Friday, 19 September 2025
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चुनाव परिणामों के संगठन और सरकार के लिये खडें किये कई सवाल

शिमला/शैल।  भाजपा  प्रदेश के दोनों उप चुनाव जीत गयी है लेकिन इस जीत के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या इन चुनाव परिणामों पर जय राम सरकार को सही में खुश होना चीहियेया उसे आत्म मंथम करना चाहिये। क्योंकि इसी सरकार ने पांच माह पहले हुये लोकसभा चुनावो में प्रदेश की चारों सीटों पर रिकार्ड तोड जीत दर्ज की थी। इसी जीत के दम पर यह उप चुनाव बीस-बीस हजार से अधिक की बढ़त के साथ जीतने का दावा किया था। बल्कि गुप्तचर ऐजैन्सीयों ने भी शायद इसी तरह का आकलन सरकार को परोसा था। इसी तर्ज पर प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री पवन राणा ने हमीरपुर में पार्टी की एक बैठक में यह फैसला सुनाया था कि संगठन ने पचास से कम आयू के कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। पवन राणा के इसी ऐलान के परिणाम स्वरूप दोनों जगह युवाओं को तहरीज दी गयी।  अब जो परिणाम आये हैं वह इन सब दावों की हवा निकालने वालें हैं बल्कि चर्चाएं तो यहां तक हैं कि यदि कांग्रेस में आपसी फूट नही होती और वह गंभीरता से इस उप चुनाव को लेती तो शायद परिणाम कुछ और ही होते।
इस परिदृश्य में यदि प्रदेश के राजनितिक परिदृश्य में उपचुनाव का आकलन किया जाये जो यह सपष्ट है कि 2022 मे भाजपा और जय राम के लिये राहें आसान नही होंगी। क्योंकि पिछले दिनों कांगड़ा की भाजपा राजनिति के अन्दर संगठन मंत्री पवन राणा और ज्वाला मुखी के विधायक रमेश ध्वाला को लेकर जो अलग-अलग ध्रुव खडे हुये थें उनका राजनितिक प्रतिफल उपचुनाव के परिणमों के बाद अपना रंग दिखाने की तैयारी में है।भाजपा के भीतरी सुत्रों की माने तो धर्मशाला मे जो समर्थन पार्टी के बागी राकेश चौधरी  को मिला है उसके लिये कांगड़ा से ताल्लुक रखने वाले पार्टी के तीन चौधरी नेताओं रमेश  धवाला सरवीण चौधरी और संजय चौधरी की जबाव तल्वी की जा रही है। इसी तरह का खेल पच्छाद मे भी खेलने की तैयारी की जा रही है। इस खेल के परिणाम क्या होंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह तय है कि जहां संगठन ने युवा नेतृत्व का आगे उभारने का फैसला लिया है वहीं पर उसे इस चुनाव में लोक सभा के अनुपात में बहुत कम अन्तर से जीत की समीक्षा करके इसकी जिम्मेदारी केन्द्र या राज्य सरकार किसी एक पर तो डालनी ही होगी। क्योंकि केन्द्र के कारण ही प्रदेश में सरकार बन पायी थी। फिर लोस चुनाव से पहले घटे पुलवामा और बालाकोट के कारण प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें भाजपा को इतने बडे़ अन्तराल से मिल पायी हैं। लेकिन अब इन उपचुनावों में तो राज्य सरकार के कामकाज का आकलन जनता के लिये एक आधार बनता ही है और इस पैमाने पर राज्य सरकार अपनी सफलता का कोई दावा नही कर सकती है। बल्कि आने वाले दिनों में यदि पार्टी के भी तर यह सवाल भी खड़ा हो जाये कि क्या वर्तमान नेतृत्व के साये में 2022 पार्टी के लिये सुरक्षित हो सकता है या नही तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिये।
अभी सरकार के दो मंत्री पद भरे जाने हैं। इन पदों को भरने के लिये परफारमैन्स के पैमाने की बाते अब फिर उठनी शुरू हो गई हैं। इस परफारमैन्स के आईने में यह सपष्ट है कि यदि पच्छाद में उपचुनाव की कमान आई पी एच मंत्री ठाकुर महेन्द्र सिंह न संभालते तो यहां पर जीत संभव नही हो पाती।यह महेन्द्र सिंह ही थे जिन्होने हर रोज आचार संहिता उल्लंघन की शिकायते सहते हुये भी अपनी कार्यप्रणाली नही बदली। ऐसे मे सिरमौर से मंत्री पद का दावा उनकी संस्तुति के बिना आगे नही बढ़ पायेगा यह तह है। इसी तरह धर्मशाला में  उप चुनाव की कमान स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार के पास थी। वहां पर परमार के साथ राकेश पठानिया ने भी सक्रीय भूमिका निभायी है।  लेकिन इस सब के बाद भी धर्मशाला में जीत का अन्तर वह नही रह पाया जिसका दावा किया जा रही था। अब यदि धर्मशाला के लिये चौधरी नेताओं की संभावित जवाब तल्वी सही में ही हो जाती है तब पार्टी के अन्दर कई और सच सामने आयेंगे। इस जवाब तल्वी के साथ ही कांगड़ा से मंत्री पद के दावे पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े हो जायेंगे। इसी के साथ यह सवाल भी चर्चा मे आयेगा कि पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राकेश चौधरी और दयाल प्यारी  को क्या पार्टी कुछ बड़ें नेताओं का आर्शीवाद तो हासिल नही था।  क्योंकि जितने वोट यह विद्रोही केन्द्र और राज्य सरकार दोनों का विरोध सहते हुये ले गये हैं उससे प्रमाणित हो ही जाता है कि पार्टी में निष्ठा से काम करने वालों के लिये कोई जगह नही रह गयी है निष्ठा का स्थान जब नेतृत्व के गिर्द परिक्रमा ले लेती है तब ईमानदार कार्यकर्ता के पास बगावत के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेश नही रह जाता है।  
अब  इन उपचुनावों के बाद दो मंत्री पदो ंके साथ ही विभिन्न निगमों बोर्डों में भी ताजपोशियां होनी है। इनमें यह सामने  आ जायेगा कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को कहां क्या स्थान हासिल हो पाता है। फिर जो लोग एक समय हिलोपा और आम आदमी पार्टियों में चले गये थे उनकी वापसी तो भाजपा में हो गई है लेकिन भाजपा का वरिष्ठ कार्यकर्ता होने के सम्मान के अतिरिक्त उन्हे अभी तक कुछ भी हासिल नही हो पाया है। ऐसे में कांग्रेस आदि के जिन नेताओं के भाजपा मे शामिल होने की परोक्ष /अपरोक्ष चर्चा चली थी और इस चर्चा के संकेत एक समय पार्टी अध्यक्ष  सतपाल सती तक ने दे दिये थे अब उनकी भूमिका और रिश्ते भाजपाके साथ क्या मोड़ लेते हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा। ऐसे में इस उपचुनाव के परिणाम प्रदेश भाजपा के लिये कई ऐसे सवाल खड़े कर गये हैं जिनके उतर तलाशना आसान नही होगें।


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