंकि इसमें 10% से लेकर 83% तक कमीशन का मामला था। विभाग मे दवा खरीद को लेकर सरकार ने कई बार खरीद नीति में बदलाव किया है। इस बदलाव के कारण विभाग में भ्रष्टाचार के साथ ही मरीज़ो को सबस्टैण्र्ड दवाईयां तक दे दी गयी। इन नीतियों में बार-बार हुए बदलाव को लेकर विभाग में क्या कुछ घटा है इसका विस्तृत ब्योरा कैग रिपोर्ट में दर्ज है। यह सब कांग्रेस के शासनकाल में घटा है लेकिन इसमें हैरान करने वाला सच तो यह है कि जयराम सरकार ने भी इस सबको आंख बन्द करके जारी रखा। इसी का परिणाम है कि अब हालात गुमनाम पत्र से चलकर निदेशक की गिरफतारी तक पहुंच गये हैं। विपक्ष इसे भ्रष्टाचार का एक बड़ा मुद्दा बनाकर जनता में ले गया है। कांग्रेस के हर विधायक और दूसरे नेताओं ने इस पर पत्रकार वार्ताएं आयोजित की हैं अब इसमें जयराम सरकार के कार्यकाल में ही 1.4.2018 से 15.11.2019 के बीच हुई करीब 128 करोड़ की खरीद को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। कहा जा रहा है कि इसमें बहुत कुछ नियमों के विरूद्ध हुआ है और कुछ चिहिन्त सप्लायरों को विशेष लाभ पहुंचाया गया है क्योंकि 10% से लेकर 83% कमीशन प्रभावी रहा है।

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