स्वास्थ्य विभाग का सूरेत हाल
शिमला/शैल। जयराम सरकार का स्वास्थ्य विभाग एक लम्बे अरसे से चर्चाओं का केन्द्र चला रहा है। एक समय विभाग की कारगुजारीयों पर नजर रख रहे किसी व्यक्ति ने भाजपा के वरिष्ठ नेता एवम् पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार के नाम एक खुला पत्र लिखकर इस ओर ध्यान आकर्षित किया था। उस समय विभाग के मन्त्री विपिन परमार थे जो शान्ता के निकटस्थ माने जाते थे। शायद इस गुमनाम व्यक्ति ने यह खुला पत्र इसीलिये लिखा था जब उसे लगा कि विभाग में उसकी बात सुनने वाला कोई नही है। लेकिन इस पत्र का केवल यही असर हुआ कि सरकार ने इस पत्र के लेखक को खोजने की ओर सारी जांच मोड़ दी। परन्तु पत्र में उठाये गये मुद्दों की ओर कोई गंभीर ध्यान नही गया। पत्र के लेखक की खोज भी भाजपा के ही पूर्व मन्त्री रविन्द्र रवि के गिर्द घूमकर समाप्त हो गयी। इस संद्धर्भ में तब हुई एफआईआर का परिणाम क्या रहा है।
भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स का दावा करने वाली प्रदेश भाजपा सरकार उस पत्र से चलकर आज स्वास्थ्य विभाग के निदेशक की गिरफ्तारी तक पहुंच गयी है। निदेशक की गिरफ्तारी सोशल मीडिया में एक आडियो सामने आने से हुई है। जब यह आडियो सामने आया और विभाग के सचिव तक पहुंचा तब इस प्रकरण में विजिलैन्स को तुरन्त एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी कर दिये गये। इस बार आडियो बनाने वाले की तलाश को प्रमुखता नही दी गयी। विजिलैन्स ने भी सरकार से अनुमति और निर्देश मिलते ही एफआईआर दर्ज करके निदेशक की गिरफ्तारी तक कर दी है। जिस आडियो संवाद को आधार बनाकर गिरफ्तारी को अंजाम दिया गया है उस संवाद में शामिल दूसरा व्यक्ति कौन है उसकी पहचान उजागर नही की गयी और न ही उसकी गिरफ्तारी की गयी है। केवल इतना ही कहा गया है कि यह दूसरा व्यक्ति भाजपा के एक बड़े नेता का कोई करीबी है और उसके परिजनों के साथ कभी काम करता था जो छोड़कर चण्ड़ीगढ़ की किसी फर्म के साथ सप्लाई का काम कर रहा है। इस संवाद में डा. गुप्ता पैसे की मांग कर रहे हों यह सीधे नही है। यह दूसरा व्यक्ति ही पांच लाख का जिक्र कर रहा है। संवाद में एक बैंक आफ बडौदा का जिक्र भी है और इस बैंक से खाता बन्द करने की बात भी की जा रही है। लेकिन इस आडियो में आये संवाद के सारे बिन्दुओं पर जो विस्तृत जांच होनी चाहिये थी वह अभी तक सामने नही आयी है। विजिलैन्स को डाक्टर गुप्ता के घर से जो कुछ मिला है उसकी कोई अधिकारी जानकारी मीडिया को जारी नही की गयी है मीडिया में जो कुछ रिपोर्ट हुआ है उसकी प्रमाणिकता पर श्रीमति गुप्ता के ब्यान से प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं। श्रीमति गुप्ता ने यह गंभीर आरोप लगाया है कि उसके पति को फंसाया जा रहा है। श्रीमति गुप्ता ने स्पष्ट कहा है कि विभाग में खरीद के लिये एक कमेटी बनी हुई है जिसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव से लेकर नीचे तक अधिकारी शामिल हैं और हर खरीद के लिये यह सब लोग सामूहिक रूप से जिम्मेदार रहते हैं। ऐसे में श्रीमति गुप्ता का संकेत स्पष्ट है कि खरीद कमेटी के सारे सदस्यों से पूछताछ की जानी चाहिये। श्रीमति गुप्ता के ब्यान पर विभाग या विजिलैन्स की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। गुप्ता को लेकर दर्ज की गयी एफआईआर भी साईट पर अभी तक लोड़ नही की गयी है। अब डाॅ गुप्ता को आई जी एम सी से छूटी देकर कैथू जेल भेज दिया गया है। इसके बाद इन्हें अदालत में पेश किया जायेगा और तब संभव है इनकी कस्टडी की मांग की जाये। डा. गुप्ता को आई जी एम सी से छुटी देने को श्री मति गुप्ता के ब्यान की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। इससें यह अभी से गंभीर आशंका बन गयी है कि शायद विजिलैन्स मामले के बड़े पात्रों तक न पहुंच पाये और अब ये मामला डा. गुप्ता के ही इर्दगिर्द घूमता रहे।
निदेशक की इस गिरफ्तारी से पहले ही सचिवालय में सैनेटाईज़र की खरीद को लेकर एक मामला दर्ज है। पीपी किट्स और अन्य सामान की खरीद को लेकर भी विजिलैन्स में शिकायत जा चुकी है। यह भी चर्चा है कि कुछ टैण्डरों में सारी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद भी न्यूनतम निविदा वाले को आर्डर जारी नही किये गये है। एन आर एच एम को लेकर कुछ आरटीआई फाईल की गयी थी जिसमें कुछ नियुक्तियों को लेकर सवाल उठाये गये थे। लेकिन यह जानकारीयां उपलब्ध नहीं करवायी गयी हैं। चर्चा है कि आरटीआई के आवेदकों को ही मैनेज कर लिया गया है। विभाग की खरीदारीयों को लेकर तो कैग रिपोर्ट में ही गंभीर सवाल खड़े किये गये है। बल्कि कैग की टिप्पणीयों को लेकर तो विजिलैन्स में मामला दर्ज हो जाना चाहिये था। परन्तु ऐसा किया नही गया है। इससे भी भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की गंभीरता और ईमानदारी का पता चल जाता है। वैसे तो प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में तो लम्बे अरसे से घोटलों के आरोप लगते आये हैं। जब जगत प्रकाश नड्डा प्रदेश के स्वास्थ्य मन्त्री थे तब भी निदेशक की गिरफ्तारी हुई थी। उसके बाद कौल सिंह ठाकुर, राजीव बिन्दल और विपिन परमार जब स्वास्थ्य मन्त्री रहे तब भी विभाग पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं लेकिन आज तक किसी भी आरोप का कोई ठोस परिणाम सामने नही आया है।
अब भी इस आडियो प्रकरण में विजिलैन्स ने जिस तरह से कारवाई को अंजाम दिया है उससे भी स्पष्ट हो जाता है कि आडियो के सामने आते ही मामलों को दबाने के ज्यादा प्रयास किये गये हैं। क्योंकि 2018 में केन्द्र ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में संशोधन कर दिया था। यह मामला भी संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही दर्ज किया जाना चाहिये था परन्तु ऐसा नही हुआ है। वैसे भी पहले जनरल डायरी में दर्ज करके अलग-अलग टीमे बनाकर डा. गुप्ता और संवाद में जुड़े दूसरे व्यक्ति के यहां एक साथ दबिश देकर तथ्य जुटाने चाहिये थें और फिर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिये थी। बल्कि जब यह मामला खरीद से जुड़ा था तब खरीद कमेटी के सदस्यों से भी साथ ही पूछताछ हो जानी चाहिये थी। इस मामले में तय प्रक्रिया की अनदेखी करके जिस तरह से डा. गुप्ता पर नजला गिरा दिया गया है उसे आम आदमी को तो यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि सरकार इसमें बहुत गंभीर है। परन्तु प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि इसका अन्तिम परिणाम डा. गुप्ता के नुकसान के अतिरिक्त और कुछ होने वाला नही है। संशोधन अधिनियम के तहत यदि कोई रिश्वत मांगी गयी है तो उसकी शिकायत सात दिन के भीतर आ जानी चाहिये थी। लेकिन इसमें यह दूसरा व्यक्ति तो शिकायतकर्ता है नही। अतिरिक्त मुख्य सचिव की शिकायत पर सारे संवद्ध पक्षों के यहां एक दबिश दी जानी चाहिये थी और वह भी नही हुआ है। इस सबके अभाव में मामले को ठोस परिणाम तक ले जाने के लिये साक्ष्य कैसे जुटाये जा सकेंगे और इसके अभाव में यह मामला भी अखबारों की खबरें बनने तक ही सीमित रह जायेगा।
8. (1) Any person who gives or promises to give an undue advantage to another person or persons, with intention—
(i) to induce a public servant to perform improperly a public duty; or
(ii) to reward such public servant for the improper performance of public duty; shall be punishable with imprisonment for a term which may extend to seven years or with fine or with both:
Provided that the provisions of this section shall not apply where a person is compelled to give such undue advantage:
Provided further that the person so compelled shall report the matter to the law enforcement authority or investigating agency within a period of seven days from the date of giving such undue advantage:
Provided also that when the offence under this section has been committeed by commercial organisation, such commercial organisation shall be punishable with fine.