Friday, 19 September 2025
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महिला सुरक्षा के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है राजकुमारी का एफ आई आर के लिये अदालत जाना

शिमला/शैल। जिला सोलन के अर्की की एक महिला को पुलिस में एक एफआईआर दर्ज करवाने के लिये सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा़ खटखटाना पड़ा है क्योंकि पुलिस थाना अर्की में उनकी शिकायत पर एक सरकारी रपट ही दर्ज की गयी। पुलिस थाना अर्की के इस व्यवहार पर इस महिला ने एसपी सोलन को शिकायत भेजी। लेकिन इस पर भी जब पुलिस थाना में कोई कारगर कारवाई न हुई तब इसे अदालत की शरण में जाना पड़ा। अदालत में जब पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ इसने अपनी शिकायत रखी तो अदालत ने तुरन्त प्रभाव से इसका संज्ञान लेकर पुलिस को एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच के निर्देश जारी कर दिये। अदालत के निर्देशों पर पुलिस ने भी एफआईआर दर्ज कर ली है। यहीं पर पहला सवाल खड़ा होता है कि जब अदालत ने शिकायत और उसके साथ लगे दस्तावेजों को एफ आई आर के लिये सक्षम आधार मानकर निर्देश जारी कर दिये तो पुलिस ने ऐसा क्यों नही किया। जबकि ललिता कुमारी मामले में सर्वोच्च न्यायालय बहुत पहले ही यह निर्देश जारी कर चुका है कि संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली हर शिकायत पर जांच से पहले एफआईआर दर्ज की जाये। सर्वोच्च न्यायालय के यह भी निर्देश हैं कि यदि पुलिस की नजर में मामला एफआईआर का न बनता हो तो उसके कारण लिखित में शिकायतकर्ता को बताया जाये। ऐसा न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने के भी निर्देश शीर्ष अदालत ने दे रखें हैं।
अदालत को दी गयी शिकायत के मुताबिक इस महिला राजकुमारी का पति स्व. दीनानाथ अर्की में शर्मा मैडिकल स्टोर के नाम से एक दुकान चला रहा था और यह दुकान उसे नगर पालिका अर्की ने वाकायदा खुली बोली में आबंटित कर रखी थी। लेकिन दुर्भाग्यवश वर्ष 2009 में उसकी एक दुर्घटना में मौत हो गयी। इस मौत के बाद यह दुकान इनके बेटे जितेन्द्र को आबंटित कर दी गयी। लेकिन दुर्भाग्य ने पति के बाद इस बेटे जितेन्द्र की भी एक दुर्घटना में वर्ष 2010 में जान ले ली। अब जिस महिला को पहले पति और फिर जवान बेटे की मौत का सदमा झेलना पड़ा हो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह का प्रभाव पड़ा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में जीवन यापन का साधन जुटाना एक बड़ी चुनौती हो जाता है। इस वस्तुस्थिति में यह दुकान ही उसका एकमात्र सहारा थी और उसने नगर पालिका से इसका आबंटन भी अपने नाम करवा लिया। कैमिस्ट शाॅप लाईसैन्स भी हासिल कर लिया और ट्रेण्ड प्रशिक्षित फाॅर्मासिस्ट को नौकर रखकर दुकान का कारोबार जारी रखा। वर्ष 2010 से 2015 तक यह कारोबार यथास्थिति चलता रहा है। इस दौरान दो फार्मासिस्टों ने दुकान पर काम किया और चले गये। 4-7-15 को तीसरा फार्मासिस्ट आया इसे काम पर रख लिया गया और इसने काम करने को लेकर वाकायदा एक शपथ पत्र भी साईन करके दिया। संयोगवश यह तीसरा फार्मासिस्ट रिश्तेदारी में था।
यह महिला पति और बेटे की मौत के बाद मानसिक और शारीरिक तौर पर कुछ अस्वस्थ्य भी रहती थी तथा आईजीएमसी शिमला और पीजीआई में उपचाराधीन भी चल रही थी। अपने परिवार में यह नितान्त अकेली रह गयी थी क्योंकि बेटी की चण्डीगढ़ में शादी कर दी थी और वह अपने परिवार में व्यस्त है। ऐसे में उसके मामा ने उसकी हालत को देखकर उसकी दूसरी शादी करवा दी। यह शादी करना उसके लिये अभिशाप बन गया क्योंकि इन लोगों ने उसके चरित्र पर आरोप लगाने शुरू कर दिये। उसे हर कहीं प्रताड़ना का शिकार बनाया गया। इस सबके चलते उसकी दुकान और कारोबार हथियाने का खेल रचा गया। इस खेल के पहले चरण में इस फार्मासिस्ट ईश्वर चन्द भार्गव ने नगर पालिका के साथ मिलकर दुकान अपने नाम आंबटित करवा ली। इस आबंटन का आधार दुकान का इसके नाम 1000 रूपये मासिक पर सबलैट करना बनाया गया। सबलैट की रिपोर्ट 2017 में एक सफाई पर्यवेक्षक शशीकान्त और लिपिक विद्या देवी देते है। इस रिपोर्ट पर 22-12-17 को राजकुमारी को 15 दिन का नोटिस दिया जाता है और 11-7-18 को दुकान ईश्वर चन्द को आबंटित कर दी जाती है। इस आबंटन के खिलाफ राजकुमारी अदालत से स्टे हालिस करती है। इस स्टे पर ईश्वर चन्द भी काऊंटर स्टे हालिस कर लेता है। इस तरह दुकान पर ताला लग जाता है। इस ताला लगने के बाद 12-10-18 को दुकान से सारी दवाईयां और फर्नीचर चोरी हो जाता है। उसी दिन इसकी शिकायत पुलिस को दी जाती है और पुलिस एफआईआर दर्ज करने की बजाये साधारण रपट डालकर बैठ जाती है।
अब जब 2-7-19 को अदालत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देती है तब पुलिस थाना अर्की एफआईआर दर्ज करके 9-8-2019 को एक जांच रिपोर्ट भी तैयार कर लेता है। इस जांच में राजकुमारी के सारे आरोपों को नकारते हुए दुकान को 1000 रूपये मासिक पर सबलैट करने को प्रमाणित कर दिया जाता है। जांच रिपोर्ट में कहा जाता है कि दुकान 2015 से ही 1000 रूपये पर सबलैट कर दी गयी थी। फिर इसका किराया 7000 रूपये कर दिया जाता है और उसके बाद 10,000 रूपये प्रतिमाह । इस रिपोर्ट से यह सवाल उठता है कि जब दुकान 2015 में ही सबलैट हो गयी थी और दो माह बाद 7000 रूपये और फिर 10,000 रूपये प्रतिमाह दिये जा रहे थे तो ईश्वर चन्द भी इस तथ्य को नगर पालिका के सामने क्यों नही लाया। नगर पालिका तो 22-12-17 को 15 दिन का नोटिस देती है और अपने ही नोटिस पर अगली कारवाई करने में आठ माह लगा देती है। क्या नगर पालिका को दुकान सबलैट होने की कोई जानकारी 2015, 2016 और 2017 में नही मिल पायी। क्या इन वर्षो में नगर पालिका ने अपनी दुकानों की वास्तविक रिपोर्ट के लिये कोई निरीक्षण टीम नही भेजी। शिकायत के मुताबिक दुकान से सामान 12-10-18 को निकला। जांच रिपोर्ट के मुताबिक अदालत के स्टे के बाद दुकान पर आजतक ताला है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक ईश्वर चन्द ने दुकान से एक्सपायरी हो चुकी दवाईयां निकाली थी। क्या यह दवाईयां स्टे के बाद ताला खोलकर या तोड़कर या स्टे से पहले निकाल ली गयी इस पर रिपोर्ट में कुछ नही कहा गया है। नगर पालिका की कार्यप्रणाली की कोई जांच नही की है। जबकि शिकायत के मुताबिक राजकुमारी जून 2018 तक नगर पालिका में किराया खुद जमा करवाने जाती रही है। जब नगर पालिका दिसम्बर 2017 में राजकुमारी को नोटिस देती है तब फिर उससे 2018 में किराया क्यों लेती रही। पुलिस जांच रिपोर्ट में कह रही है कि उसे लोगों ने बताया कि दुकान में राजकुमारी का कोई सामान नही था परन्तु यह कोई भी लिखकर देने को तैयार नही है। इस तरह पुलिस की रिपोर्ट में परस्पर विरोधी तथ्य हैं। पुलिस की इसी रिपोर्ट से रिपोर्ट की सत्यता पर अपने में ही सवाल खड़े हो जाते हैं। इसी से यह आशंका बलवती हो जाती है कि राजकुमारी की दुकान और अन्य संपति हथियाने के लिये एक सुनियोजित षडयंत्र रचा गया है जिसमें इस स्थानीय प्रशासन का भी अपरोक्ष में सहयोग है।









































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