शिमला/शैल। भाजपा ने अन्ततः धर्मशाला से विशाल नेहरिया और पच्छाद से रीना कश्यप को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन दोनों की ही उम्मीदवारी को पार्टी के ही कार्यकर्ताओं से बगावत भी मिल गयी है। दोनों ही स्थानों पर पार्टी के विद्रोहीयों ने नामांकन दाखिल करके पार्टी के अधिकारिक चयन को चुनौती दे दी है। पच्छाद में तो विद्रोहीयों ने नामांकन के समय ही शीर्ष नेतृत्व के सामने नारेबाजी करके अपना विद्रोह और विरोध स्पष्ट कर दिया है। इस समय भाजपा केन्द्र से लेकर राज्यों तक सत्ता में है। पार्टी मोदी के नाम पर कुछ भी हासिल करने का दावा लेकर चल रही है क्योंकि जो बहुमत पार्टी को लोकसभा चुनावों में हासिल हुआ है शायद उसकी कल्पना कार्यकर्ताओं को भी नही थी। बल्कि इसी सफलता के बाद ‘‘मोदी
है तो मुमकिन है’’ का नारा सामने आया है। आज पूरी पार्टी इसी नारे की लय में बह रही है इसलिये जब ऐसी स्थितियां उभर जाती हैं तो राजनीति के क्षेत्र में इसका स्वभाविक प्रतिफल यह हो जाता है कि हर कार्यकर्ता विधायक/सांसद बनने की ईच्छा रखने लग जाता है।
हिमाचल के इन उपचुनावों के लिये भाजपा की स्थिति कुछ इसी प्रकार की रही है और इसी के चलते भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा अन्तिम दिन में ही हो पायी है जबकि सबसे लम्बी चर्चा इसी के नामों की रही है। बल्कि इस चर्चा में धर्मशाला से जो नाम पेनल में चल रहे थे उनको लेकर शायद पार्टी के वरिष्ठतम नेता लाल कुष्ण आडवाणी ने शांता कुमार से भी फोन पर जानकारी मांगी थी। सूत्रों की माने तो इस जानकारी में आडवाणी ने यह भी पूछा था कि धर्मशाला के पुराने कार्यकर्ताओं मिनोचा, कन्दौरिया और राकेश कपूर के नाम पैनल में क्यों नही रहे हैं। यह वह कार्यकर्ता है जो संघ के पुराने स्वयंसेवक रहे हैं। लेकिन इन लोगों का नाम पैनल में भी नही रखा गया था जबकि इन्होंने भी टिकट के लिये आवेदन कर रखे थे। अब जो अन्त में उम्मीदवार सामने आये है शायद उनका संघ से कभी कोई वासता ही नही रहा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि चुनाव आदि के मामले में भाजपा भी कांग्रेस के ही नक्शे कदम पर चल पड़ी है इसमें भी वरिष्ठता और संघ के प्रति समर्पण कोई पैमाना नही रह गया है। शायद इसी कारण से भाजपा को धर्मशाला और पच्छाद में विद्रोहीयों का सामना करने की स्थिति खड़ी हो गयी है।
भाजपा अपने विद्रोहीयों को चुनाव मैदान से हटा पाती है या नही यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन इस दौरान धर्मशाला को लेकर जिस तरह से नाम चर्चा में आये उनमें आईजीएमसी में कार्यरत चम्बा से ताल्लुक रखने वाले एक डाक्टर का नाम भी सामने आया है इस नाम नेे सबको चैंका दिया था क्योंकि यह चर्चा रही कि इस नाम की प्रोपोजल मुख्यमन्त्राी के कार्यालय में एक पत्रकार की सिफारिश पर आयी और मुख्यमन्त्री ने भी इसका तुरन्त समर्थन कर दिया। योजना थी कि इस नाम पर दिल्ली से ही मोहर लगवा दी जायेगी और यह नाम सीधे हाईकमान के नाम लगा दिया जायेगा तथा उस सूरत में यहां पर कोई भी इसका विरोध नही कर पायेगा। यहां यह माना जा रहा था कि धर्मशाला के टिकट के लिये अन्तिम राय शान्ता कुमार की ही हावि रहेगी और उनका उम्मीदवार कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक के चेयरमैन राजीव भारद्वाज को माना जा रहा था। किश्न कपूर का भी राजीव भारद्वाज के लिये पूरा समर्थन माना जा रहा था। लेकिन अन्त में विशाल नेहरिया के नाम पर हाईकमान की मोहर लगने से यह संदेश चला गया है कि धर्मशाला में शान्ता और जयराम दोनों की ही राय को अधिमान नही दिया गया है।
धर्मशाला में शायद राजीव भारद्वाज का नाम कांगड़ा बैंक के पिछले दिनों उभरे लोन प्रकरण के कारण आगे नही बढ़ पाया है। माना जा रहा है कि इस लोन प्रकरण को लेकर गुप्तचर ऐजैन्सीयों की रिपोर्ट केन्द्र के पास पहुंच चुकी थी और उसी कारण से धर्मशाला में पूरा गणित उल्ट गया है। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और वहां पर भाजपा की राजनीति जिस तरह से पिछले दिनों पवन राणा-रमेश धवाला और इन्दू गोस्वामी तथा राकेश पठानिया की आक्रामकता का शिकार रही है उसका इस उपचुनाव पर किस तरह का असर पड़ता है यह देखने लायक होगा।