शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश लोकसेवा आयोग की सदस्य समीति मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि मीरा वालिया की नियुक्ति पूरी तरह संविधान में तय प्रक्रिया अनुरूप हुई है और उसमें कुछ भी अवैध नही है। स्मरणीय है कि मीरा वालिया की नियुक्ति प्रदेश विधानसभा के लिये दिसम्बर 2017 में हुए चुनावों से बहुत पहले हुई थी लेकिन भाजपा ने 2017 के चुनावों में इसे एक बड़े मुद्दे के रूप में उठाया था और अपने आरोप पत्र में भी इसे प्रमुख स्थान दिया था। भाजपा का आरोप था कि यह नियुक्ति तय नियमों के अनुरूप नही हुई है। बल्कि जब ला स्टूडैण्ट हेम राज ने इसे चुनौती दी थी तब भी यह चर्चा उठी थी कि इस याचिका के पीछे अपरोक्ष में भाजपा नेतृत्व का ही हाथ है। इस परिप्रेक्ष में आज प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में नियुक्ति वैध ठहराना और इसे चुनौती देने वाले की नीयत पर गैर ईमानदारी की अदालत द्वारा टिप्पणी किया जाना अपने में बहुत कुछ कह जाता है।
गौरतलब है कि संविधान की धारा 316 से लेकर 320 तक लोकसेवा आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति, उनके दायित्वों और उनको हटाये जाने की प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके मुताबिक नियुक्ति किया जाने वाला व्यक्ति सरकार और महामहिम राज्यपाल की नजर में इसके लिये पात्र होना चाहिये। इस पात्रता में केवल यही शर्त है कि आयोग के कुल सदस्यों की संख्या का आधा भाग ऐसे लोगों का होना चाहिये जो इस नियुक्ति से पूर्व कम से कम दस वर्ष तक राज्य सरकार की सेवा में रहे हों। आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है और इसके लिये भी पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सदस्य के खिलाफ लगे आरोपों की जांच किया जाना आवश्यक है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आयोग के सदस्यों को हटाने के लिये जितना कड़ा प्रावधान किया गया है उतना उनकी नियुक्ति के लिये नहीं है आयोग में प्रदेश के मुख्य सचिव सेना के सेवानिवृत जनरल से लेकर सरकार के विभाग के उपनिदेशक तक को नियुक्तियां मिलती रही हैं। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह नियुक्तियां अधिकांश में राजनीतिक नेतृत्व की ईच्छानुसार ही होती हैं। क्योंकि सरकार में दस वर्ष की सेवा का प्रावधान रखते हुए यह नही कहा गया है कि सेवा किस स्तर की होनी चाहिये।
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कोई बहुत कड़े नियम न होने के कारण इस संबंध में समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं आ चुकी हैं। वर्ष 1985 से लेकर 2013 तक छः याचिकाएं आयी हैं। जिनमें यह निर्देश दिये गये हैं कि इन नियुक्तियों को लेकर ठोस प्रक्रिया सुनिश्चित की जाये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2013 में दिये गये निर्देशों के बाद ही हिमाचल लोकसेवा आयोग के वर्तमान चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्तियां हुई हैं। लेकिन हिमाचल सरकार ने इन निर्देशों के अनुसार प्रदेश में अलग से आज तक कोई प्रक्रिया तय नही की है। इसलिये यह माना जा रहा था कि मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका से पूरा लोकसेवा आयोग प्रभावित होगा। लेकिन जो याचिका दायर की गयी थी उसमें मीरा वालिया की नियुक्ति को उसके खिलाफ एक समय दायर हुए भ्रष्टाचार के मामले के आधार पर चुनौती दी गयी थी जबकि यह मामला नियुक्ति से बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था और इसे किसी ने भी अगली अदालत में चुनौति नही दी थी। अब जिस हेमराज ने मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती दी थी वह इससे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नही होता था। इस नाते उसका इसी नियुक्ति को चुनौती देना नही बनता था। यदि उसने सभी नियुक्तियों को एक बराबर चुनौती दी होती तो पूरा परिदृश्य ही अलग हो जाता। हेमराज ने इस नियुक्ति को चुनौती देने के साथ ही यह आग्रह किया था कि ऐसी नियुक्तियों के लिये सरकार को ठोस प्रक्रिया तय करने के निर्देश दिये जायें। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को मानते हुए सरकार को निर्देश दिये हैं कि इस बारे में अतिशीघ्र विस्तृत प्रक्रिया तय की जाये। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद यह देखना रोचक होगा कि क्या जयराम सरकार आयोग में अगली नियुक्ति से पहले ऐसी प्रक्रिया अधिसूचित कर पाती है या नही।
यह है निर्देश
The High Court of Himachal Pradesh today dismissed the petition, challenging the order of appointment of Smt.Meera Walia as a Member of Himachal Pradesh Public Service Commission.
While disposing of the petition filed by one Shri Hem Raj, a law student, Division Bench comprising the Chief Justice L. Narayana Swamy and Justice Jyotsna Rewal Dua stated that the appointment of respondent has been made by adopting and following the due procedure as mandated by the Constitution of India and the respondent has also been discharged by the Special Judge in FIR on the allegations of corruption. The Court said that it is held that the petitioner has not come to the Court with clean hands, but the Court refrained itself from imposing cost on the petitioner for filing such petition, for being a law student and law abiding citizen.
The Court said that it hopes that the State of H.P. must step in and take urgent steps to frame memorandum of Procedure,administrative guidelines and parameters for the selection and appointment of the Chairperson and Members of the Commission, so that the possibility of arbitrary appointments is eliminated.
The petitioner had challenged the appointment of Meera Walia as a member of H.P. Public Service Commission alleging it to be in violation of the constitutional provisions as well as law laid down by the Hon'ble Apex Court. The petitioner had also alleged that an FIR was lodged against Meera in the State Vigilance and Anti Corruption Bureau Shimla under sections 13 (1) (e) and 13 (2) of the Prevention of Corruption Act in the year 2008 and a challan was also filed in the court of Special Judge(Forests), Shimla, but in the year 2013, the State presented the supplementary report in the court of Special Judge(Forests), Shimla, stating that no case of disproportionate assets was made out against the accused on the basis of which Meera Walia was discharged on 9 September 2014. He had alleged that the state government ignored all these facts and appointed Meera as a member in Himachal Pradesh Public Service Commission.
He had prayed that the order dated 5.5.2017, appointing Meera Walia as a Member of Himachal Pradesh Public Service Commission may be quashed and set aside and the respondent State may be directed to frame guidelines or parameters for the appointment of Chairman and Members of the H.P. Public Service Commission.