शिमला/शैल। शिमला में इस बार कितना गंभीर हो गया पेयजल संकट, इसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि 28 मई से प्रतिदिन उच्च न्यायालय इसका संज्ञान लेकर सरकार और संवद्ध प्रशासन को इस संद्धर्भ में निर्देश जारी कर रहा है। प्रदेश न्यायालय द्वारा इस तरह का संज्ञान पहली बार लिया गया है। प्रदेश उच्च न्यायालय के संज्ञान के साथ ही प्रदेश के मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव भी इसका प्रतिदिन संज्ञान ले रहे हैं। मुख्य सचिव स्वयं जल वितरण का निरीक्षण कर रहे हैं। उन्ही के मार्गदर्शन में शिमला को जल वितरण के लिये तीन जोन में बांटा गया है। प्रत्येक जोन में कब- कब पानी का वितरण होगा और कौन-कौन अधिकारी/ कर्मचारी इस काम को अंजाम देंगे उनके संपर्क फोन नम्बर भी बाकायदा जोन स्कीम के साथ सूचित कर दिये गये है। जोन में कौन-कौन सा एरिया शामिल है इसको भी बाकायदा सूचित किया गया है। पानी वितरण में मुख्य भूमिका निभा रहे ‘‘की मैन’’ पर नज़र रखने और पानी खोलने और बन्द करने की विडियोग्राफी किये जाने के निर्देश भी उच्च न्यायालय दे चुका है। उच्च न्यायालय के यह सारे निर्देश उसकी साईट पर फैसलों/निर्देशों के रूप में उपलब्ध है। उच्च न्यायालय का यह संज्ञान लेना ही शहर की पेेयजल समस्या की गंभीरता का सबसे बड़ा प्रमाण है और इस प्रमाण को देखकर यहां आने की योजना बना रहा कोई भी व्यक्ति आने से पहले सोचेगा जरूर। लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि यदि उच्च न्यायालय इस स्थिति का संज्ञान न लेता और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने जिस तरह अपने व्यक्तिगत स्तर पर इसका नोटिस लिया है उससे इस समस्या पर समय रहते कुछ नियन्त्रण का आस बंधी है। अन्यथा इसके परिणाम भयानक हो जाते।
शहर में पानी का संकट 15 मई से बढ़ना शुरू हुआ है लेकिन यह संकट हुआ क्यों यह अपने में एक अहम सवाल है। इसके लिये कुछ आंकड़ों पर नज़र डालना आवश्यक है। 28 मई को सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक मई 2016 में नगर निगम को 1003.99 एमएलडी पानी मिला था। मई 2017 में 1104.78 और 28 मई 2018 तक 810 एमएलडी पानी मिला। मई 2016 में प्रतिदिन 32.39, मई 2017 में 35.64 और मई 2018 में 28.93 एमएलडी पानी शिमला को मिला यह सरकार का अपना मानना है। 29 मई को उच्च न्यायालय को बताया गया कि 18.5 एमएलडी पानी मिला। एक जून को सचिव आईपीएच के मुताबिक 23 एमएलडी पानी मिला। दिसम्बर 2017 में प्रतिदिन औसत 42 से 43 एमएलडी पानी मिला। नगर निगम के मुताबिक यदि सारे शिमला को नियमित प्रतिदिन पानी सप्लाई करना हो तो 47 एमएलडी पानी चाहिए। जो आंकड़े सरकार स्वयं जनता के सामने रख रही है और प्रदेश उच्च न्यायालय के सामने रख रही है उसके मुताबिक जितना पानी निगम को मई 2016 और 2017 में मिला उसका करीब 80% मई 2018 में मिला है। ऐसे में जब शहर को तीन भागों में बांटकर हर ज़ोन को तीसरे दिन पानी देने की योजना बनी तब तो तीसरे दिन संबधित ज़ोन के हर व्यक्ति /परिवार को पानी मिल जाना चाहिये था लेकिन ऐसा हो नही पाया। ज़ोन एक में जहां मुख्य सचिव स्वयं रहते हैं वहां पहली जून को सबको पानी नही मिल पाया। स्थिति यहां तक हो गयी कि रात 11ः30 बजे महिलाओं ने कंट्रोलरूम में हंगामा खड़ा कर दिया। महिलाओं के आक्रोश को देखते हुए कुछ कर्मचारी तो वहां से भाग ही निकले। स्थिति की सूचना मुख्य सचिव को दी गयी। महिलाओं का आरोप था कि पानी के वितरण में भाई -भतीजावाद हो रहा है। सरकार के बड़े अधिकारी के यहां मैहली क्षेत्र में पानी के ओवरफ्रलो होने के भी आरोप लगे हैं। इन आंकड़ो से यही सवाल उठता है कि यदि यह आंकडे सही हैं तो निश्चित रूप से प्रशासन के स्तर पर कोई नियोजित गड़बड़ हो रही है। यदि प्रशासन पर पूरा नियन्त्रण है तो फिर सरकार जनता और अदालत के सामने सही तस्वीर नहीं रख रही है।
अब जब पानी का संकट गहराया और उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान ले लिया तब यह सामने आया कि कैसे कुछ लोगों को सीधे मेन लाईन से ही सप्लाई दे दी गयी थी। लोगों ने जब इस आश्य की शिकायतें प्रशासन के सामने रखी और डीसी शिमला ने इन शिकायतों का संज्ञान लिया तब पहली कारवाई भाजपा विधायक बलवीर वर्मा के जाखू ़क्षेत्र में बने फ्रलैटों पर हुई। इस समय नगर निगम के रिकार्ड के मुताबिक चार एमएलडी पानी की नाॅन रैवेन्यू लीकेज हो रही है। शहर के 224 होटलों को 527 पानी के कनैक्शन मिले हुए हैं जिसका सीधा अर्थ है कि इस तरह का कारनामा कुछ अधिकारियों/ कर्मचारियों के सहयोग के बिना नही घट सकता। निगम के सूत्रों की माने तो विधायक बलवीर वर्मा की तर्ज पर करीब 3000 कनैक्शन मिले हुए हैं। कई होटलों के बारे में तो यहां तक चर्चा है कि उन्होने भूमिगत स्टोरेज टैंक तक बना रखे हैं ऐसा पहली बार हुआ है कि बिजली बोर्ड की चाबा विद्युत उत्पादन योजना से नगर निगम को पानी लेने की आवश्यकता आ पड़ी हो।
पानी का यह संकट जिस तरह से सामने आया उसने एक बुनियादी और बड़ा सवाल प्रदेश के प्रबन्धकों के सामने खड़ा कर दिया है। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी 28 मई को यह कहकर चिन्ता प्रकट की है कि The problem of water scarcity within Shimla town, as highlighted, takes us to yet another issue and that being as to whether any new construction should be allowed to come up within the Municipal limits of Shimla town at all or not, for the town, except for one, itself does not have its own perennial source of water, which is required to be pumped from the river sources at a distant place. Whether the present holding capacity is sufficient enough to cater to the ever growing urban population or not, is an issue which certainly needs to be addressed. इसी तरह की चिन्ता एनजीटी ने व्यक्त करते हुए यहां निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की है। एनजीटी ने अढ़ाई मंजिल से अधिक पर प्रतिबनध लगाने की बात की है। सरकार ने भी जब न्यू शिमला उपनगर बनाने की योजना तैयार की थी तब वहां पर भी अढ़ाई मंजिल के निर्माणों की ही बात की थी लेकिन राजनीतिक दबावो और स्वार्थों के कारण सरकार अपने ही बनाये हुए नियमो/ कानूनों की अनुपालना नही कर पायी है। अपने कानूनो को स्वयं ही न मानने का परिणाम इस तरह के जल संकट पैदा करता है और भविष्य में भी करता रहेगा यदि सरकार नियमो कानूनो को स्वयं ही तोड़ती रही। आज यह सवाल उठ रहा है कि जो निगम प्रशासन और उसके चयनित प्रतिनिधि शहर में पेयजल का वितरण सुनिश्चित नही कर पा रहे हैं और उस पर सरकार और उच्च न्यायालय को नज़र रखनी पड़ रही है क्या ऐसी संस्था पर आज शहर की जनता का विश्वास बना रह सकता है? क्या सरकार और उच्च न्यायालय को इसे भंग करके इसका पूरा प्रशासन अपने हाथ में लेकर शहर की जनता को नये सिरे से इसके चयन का अधिकार नही दिया जाना चाहिये?