Friday, 19 September 2025
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क्या टीसीपी का प्रस्तावित संशोधन संभावित निवेशकों के दबाव का परिणाम है

शिमला/शैल।  प्रदेश सरकार की टीसीपी के तहत प्लानिंग और साडा क्षेत्रों में शामिल किये गये ग्रामीण क्षेत्रों को टीसीपी से बाहर करने पर विचार कर रही है। इसके लिये आईपीएच मंत्री महेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में मन्त्रीयों की एक उप समीति बनाई गयी है। कहा गया है कि इस उप समिति के पास ग्रामीण क्षेत्रों से इस आशय के 120 प्रस्ताव आये हैं। पिछले दिनों प्रदेश सचिवालय में हुई इस उप समिति की बैठक में फैसला लिया गया कि ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं के लिये जन सुनवाई की जायेगी। यह जन सुनवायी शिमला मे सुरेश भारद्वाज, कुल्लु -मनाली में गोविन्द ठाकुर और मण्डी में स्वयं महेन्द्र सिंह ठाकुर करेंगे। शिमला में हुई उप समिति की बैठक में इन मन्त्रीयों के अतिरिक्त विधायक सुखविन्दर सिंह सुक्खु, विधायक अनिरूद्ध सिंह और सचिव टीसीपीसी पालरासू और कुछ अन्य अधिकारी भी शामिल रहे हैं। इस बैठक में शिमला को लेकर यह सुझाव आया है कि यहां भवनों की ऊंचाई 21 मीटर तय कर दी जानी चाहिये। शिमला, मण्डी और कुल्लु, मनाली के अतिरिक्त प्रदेश में और कहां पर इस उप समिति की बैठकें होंगी तथा और कहां-कहां से प्रस्ताव आये हैं यह अभी सामने नही आया है।
स्मरणीय है कि प्रदेश के कई हिस्सों में हुए अवैध निर्माणों का मामला प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सुर्खीयों में रहे हैं। अदालत के आदेश पर ऐसे निर्माणों के बिजली पानी तक काटे गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय से ही एक मामला शुरू में एनजीटी में गया था और उसके बाद ही एनजीटी ऐसे मामलो पर गंभीर हुआ। कसौली का मामला एनजीटी के आदेशों का ही परिणाम है। कुल्लु में मन्त्री महेन्द्र सिंह ने एनजीटी के आदेशों पर अपने होटल का अवैध निर्माण स्वयं गिराया है। योगेन्द्र सेन की याचिका पर दिये गये फैसले में एनजीटी ने अढ़ाई मंजिल तक ही निर्माण सीमा इसलिये तय की है क्योंकि शिमला ही नही हिमाचल प्रदेश का 80% भाग संवदेनशील भूकंप जोन में आता है। आपदा प्रबन्धन के तहत सरकार द्वारा किये गये अपने अध्ययन की रिपोर्ट में यह दर्ज है कि यहां पर हल्का सा भी भूकंप का झटका आने पर 30,000 लोगों की जान जायेगी। इसी अध्ययन के बाद सचिवालय में सचिव स्तर की एक कमेटी गठित की गयी थी और पहली बार वर्ष 2000 में शिमला में सरकारी और गैर सरकारी निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। एनजीटी के 16-11-2017 के फैसले का आधार पर इसी सचिव कमेटी की सिफारिशें बनी हैं और फैसले में यह विशेष रूप से दर्ज भी है। इसी फैसले में निर्माणों को नियमित करने के लिये 5000 से 10,000 रूपये प्रति वर्ग फुट जुर्माने का प्रावधान रखा गया है। प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय और एनजीटी तक में प्रदेश में अवैध निर्माणो का आंकड़ा 35000 तक आया है। लेकिन सरकार आज भी सदन में यही जानकारी दे रही है कि अवैध निर्माणों के केवल 8782 मामले ही उसके सामने आये हैं। इनमें भी नगर क्षेत्रों के 5444 तथा नगरों से बाहर के 3338 मामले ही हैं। नगर निगम शिमला में एनजीटी के फैसले के बाद केवल 14 नये और 264 संशोधित मामले स्वीकृति के लिये आये हैं। लेकिन अवैध निर्माणों को लेकर निगम मौन रहा है जबकि पिछले दिनों उच्च न्यायालय में आये एक मामले में यह संख्या 8300 कही गयी है।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश में अवैध निर्माण एक बहुत बड़ी समस्या है। किसी भी आपदा की घड़ी में इनके कारण हजारों की संख्या में जान माल का नुकसान हो जायेगा। इसी नुकसान की आशंका निर्माणों पर रोक और उन्हे अढ़ाई मंजिल तक सीमित किया गया है। लेकिन जिस ढंग से टीसीपी में संशोधन की भूमिका ग्रामीण क्षेत्रों को प्लानिंग और साडा से बाहर करने की तैयार की जा रही है। उससे यह सवाल उठता है कि क्या संशोधन के बाद यहां पर बहुमंजिलों के निर्माण की तैयारी की जा रही है। आखिर किसके लिये इस माध्यम से यह सुविधा देने की तैयारी हो रही है। अभी शिमला के 30 किलोमीटर के दायरे में ज़मीन मांगने के 26 आवदेन आये हैं जिनमें से आठ तो सीधे आरएसएस से ही ताल्लुक रखते हैं। इसी किलो मीटर के दायरे में कुछ मंत्रीयों और अधिकारियों की भी ज़मीने हैं। मन्त्रीयों की जो उप समिति बनी है शायद उसके भी सदस्य की जमीन इस दायरे में आती है। एनजीटी के फैसले के खिलाफ सरकार सर्वोच्च न्यायालय में गयी थी लेकिन शायद वहां से इसमें कोई राहत नही मिली है। फिर भवन निर्माण क्षेत्र में आने वाले संभावित निवेशकों की ओर से भी शायद यह दबाव है कि निर्माण पर लगी अढ़ाई मंजिल की शर्त को हटाया जाये। क्योंकि कोई भी भवन निर्माता अढ़ाई मंजिल का निर्माण करके इसमें लाभ नही कमा सकता। चर्चा है कि अभी पंजीकृत हुए एक गुप्ता भवन निर्माता ग्रुप ने शिमला के 30 किलो मीटर के दायरे में सौ बीघा से अधिक ज़मीन की खरीद की है लेकिन एनजीटी के मौजूदा फैसले के तहत यह निर्माण लाभकारी न हों इसी आशंका के चलते ऐसे लोगों के दबाव में आकर टीसीपी में संशोधन का रास्ता अपनाया गया है और उसमें शिमला, मण्डी तथा कुल्लु मनाली पर ही फोकस रखा गया है। इस प्रस्तावित संशोधन पर पर्यावरण प्रेमियों की क्या प्रतिक्रिया रहती है यह आने वाले दिनों में सामने आयेगा।

                                       यह हैं 26 आवेदक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



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