शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में नवम्बर 2016 को एनजीटी का फैसला आने के बाद अढ़ाई मंजिल से अधिक के भवन निर्माण पर रोक लग गयी है। इस फैसला का कई हल्कों ने विरोध किया है। सरकार भी इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील में गयी हुई है परन्तु अभी तक इसमें कोई राहत नही मिली है और न ही इस फैसले पर कोई स्टे लगा है। ऐसे में यह फैसला इस समय पूरी तरह प्रभावी है और इस पर अमल सुनिश्चित करना सरकारी तन्त्र की जिम्मेदारी है। लेकिन संवद्ध सरकारी तन्त्र यह अमल सुनिश्चित करने में पूरी तरह असफल हो रहा है। तन्त्र की यह असफलता राजनीतिक दबाव के चलते है या पैसे के प्रभाव के कारण है यह अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। लेकिन इस फैसले को सीधे-सीधे अंगूठा दिखाया जा रहा है यह सामने है।
प्राप्त विवरण के मुताबिक शिमला के सरकुलर रोड़ की निवासी रानी कुकरेजा शिमला के मशोबरा सडोहरा में एक भवन बना रही है। इस निर्माण की अनुमति उन्हें टीसीपी से 15-9-2012 में मिली थी। टीसीपी के अनुमति पत्र की शर्त संख्या 19 के मुताबिक यह अनुमति केवल तीन वर्ष के लिये वैध थी और 14-9-15 को समाप्त हो जानी थी। लेकिन इस अवधि में यह निर्माण कार्य शुरू नही हो पाया। इस पर अनुमति की अवधि बढ़ाने का टीसीपी से अनुरोध किया गया और यह अनुरोध स्वीकार करते हुए टीसीपी ने 2-12-15 को पत्र लिखकर 15000 रूपये की फीस इस संद्धर्भ में जमा करवाने के निर्देश दिये ताकि यह फीस आने के बाद अनुमति बढ़ाने का पत्र जारी किया जा सके। इस तरह दिसम्बर 2016 तक की अनुमति मिल गयी। अनुमति की शर्त संख्या 15 के अनुसार The NOC from this at plinth level at every hour level shall be mendatory obtained from the competent authority CE, SADA kufri shoghi otherwise the permission shall withdrawn. लेकिन 2-12-2015 के टीसीपी के पत्र के बाद 15000 रूपये की फीस जमा करवाकर यह एक वर्ष की एक्सटैन्शन हासिल की गयी या नही इसका कोई रिकार्ड सामने नही आया है। जबकि जब यह निर्माण शुरू हुआ तब इसकी शिकायतें आना भी शुरू हो गयी। आरटीआई के माध्यम से सारा रिकार्ड हासिल किया गया। शिकायतकर्ता एक सूर्यकान्त भागड़ा के मुताबिक यह निर्माण ही मई 2019 में शुरू हुआ है। भागड़ा ने अपनी शिकायत में प्लाॅट के 2017, 2018 और 2019 के फोटो साथ लगाये हैं। भागड़ा की शिकायत 29 मई 2019 की है।
भागड़ा की शिकायत पर कारवाई करते हुए 27-6-2019 को सहायक टाऊन प्लानर टीसीपी रानी कुकरेजा को स्पष्ट निर्देश देते हैं कि वह इस अवैध निर्माण को तुरन्त बन्द कर दें। टीसीपी के 27-6-2019 के पत्र में साफ कहा गया है कि इस निर्माण के लिये 15-9-2012 को ली गयी अनुमति समाप्त हो गयी है। टीसीपी के इस पत्र से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि 2015 में 15000 रूपये की फीस जमा करवाकर एक साल का अनुमति विस्तार भी नही लिया गया है। क्योंकि टीसीपी 27-6-2019 के पत्र में इसका कोई जिक्र ही नही है। भागड़ा ने रानी कुकरेजा द्वारा यह ज़मीन खरीदने के लिये हासिल किये गये कृषक प्रमाण पत्र की प्रमाणिकता पर भी सन्देह जाहिर किया है। इस कृषक प्रमाण पत्र को लेकर भी डीसी शिमला के पास शिकायत अब तक लंबित चल रही है। वैसे एक वर्ष का अनुमति विस्तार भी 13-9-2016 को समाप्त हो जाता है।
रानी कुकरेजा के इस निर्माण की वैधता पर टीसीपी के 27-6-2019 के पत्र से ही सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि यह निर्माण अनुमति के बिना किया जा रहा है। टीसीपी ने यह पत्र मौके पर जाकर निर्माण का निरीक्षण करने के बाद जारी किया है। परन्तु टीसीपी के पत्र के बाद भी निर्माण जारी है। टीसीपी ने यह पत्र लिखने के अतिरिक्त और कोई कारवाई नही की है जब कि उसके पास निर्माण को रोकने के लिये पुलिस की सेवाएं लेने का पूरा अधिकार है कसौली प्रकरण में यह सब कुछ सामने आ चुका है। मशोबर भी कसौली ही की तरह का संवेदनशील क्षेत्र है। ऐसे में यह सवाल उठने स्वभाविक है कि एनजीटी के फैसले और कसौली प्रकरण के बाद भी यदि इस तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं तो यही मानना पड़ेगा कि सरकार और कानून सही में ही ‘‘प्रभाव’’ के आगे बौने हो गये हैं क्योंकि इस मामले की एक आन लाईन शिकायत मुख्यमन्त्री को डायरी न. 151351 और 137429 के तहत उनके शिकायत सैल को भी भेजी गयी थी परन्तु उसके ऊपर भी कोई कारवाई नही हुई है।