शिमला/शैल। हिमाचल पथ परिवहन निगम घाटे और कर्जोें के सहारे चल रही है यह एक सार्वजनिक सच है। लेकिन इस सच के बाद भी परिवहन निगम ने जब पिछले दिनों मुख्यमन्त्री को इलैक्ट्रिक कार भेंट करने का दम दिखाया तब लगा था कि निगम अपने कर्मचारियों और विशेषकर सेवानिवृत कर्मचारियों को भी उनके सेवानिवृति लाभ देने में भी उतनी ही तत्परता और संजीदगी दिखायेगी। क्योंकि उसी दौरान इन कर्मचारियों ने प्रैस क्लब में एक पत्रकार वार्ता आयोजित करके अपनी परेशानी प्रबन्धन और सरकार के सामने रखी थी। लेकिन कर्मचारियों के इस प्रयास का किसी पर कोई असर नही हुआ और अन्ततः एक सेवानिवृत कर्मचारी रणजीत सिंह का CWP/423 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है। इस याचिका का कड़ा संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा पर आधारित एकल पीठ ने पथ परिवहन निगम को सेवानिवृत कर्मचारियों के सवोनिवृति लाभ तीन माह के भीतर अदा करने के निर्देश दिये हैं। यही नहीं ऐसा न करने पर चैथे माह से 6% की दर पर उन्हें अदायगी तक ब्याज देने और इसके लिये जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी से 100 रूपये प्रतिदिन जुर्माना वसूलने के भी निर्देश दिये हैं। अदालत के इन निर्देशों का आने वाले समय में प्रदेश सरकार और उसके विभिन्न अदारों के सेवानिवृत कर्मचारियों को भी लाभ मिलेगा ऐसा माना जा रहा है। क्योंकि अधिकांश सेवानिवृत कर्मचारी अपने लाभों के लिये लम्बे समय तक इन्तजार करते देखे गये हैं।
हिमाचल ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन प्रदेश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सबसे बड़ा माध्यम से है। इस समय निगम के पास 11 क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय, 29 परिवहन डिपो और 9 सब डिपो हैं। इनमें 3161 बसों का फ्लीट है। जोगिन्द्र नगर, नेरवा और धर्मपूर डिपुओं के पास अपना कोई कार्यालय और कार्यशाला न होने के कारण इन्हे कोई बस उपलब्ध नही करवाई गयी है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 14 निजि और 8 हिमाचल पर्यटन विकास निगम की वाल्वो बसें भी आप्रेट कर रही हैं। परिवहन निगम की वाल्वो बसों से 5000 रूपये प्रति बस प्रतिदिन का टैक्स लिया जाता है। निजिक्षेत्र में चल रही वाल्वों बसों का मालिक कौन है और कहां से है इसका कोई विवरण निगम के पास नही है क्योंकि इनका टैक्स इनके बस नम्बर के आधार पर उगाहया जाता है। जिन वाल्वों बसों का पंजीकरण प्रदेश से बाहर का है उन्हें पांच वर्ष का परमिट दिया जाता है। जयराम सरकार आने के बाद 342 नये बस रूट घोषित किये गये थे जिनके लिये 919 लोगों ने आवेदन किये थे। इनमें से केवल 23 रूट ही आवंटित हो पाये हैं। सरकार द्वारा घोषित 166 रूट ऐसे रहे हैं जिनके लिये एक भी आवदेन नही आया है। जो रूट आंवटित नही हो पाये हैं उनके के लिये धर्मशाला, चम्बा, बिलासपुर, मण्डी और ऊना के कार्यालयों में बैठकें आयोजित की जा रही हैं। जयराम सरकार आने के बाद बसों की नियमित चैकिंग के 3325 चालान काटे गये और इनसे 1,34,01,400 रूपये का जुर्माना वसूला गया है।
पथ परिवहन निगम की घाटे की स्थिति का आलम यह है कि इसके चलते कर्मचारियों को उनके सेवानिवृति लाभ नही दिये जा रहे हैं। 2014 में भी एक कर्मचारी को एजी आफिस द्वारा स्पष्ट निर्देश दिये जाने के बाबजूद घाटे का कवर लेकर यह लाभ नही दिये गये थे और उसे उच्च न्यायालय जाना पड़ा था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब निगम मुख्यमन्त्री को इलैक्ट्रिक कार गिफ्ट करने की बात कर सकता है तो अपने कर्मचारियों को यह लाभ क्यों नही दे सकता। निगम की कार्य प्रणाली पर इसलिये भी सवाल उठने स्वभाविक हैं कि 1989-90 में निगम का प्रति किलो मीटर खर्च 6.30 रूपये था और 2000-01 में यह बढ़कर 17.22 रूपये हो गया जबकि इस दौरान सड़को की हालत में सुधार हुआ है और टैक्नौलोेजी में भी। दूसरी ओर 1989-90 में किराया 19.37 पैसे प्रति किलो मीटर था जो कि 2000-01 में बढ़कर 59.07 पैसे हो गया है। सामान्यतः किसी भी परिवहन निगम के आकलन के आधारभूत मानक यही होते हैं। इन मानकों के अतिरिक्त अन्य सारे कारक जो बैलैन्सशीट में उठाये गये हैं वह सब प्रबन्धन की अपनी कुशलता पर निर्भर करते हैं।
The Himachal Pradesh High Court, while disposing of an execution petition and a petition filed by Sh. Ranjit Singh, a retired employee of HRTC, has reprimanded HRTC for not giving the retirement benefits to the retired employees well in time. Disposing of the petition, Vacation Judge Mr. Anoop Chitkara said that the attitude of HRTC towards low-level retired employees is pathetic, insulting and insensitive as despite being working sincerely throughout their working life, the retired employees have to approach Courts for release of their post retirement benefits. The Court said that litigation is neither a free lunch for the employee nor for the employer. The Court expressed surprise that instead of expressing gratitude to its employees by making timely payments, HRTC is willing to spend money on litigation.
The court directed HRTC to expeditiously settle all such pending cases of retired employees and pay the dues to all within three months of retirement. However, the Court clarified that HRTC, while disbursing the retiral benefits, should ensure that no disciplinary inquiry or other issue is pending against the retired employee.
The Court also directed that in case of default, the officer/ employee sitting on the files and found responsible for the delay without any proper explanation, will have to pay compensation at the rate of Rs 100 per day. The Court further directed that apart from this compensation, HRTC will have to pay interest at the rate of 6% per annum, compoundable monthly, from the first day of the fourth month of retirement until the entire amount is credited to the retired employee's account.