Friday, 19 September 2025
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अपार्टमैन्टस के पानी कनैक्शन के बाद वर्मा के होटल पर भी उठे सवाल

शिमला/शैल। भाजपा विधायक बलवीर वर्मा के जाखू स्थित अपार्टमैंट में पानी का कनैक्शन सीधे मेन सप्लाई लाईन से दिया गया था यह तथ्य अब शिमला में आये पेयजल संकट के दौरान सामने आया है। जिलाधीश शिमला ने फौरी तौर पर इस पर कारवाई करते हुए कनैक्शन बन्द कर दिया है। यह अवैध कनैक्शन कैसे मिला इस बारे में जांच की जा रही है। इस जांच से किसे सज़ा दी जाती है या यह मामला यहीं पर ही बन्द हो जाता है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। लेकिन इस मामले के सामने आने के बाद यह सवाल उठ गया है कि वर्मा की ही तरह और कितने ऐसे बिल्डर हैं जिनको ऐसे कनैक्शन मिले होंगे। क्योंकि 3000 से अधिक ऐसे कनैक्शन आॅप्रेशन में है यह निगम के भीतरी सूत्रों का मानना है। शहर में वर्मा की ही तरह और भी कई बिल्डर रहे हैं और आज भी कार्यरत हैं। कई कांग्रेस में तो कई भाजपा में बडे नेता बिल्डर का धन्धा परोक्ष/अपरोक्ष में कर रहे हैं। बहुत संभव है कि ऐसे कई और मामले सामने आ जायें यदि सरकार और नगर निगम इस बारे में ईमानदारी से जांच करवायें।
भाजपा विधायक बलवीर वर्मा ने शांखली में भी एक होटल का निर्माण खसरा न0 987,988,989 पर कर रखा है। इस निर्माण के लिये नगर निगम की ओर से 13.5.2011 को स्वीकृति प्रदान की गयी थी। इस अनुमति की शर्तों में यह साफ कहा गया था कि स्वीकृति नक्शे से अधिक निर्माण अवैध समझा जायेगा। इन्ही खसरा नम्बरों पर 17.1.2011 को एक ‘‘सर्वश्री ईश्वर दास अंकुश नवराजन आदि को भी निर्माण की अनुमति प्रदान की गयी थी। यह अनुमति दो मंजिल के निर्माण की थी जबकि वर्मा को मिली अनुमति में पार्किंग धरातल मंजिल, प्रथम मंजिल, द्वितीय मंजिल, तृतीय मंजिल छत सहित शामिल है। यह खसरा नम्बर जिन पर इन दोनों को निर्माण की अनुमति मिली है यह क्षेत्र "Restricted area" में पड़ता है। इसके लैण्ड यूज़ चेन्ज की अनुमति सरकार से अलग से लेनी पड़ती है। इसके लिये निदेशक टीसीपी की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यों की कमेटी इसकी अनुमति देती है। इस कमेटी की बैठक 30.11.2010, 1.12.2010 और 2.12.2010 को हुई थी। इन बैठकों में 17 मामले विचार के लिये आये थे और ईश्वर दास वगैरा को इसी बैठक में अनुमति मिली थी। लेकिन वर्मा का मामला इस बैठक में विचार के लिये नही आया था।
वर्मा को निर्माण की अनुमति 13.5.2011 को मिली थी। इसके बाद 15.6.2015 को वर्मा को नगर निगम ने 7,93,433 रूपये की कम्पाउंडिंग फीस लगाकर अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि 13.5.2011 को जब पहली स्वीकृति ली गयी थी और उसमें जो भी प्रस्ताविक निर्माण दिखाया गया था उसमें निर्माण के पूरा होने तक और कुछ बढौत्तरी कर ली गयी। जिसे बाद में यह फीस लेकर नियमित कर दिया गया है। यह एरिया प्रतिबंधित क्षेत्र में आता है यहां पर बड़े निर्माणों की अनुमति नही दी जा सकती। लेकिन वर्मा के मामले में ऐसा नही हुआ है क्योंकि उस समय वर्मा सत्तारूढ़ कांग्रेस के सहयोगी विधायक थे। बल्कि भाजपा ने वर्मा और अन्य निर्दलीय विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिये स्पीकर के पास एक याचिका भी दायर की थी। अब तो वर्मा वाकायदा भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर आये है। इसलिये ‘‘समर्थ को नही दोष गोसाई’’ के स्थापित सत्य के तहत किसी कारवाई का प्रश्न ही नही उठता। वर्मा को यह स्वीकृति "Senction is granted subject to the final decision  in CWP No.4595/2011 titled as Rajeev Varma & Others v/s State of H.P. pending before the Hon'ble High Court. पर दी गयी है। यह याचिका अभी तक उच्च न्यायालय में लंबित है। अब जल संकट को लेकर शिमला की सारी स्थिति उच्च न्यायालय और सरकार के सामने है। अब देखना है कि वर्मा जैसे मामलों पर कौन क्या करता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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