Friday, 19 September 2025
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क्या आऊट सोर्स दलालों के दबाव में केन्द्र के फैसले पर अमल नही हो रहा

क्लास थ्री, फोर के लिये परीक्षा और साक्षात्कार समाप्त कर चुकी है केन्द्र सरकार

दलालों को 23 करोड़ कमीशन दे चुकी है सरकार

शिमला/शैल। क्या रोज़गार के मामले में सरकार जनता को गुमराह कर रही है या अफसरशाही इसमें राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह कर रही है। यह सवाल इन दिनो चल रहे विधानसभा सत्र में इस सम्बन्ध में पूछे गये सवालों के जवाब में आये आंकड़ों बजट में किये गये दावों और सदन में रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज आंकड़ों में आयी भिन्नता के कारण चर्चा में आया है। रोज़गार को लेकर विधानसभा के हर सत्र में दोनों पक्षों के विधायक सवाल पूछते हैं। सरकार जवाबदेती है और साथ में आंकड़े रखती है। यह सवाल और जवाब समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते हैं। जनता इन पर विश्वास कर लेती है क्योंकि उसके पास इसकी सत्यता को परखने का कोई साधन नही होता है। कोई भी सरकार के इन आंकड़ों को एक साथ रखकर विश्लेष्ण करके निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास नही करता है।
सरकार को कुछ दस्तावेज़ सदन में रखने ही पड़ते हैं और उन दस्तावेज़ों में प्रशासन आंकड़ों के साथ कोई ज्यादा खिलवाड नही कर पाता है क्योंकि इसी सबका परीक्षण सीएजी अपनी रिपोर्टों में करता है। यह एक अलग सवाल है कि सीएजी की रिपोर्टों और सरकार द्वारा सदन में रखे गये दस्तावेज़ों का अध्ययन बहुत कम लोग करते हैं। लेकिन यह सही है कि इसी सबके सहारे वास्तविक स्थिति की जानकारी हासिल की जा सकती है। सरकार हर साल विकास करती है और यह विकास करते-करते प्रदेश आज पचपन हज़ार करोड़ से भी ज्यादा के कर्ज तले आ चुका है। इस कर्ज का जो ब्यान प्रतिवर्ष दिया जा रहा है शायद उतना कर राजस्व प्रदेश को कर्ज के सहारे खड़े किये गये संसाधनों से नही मिल रहा है। यह बजट दस्तावेजों और सीएजी की रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है। इस विकास का दूसरा प्रतिफल होता है कि इससे प्रति व्यक्ति की आय और कर्ज कितना बैठ रहा है। वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 1,95,255 रूपये प्रति व्यक्ति आय रहने का अनुमान है और कर्ज 71000रूपये है।
आय व्यय के बाद विकास का पता रोज़गार की स्थिति से चलता है। रोज़गार में सरकार और निजि क्षेत्र दोनों की भागीदारी और जिम्मेदारी एक बराबर रहती है। क्योंकि निजि क्षेत्र भी सरकार द्वारा ही खड़े किये गये आधारभूत ढांचे के सहारे अपने उद्योग खड़े कर पाता है। इसीलिये विकास में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये ‘‘सामाजिक जिम्मेदारी’’ का वैधानिक प्रावधान किया गया है। इस परिप्रेक्ष में रोज़गार के आंकड़ों की पड़ताल में जो तथ्य सामने हैं उनके मुताबिक इस समय सरकार के विभिन्न अदारों में 63126 पद रिक्त चल रहे हैं। विधायक रमेश धवाला के प्रश्न में आये जवाब के मुताबिक प्रथम श्रेणी में 4208, क्लास टू में 749, क्लास थ्री में 43412 और क्लास फोर में 14757 पद रिक्त है। विधायक होशियार सिंह के प्रश्न में आये उत्तर के मुताबिक सरकार ने 15 जनवरी 2019 तक 1304 लोगों को नियमित और 7604 को कान्टैªक्ट के आधार पर रोज़गार उपलब्ध करवाया है। विधायक राजेन्द्र राणा के प्रश्न में दिये गये जवाब के मुताबिक 31.7.2019 तक 30574 लोगों को सरकारी क्षेत्र में रोज़गार दिया गया है। इसमें 1-8-2016 से 31-7-2017 तक 11619, 1-8-2017 से 31-7-2018 तक 9030 और 1-8-18 से 31-7-2019 तक 9925 लोगों को रोज़गार दिया गया है।
पिछले सत्र में रमेश धवाला के एक प्रश्न के उत्तर में जवाब आया था कि पिछले तीन वर्षों में निजि क्षेत्र में 31-7-2019 तक 1,41,494 लोगों को रोज़गार मिला है। लेकिन यही सवाल विधायक होशियार सिंह, राजेन्द्र राणा और विक्रमादित्य ने पूछा था तो उसमें कहा गया था कि सूचना एकत्रित की जा रही है। फिर विधायक मोहन लाल ब्राक्टा, मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य ने पूछा था कि सरकारी विभागों और उपक्रमों में आऊट सोर्स पर कितने लोगों को रखा गया है और सरकार इनको नियमित करेगी या नही। इसके जवाब में बताया गया था कि 12165 लोगों को आऊट सोर्स पर रखा गया है। इस पर 153,19,80030 रूपये खर्च हुए हैं जिनमें से 130,10,21,806 कर्मचारियों पर और 23,09,58,224 रूपये इन्हे काम दिलाने वाली कंपनीयों को कमीशन दिया गया है। 12165 लोगों को 94 कंपनियों के माध्यम से रखा गया है जिसका अर्थ है कि 94 लोगों को 23 करोड़ रूपये दिये गये हैं। यहां यह सवाल उठता है कि क्लास थ्री और क्लास फोर के कर्मचारियों की भर्ती के लिये भारत सरकार ने किसी भी परीक्षा और साक्षात्कार की शर्त को समाप्त कर दिया है। अब इन पदों पर केवल शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्रों के आकलन के आधार पर ही रख लिये जाने का प्रावधान किया है। केवल रिक्त पदों को विज्ञाप्ति करने की ही आवश्यकता है। लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार केन्द्र के इस फैसले पर अमल नही कर पा रही है चर्चा है कि उन आऊट सोर्स दलालों के दबाव में सरकार इस फैसले पर अमल नही कर पा रही है। सरकार के सभी विभागों/ उपक्रमों में आऊटसोर्स पद भर्तियां की जा रही हैं। इस आऊटसोर्स को लेकर ही तो विश्वविद्यालय के समीप पाटर हिल में आर एस एस की शाखा लगाने पर बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया था। पुलिस में एक दूसरे के खिलाफ एक एफआई आर तक दर्ज हो गये थे। तब नौ जवान सभा के संयोजक चन्द्र कांत वर्मा ने आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय ने आऊटसोर्स पर भर्तियां करने के लिये टैण्डर मंगवाया था और एक काॅरपोरेट नामक कंपनी को ठेका दे दिया गया था। लेकिन बाद में मन्त्री के दबाव में इस ठेके को रद्द करके फिर से टैण्डर मंगवाये गये और सिंगल टैण्डर पर ही एक उतम हिमाचल नामक कंपनी को यह ठेका दे दिया गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आऊट सोर्स दलालों का सरकार पर भारी दबाव चल रहा है।
इससे हटकर भी यदि सरकार के आंकड़ों को आर्थिक सर्वेक्षण और सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के आईने में परखा जाये तो पता चलता है कि सरकार कर्मचारियों के सभी वर्गों में पिछले कुछ वर्षों से लगातार कमी आ रही है। सरकार के दस्तावेजों के मुताबिक 2005-06 से 2017-18 तक सरकारी और प्राईवेट सैक्टर में एक लाख से भी कम लोगों को रोजगार मिला है। लेकिन सरकार दावा कर रही है 31-7-2019 तक पिछले तीन वर्षों में अकेले प्राईवेट सैक्टर में ही 141494 लोगों को रोजगार मिला है।जबकि उद्योग विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के प्राईवेट सैक्टर में कुल 1,58000 लोगों को ही रोजगार मिला हुआ है। इस तरह विधानसभा में आये प्रश्नों के जबावों में दिये गये आंकड़ों और सांख्यिकी विभाग तथा आर्थिक सर्वेक्षण में रखे गये आंकड़ों के विरोधाभास को सामने रखते हुए यह स्वभाविक सवाल उठता है कि कौन से आंकड़ों पर विश्वास किया जाये या फिर शासन और प्रशासन दोनों मिलकर जनता को गुमराह कर रहे हैं।      

 

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