Friday, 19 September 2025
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प्रदेश की सामाजिक और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है भाटिया का मुख्य न्यायधीश के नाम लिखा पत्र

शिमला/शैल। राजधानी शिमला के माल रोड़ से सटे मुख्य बाजार लोअर बाज़ार में जूतों की मुरम्मत एवम् सेल की छोटी सी दुकान में छोटा सा कारोबार करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला व्यक्ति सामाजिक उत्पीड़न का शिकार बन जाये तथा उसे अपने जानमाल की सुरक्षा की गुहार एक पत्र लिखकर प्रदेश के मुख्य न्यायधीश से करने की नौबत आ जाये तो यह पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर जाता है। मुख्य न्यायधीश के नाम लिखे पत्र में भाटिया ने जिक्र किया है कि उसके एक पड़ोसी विक्रम सिंह ने 20-07-2018 को उस पर और उसकी पत्नी पर जानलेवा हमला किया तथा सार्वजनिक रूप से जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करके उसे प्रताड़ित किया। इस घटना की पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गयी पुलिस ने मामला दर्ज करके छानबीन के बाद अदालत में चालान दायर कर दिया और अब यह मामला सैशन जज की अदालत में लंबित चल रहा है।
इस मामले के लंबित होने के बावजूद इसी विक्रम सिंह ने अब फिर 17-5-2019 को रात 7ः30 बजे फिर से हमला किया और जाति सूचक शब्द चमार चमार सार्वजनिक रूप से बाजार में पुकार पुकार कर सामाजिक प्रताड़ना का शिकार बनाया। इस घटना की भी पुलिस में शिकायत की गयी पुलिस ने फिर से मामला दर्ज किया लेकिन आरोपी अग्रिम जमानत लेने में सफल हो गया। भाटिया ने वाकायदा इस घटना की विडियो रिकार्डिंग तक कर रखी है और मुख्य न्यायधीश को भेजे पत्र में इसकी जानाकरी दी है। अग्रिम जमानत मिल जाने से विक्रम के हौंसले और बुलन्द हो गये हैं। पत्र के मुताबिक वह बराबर जान से मारने की धमकीयां दे रहा है और इसके लिये सज़ा तक भुगतने को तैयार है।
मुख्य न्यायधीश को लिखे पत्र से भाटिया का डर स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है क्योंकि आरोपी अग्रिम जमानत पाने में सफल हो गया है। जबकि कानून की जानकारी रखने वालों के मुताबिक ऐसे अपराधों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नही है। इस मामले से यह सवाल उठता है कि क्या ऐसी घटनाओं से एक सुनियोजित तरीके से जातिय सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि भाटिया के इस मामले से पहले भी दलित उत्पीड़न के कई मामले सामने आ चुके हैं। जिन्दान मामला बड़ी चर्चा का विषय रह चुका है। शिमला के ही ढली उपनगर में भी एक परिवार को ऐसे ही उत्पीड़न का शिकार बनाये जाने का मामला सुर्खियों में रह चुका है। इन सारे मामलों में प्रशासन की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में यह स्वभाविक है कि जब समाज के एक वर्ग को इस तरह से प्रताड़ना और उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता रहेगा तो यह वर्ग अन्त में अपनी आत्म रक्षा के लिये क्या करेगा? क्या हम उसे प्रतिहिंसा की ओर धकलेने का एक सुनियोजित प्रयास नही कर रहे हैं? आज उच्च न्यायालय से लेकर नीचे प्रशासन तक सबको ऐसे मामलों पर कारगर अंकुश लगाने के उपाय करने होंगे। अन्यथा स्थिति गंभीर होती जायेगी।








































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