शिमला/शैल। प्रदेश सरकार ने पिछले महीनों में करीब 228 उद्योगों के साथ 27515 करोड़ के एमओयू साईन किये हैं। इन उद्योगों और इस निवेश की प्रगति मानीटर करने के लिये हिम प्रगति पोर्टल भी तैयार किया गया है। इस संद्धर्भ मेें अभी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हिम प्रगति पोर्टल की समीक्षा की गयी है। समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने राजस्व और टीसीपी विभागों को निर्देश दिये हैं कि वह निवेशकों को पेश आ रही समस्याओं का तुरन्त और प्राथमिकता के आधार पर निपटारा करना सुनिश्चित करे। जिन 228 उद्योगों के साथ एमओयू साईन हुए हैं उनमें से अधिकांश उद्योग पुराने ही है जो पहले ही कुछ निवेश कर चुके हैं लेकिन इन्हें सरकार से वांच्छित सारी अनुमतियां अभी तक नहीं मिल पायी हैं। लेकिन सरकारी तन्त्र ने अपनी पीठ थपथपाने के लिये इन्हीं उद्योगों के साथ नये सिरे से एमओयू साईन कर लिये हैं। अब तन्त्र को इन उद्योगों की समस्याएं सुलझाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है क्योंकि यदि इन्हीं की समस्याएं तुरन्त हल न हो पायी तो नये निवेशकों का आना असंभव हो जायेगा।
इस कड़ी में सबसे बड़ी समस्या प्रदेश की जलविद्युत परियोजनाओं में आ रही है। प्रदेश में पांच मैगावाट तक परियोजनाएं हिम ऊर्जा के माध्यम से लगायी जाती है। जलविद्युत परियोजना लगाने से पहले प्रस्तावित परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली कौन खरीदेगा यह उत्पादक को यह सरकार को सूचित करना होता है। प्रदेश में यह खरीद बिजली बोर्ड करता है। इस तरह उत्पादक को यह चिन्ता नहीं होती है कि बिजली बेचेगा किसको। लेकिन इस समय इन विद्युत उत्पादकों को यह बिजली बेचना एक परेशानी हो गयी है। अभी हिम प्रगति पोर्टल की समीक्षा के दौरान एक बैठक इन विद्युत उत्पादकों से भी हुई है। इस बैठक में 25 मैगावाट तक के 26 उत्पादकों ने अपनी समस्या यह रखी की बोर्ड उनकी सारी उत्पादित बिजली को खरीद नही रहा है। यदि पांच मैगावाट का उत्पादन हो रहा है तो उसमें से दो या तीन मैगावाट ही खरीदी जा रही है और बाकी बिना बिके रह रही है। लेकिन कम खरीद का आदेश बिना लिखे जबानी दिया जा रहा है। यह समस्या छोटे और मझोले उत्पादकों को पेश आ रही है। बड़े उत्पादकों को यह समस्या नही है। इससे छोटे निवेशकों की स्थिति बहुत खराब हो गयी है। उत्पादकों द्वारा रखी गयी इस समस्या पर जब मुख्यसचिव ने बोर्ड से इस बारे में जवाब मांगा तो कोई उत्तर नहीं था। समस्या को सब ने स्वीकार किया और इसका हल क्या हो सकता है यह उत्पादकों से ही पूछ लिया। अन्त में इस समस्या को हल खोजने के लिये एक और बैठक करने का फैसला लिया गया। जानकारों के मुताबिक जिन दरों पर उत्पादकों के साथ पीपीए साईन किये हुए हैं आज उसी रेट पर बोर्ड की बिजली बिक नहीं रही है। बोर्ड की वार्षिक रिपोर्टों के मुताबिक हर वर्ष बहुत सारी बिजली बिकने से रह रही है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक बोर्ड उत्पादकों से 4.50 रूपये यूनिट खरीद कर आगे 2.40 रूपये यूनिट बेच रहा है। यही नहीं बोर्ड की अपनी परियोजनाओं में हर वर्ष हजारों घन्टों का शट डाऊन दिखाकर बिजली का उत्पादन बन्द रखा जा रहा है। यदि बोर्ड की अपनी परियोजनाओं में पूरा उत्पादन होता रहे तब तो बिजली बेचने की समस्या और भी विकट हो जायेगी। लेकिन बोर्ड के अन्दर की इस स्थिति की ऊर्जा मन्त्री और मुख्यमंत्री को कोई जानकारी दी ही नही जाती है। अपने तौर पर यह लोग बोर्ड की वार्षिक रिपोर्टों और कैग रिपोर्टों का अध्ययन ही नही कर पाते हैं जबकि यह रिपोर्ट वाकायदा विधानसभा सदन में रखी जाती है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान न किया गया तो इसका प्रभाव सारे प्रस्तावित निवेश पर पडे़गा यह तय है।