Friday, 19 September 2025
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क्या अभी तक नहीं बन पा रही जयराम की स्वीकार्यता

शिमला/शैल। क्या मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की कुर्सी के लिये अभी भी खतरे के बादल बरकरार है यह सवाल मुख्यमन्त्री के अपने ही ब्यान के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बन गया है। जयराम ने प्रैस क्लब शिमला के एक आयोजन में जब यह कहा कि पहले कोई और मुख्यमन्त्री बन रहा था लेकिन अब जयराम बन गया है। ‘‘बन गया है तो स्वीकार भी कर लो’’ तब इस ब्यान पर हर कोई हैरान था। क्योंकि प्रदेश की जनता ने तो भाजपा को पूरा बहुमत देकर सत्ता में बैठा दिया है और इसे विपक्ष से कोई खतरा नही है। यदि जयराम को कोई खतरा होगा तो वह अपनी ही पार्टी से होगा। यह स्वभाविक है कि जब जयराम मुख्यमन्त्री बन गये हैं तो पार्टी के भीतर तो उनके ही समकक्ष या वरिष्ठ है उनके मन मे भी इस कुर्सी पर बैठने की ईच्छा होना कोई अपराध नही है। हाईकमान को सरकार से परिणाम चाहिये। उसमें अब पहला टैस्ट आ रहा है लोकसभा चुनावों का इसमें हाईकमान को यदि जयराम फिर से प्रदेश की चारो सीटें जीतकर दे देते हैं तो उनकी कुर्सी को कोई खतरा नही होगा। यदि ऐसा नही हो पाता है तो फिर हाईकमान को सोचने का मौका मिल जायेगा। पार्टी के भीतर बैठे दूसरे लोगों को भी यह कहने का मौका मिल जायेगा कि इस नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव सुरक्षित नही होगा। राष्ट्रीय दलों में आकलन का मानदण्ड यही रहता है।
इस आईने में यदि जयराम के पांच माह के कामकाज का आकलन किया जाये तो स्थिति कोई बहुत सुखद नज़र नही आती है। अभी जो पेयजल का संकट राजधानी शिमला सहित प्रदेश के अन्य जिलों मे पेश आया है उसमें सरकार के प्रयास और प्रबन्धन कितने पाकसाफ रहे हैं इसका अन्दाजा उच्च न्यायालय की टिप्पणी से ही लग जाता है। उच्च न्यायालय ने इस संकट के लिये जिम्मेदार लोगों को चिहिन्त करके उनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये थे और अदालत को इससे अवगत करवाने के भी निर्देश दिये थे लेकिन जब मुख्य सचिव और आयुक्त नगर निगम ने इस पर उच्च न्यायालय में शपथ पत्र दायर किया तो उस पर अदालत की यह टिप्पणी आयी है ॅ We notice the affidavit of the chief Secretary, Govermenet of Himachal Pradesh and the Commissioner, Municipal Corporation, shimla to be conspicuously silent of the action taken against such of those persons whose acts of omission and commission led to the situation of crisis. we are assured that appropriate action in this regard shall positively be taken before the next date of hearing. इसी तरह आईजीएमसी शिमला में पार्किंग की समस्या को लेकर आयी एक जनहित याचिका की सुनवाई में भी उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी आयी है Despite repeated opportunities, no reply has been filed on behalf of respondents No.1 to 3 and 5. Respondent No.4, Municipal Corporation, Shimla has filed its reply. This Court in many other petitions repeatedly cautioned respondent-State with regard to manifold increase in traffic in Shimla town, where admittedly roads are congested and there is very little scope of expansion. Recently, this Court in CWPIL No. 19 of 2016 titled Court on its own motion versus State of Himachal Pradesh and others, taking note of affidavit having been filed by Deputy Commissioner, Shimla had directed the Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh to set up a Committee to look into parking and traffic problem in Shimla town, but it appears that none in the helm of affairs is actually bothered about problem of traffic/parking शिक्षा विभाग में अध्यापकों की कमी को लेकर आयी एक याचिका में उच्च न्यायालय ने विभाग के शपथ पत्र पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सचिव शिक्षा को अगली सुनवाई के दौरान अदालत में हाजिर रहने के आदेश किये हैं। ऐसे ही कई और मामलों में उच्च न्यायालय प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठा चुका है।
उच्च न्यायालय की शीर्ष प्रशासन को लेकर आयी ऐसी टिप्पणीयों से यह स्पष्ट हो जाता है कि शासन और प्रशासन में सब कुछ सही नही चल रहा है। जब प्रदेश का उच्च न्यायालय शीर्ष प्रशासन को लेकर इस तहर की टिप्पणी करेगा तो इससे प्रदेश की जनता में सरकार को लेकर क्या संदेश जायेगा। उच्च न्यायालय की इन टिप्पणीयों से हटकर भी यदि सरकार का आकलन किया जाये तो यह सामने आता है कि अब तक प्रशासन पर मुख्यमन्त्री की पकड़ नही बन पायी है। क्योंकि एक ओर तो सरकार राजस्व को पहुंचे नुकसान के कारणों की जांच करवाने की बात कर रही है और दूसरी ओर कर्ज लेकर घी पीने की कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन को उनकी सेवानिवृति के एक वर्ष बाद जिस तर्क पर स्टडी लीव दी गयी है वह अपने में ही एक घोटाला बन गया है। राज्य के राजस्व को कहां और कैसे नुकसान पहुंचाया जा रहा है यह एक जनचर्चा बन चुका है। विभिन्न निगमों/बोर्डो में कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां रूकी हुई हैं जबकि कई जगह ऐसा कर दिया गया है कि जिन्हे कांगेस ने ताजपोशी दी थी उन्हे इस सरकार ने भी ताजपोशी दे दी है। कार्यकर्ताओं में एक अधिकारी की पत्नी को समाज कल्याण बोर्ड में दी गयी तैनाती पर रोष देखने को मिल रहा है क्योंकि कांग्रेस के वीरभद्र शासन में भी इन्हे यह ताजपोशी मिली हुई थी। उच्च न्यायालय सरकार की कार्य प्रणाली को लेकर आये दिन कोई न कोई टिप्पणी कर रहा है। जिससे यह संदेश जा रहा है कि शायद सरकार के महाधिवक्ता और उनकी टीम उच्च न्यायालय में सरकार का पक्ष प्रभावी ढ़ग से नहीं रख पा रहे हैं। रिटायर्ड लोगों को फिर से नौकरी में वापिस बुलाया जा रहा है जबकि वीरभद्र सरकार को इसके लिये हररोज कोसा जाता था। जब सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर इस तरह की चर्चाएं लगातार बाहर आती जायेंगी तो निश्चित रूप से प्रशासन और जनता में शीर्ष नेतृत्व की स्वीकार्यता को लेकर सवाल उठेंगे ही। शायद यही अन्दर की ऊहा-पोह मुख्यमन्त्री के इस ब्यान में अनायास ही बाहर आ गयी है।

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