शिमला/शैल। प्रदेश से राज्यसभा सांसद विप्लव ठाकुर की सेवानिवृति से खाली हुई सीट पर अभी चुनाव होने जा रहे हैं। विपल्व कांग्रेस पार्टी से सांसद बनी थी क्योंकि तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। अब भाजपा की सरकार है तो उसी का कोई नेता इसमें जायेगा यह स्वभाविक और सामान्य सी बात है। लेकिन इस समय देश और प्रदेश में जो राजनीतिक परिस्थितियां बनी हुई हैं उनके कारण यह चयन महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि पिछले दिनों प्रदेश में दो महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले हुए हैं। पहला फैसला भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर था तो दूसरा विधानसभा अध्यक्ष को लेकर।
प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित कर दिया हुआ था। लेकिन धूमल के अपना ही चुनाव हार जाने के बाद स्थितियां बदल गयी। उन बदली हुई स्थितियांे में राजीव बिन्दल और जगत प्रकाश नड्डा दो लोगो के नाम मुख्यमन्त्री के लिये चर्चा में आये थे। नड्डा का नाम तो इतना आगे तक चला गया था कि उनके समर्थकों ने तो मिठाईयां तक बांट दी थी और शिमला की ओर से कूच भी कर दिया था। उन्हे आधे रास्ते से वापिस किया गया था यह सब जानते हैं क्योंकि जयराम ठाकुर का नाम मुख्यमन्त्री के लिये आ गया था। जयराम के मुख्यमन्त्री बनने के बाद काफी समय तक पार्टी में राजनीतिक सन्तुलन नही बन पाया था। जयराम को एक पत्रकार वार्ता में यहां तक कहना पड़ गया था कि ‘‘अब तो मैं मुख्यमन्त्री बन ही गया हूं इसलिये इसे मान भी लो’’ मुख्यमंत्री का यह कथन राजनीतिक संद्धर्भों में बहुत महत्वपूर्ण था। परन्तु क्या आज यह स्थितियां बदल पायी हैं? यह सवाल विश्लेष्कों के सामने आज भी यथा स्थिति खड़ा है। क्योंकि चर्चाओं के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष और फिर स्पीकर विधानसभा दोनो चयनों में मुख्यमन्त्री का दखल लगभग नहीं के बराबर रहा है। ऐसे में अब राज्य सभा के लिये किसके नाम पर मोहर लगती है और उसमें मुख्यमन्त्री का दखल कितना रह पाता है इस पर सबकी निगाहें लगी है।
विश्लेष्कोें के मुताबिक राज्यसभा उम्मीदवार का फैसला राष्ट्रीय राजनीति के हर दम बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखकर लिया जायेगा। दिल्ली में भड़की हिंसा के बाद भाजपा को रक्षात्मक होना पड़ रहा है। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान जिन भाजपा नेताओं के ब्यानों पर ऐतराज उठाये गये थे उनका संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने उनके प्रचार पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। इसमें अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा दोनों आ गये थे। जब चुनाव आयोग ने संज्ञान लेकर कारवाई कर दी थी तो उसी परिदृश्य में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस मुरलीधर को इन नेताओं के खिलाफ एफआईआर की बात करनी पड़ी थी। यदि जस्टिस मुरलीधर का तत्काल प्रभाव से तबादला न कर दिया जाता तो यह एफआईआर इनके खिलाफ हो ही जाती और भाजपा के लिये एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाता। लेकिन जज के तबादले से एफआईआर तो रूक गयी लेकिन बाकि स्थितियां तो वैसी ही बनी हुई हैं। इसके बाद ही कांग्रेस नेताओं के ब्यानों का संद्धर्भ उठाकर उनके खिलाफ कारवाई की मांग की जाने लगी है। लेकिन इस पूरी स्थिति पर भाजपा का कोई बड़ा नेता ख्ुालकर सरकार के पक्ष में नही आया है बल्कि अनुराग ठाकुर भी अब पब्लिक में अपने ब्यान से पलटने का प्रयास कर रहे हैं। केवल शान्ता कुमार ही एक ऐसे बड़े नेता हैं जिन्होनें शाहीन बाग में अदालत पर्यवेक्षक भेजने के फैसले पर सवाल उठाये हैं।
शाहीन बाग का धरना हिन्दु सेना की धमकी के बाद भी जारी है। अमित शाह फिर दोहरा चुके हैं कि सरकार अपने ऐजैण्डे से पीछे नही हटेगी। शाह की सभाओं में अनुराग ठाकुर की तर्ज के नारे लग रहे हैं। इससे यह स्पष्ट लग रहा है कि अभी काफी समय तक स्थिति उलझी रहेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। इस पीढ़ी में से केवल शान्ता कुमार ने ही कुछ कहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि इन बड़े नेताओं में से किसी ने कोई अप्रिय ब्यान दे दिया तो उससे पार्टी की मुश्किलें एकदम बढ़ सकती हैं। इस समय भाजपा को ऐसे बड़े नेताओं की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है और यह राज्यसभा के माध्यम से ही पूरी की जा सकती है। फिर शान्ता कुमार ने चुनावी राजनीति से ही बाहर रहने का फैसला किया है। यदि पार्टी उनकी आवश्यकता को मानते हुए उन्हे राज्यसभा के लिये मनोनीत कर देती है तो शायद वह इस जिम्मेदारी से इन्कार नही कर पायेंगे। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा प्रदेशों के माध्मय से बहुत वरिष्ठ लोगों को ही राज्यसभा में लाने का प्रयास करेगी जो उसे वैचारिक मार्गदर्शन दे सकें।
वैसे इस समय प्रदेश से जल शक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह, पूर्व अध्यक्ष सतपाल सत्ती, चन्द्र मोहन ठाकुर और महेन्द्र पाण्डे के नाम भी चर्चा में चल रहे हैं। महिला मोर्चा की पूर्व प्रदेश अध्यक्षा इन्दु गोस्वामी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वह कुछ दिनों मे कोई बड़ा धमाका करने वाली हैं। मन्त्रीमण्डल में खाली चल रहे मन्त्री पदों को भी बजट सत्र के दौरान ही भरने की चर्चा चल पड़ी है। अभी जब नड्डा प्रदेश में थे तो मुख्यमन्त्री विधानसभा छोड़कर पूरा समय उन्ही के साथ रहे। अब मुख्यमन्त्री दिल्ली में अमितशाह को मिलकर लौटे हैं। इस मुलाकात में संभावित नये मन्त्रियों के नाम फाईनल होने से लेकर शाह द्वारा कुछ मामलों में नाराज़गी व्यक्त करने तक की चर्चाएं सामने आ गयी हैं। ऐसे में पूरा परिदृश्य रोचक हो गया है।