13 लोगों का है 2542.37 बीघे पर अवैध कब्जा
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में हजारों की संख्या में वनभूमि पर अवैध कब्जों के मामले सरकार से लेकर अदालत के संज्ञान में आ चुके हैं। स्मरणीय है कि जब 2002 में सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने की योजना बनाई थी और लोगों से कहा था कि वह अपने-अपने अवैध कब्जों की जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से सरकार को दे दें। उस समय एक लाख से अधिक शपथ पत्र सरकार के पास आ गये थे। जब लाखों में सरकार के पास ऐसे शपथ पत्र आ गये तब इस योजना को ही प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गयी थी और उच्च न्यायालय ने इसका अनुमोदन नही किया। तब से सरकार के संज्ञान में यह अवैध आ चुके हैं। अदालत ने इनका कड़ा संज्ञान लेते हुए इन कब्जों को हटाने और कब्जाधारक के खिलाफ मनीलाॅंड्रिंग अधिनियम के तहत कारवाई किये जाने के निर्देश दिये थे। संवद्ध प्रशासन को यह निर्देश दिये थे कि वह ऐसे मामलों की जानकारी ईडी को दें। लेकिन उच्च न्यायालय के इन निर्देशों की अनुपालना आज तक नही हो पायी है। लेकिन सरकार में मन्त्री से लेकर मुख्यमन्त्री तक हर बड़ा इस पर आंखे मुंदे बैठा रहा। जब अदालत ने अपने आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये कड़ा रूख अपनाया तब इस आन्दोलन तक छेड़ने के प्रयास हुए और सरकार ने भी अप्रत्यक्षतः आनदोलनकारियों को प्रोत्साहित ही किया।
आज जब अवैध निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रूख अपनाया और कसौली में इन आदेशों की अनुपालना में एक महिला अधिकारी की हत्या तक कर दी गयी लेकिन इस सब के बावजूद अब भी सरकारी तन्त्र अवैध कब्जों को लेकर कितना गंभीर है इसका अन्दाजा अदालत की टिप्पणीयों से लग जाता है
This court from time to time has been adversely commenting on the functioning of the officials of the respondents an even now when the respondents have chosen not to evict even one of the encroachers as aforesaid, this only reflects a half-hearted attempt, lack of courage of conviction, requisite departmental desire or determination or will of theses officials to implement the order(s) of this Court.
It is well known that in order to achieve any extraordinary result , one is required to have a strong will, firm determination, and burnings desire. All the three s master components are wholly absent, rather conspicuously lacking in these officials.
यही नही वन विभाग अवैध कब्जों को हटवाने की बजाये राजस्व विभाग से Demarcation लेने की नीति पर चल पड़ा। जबकि सरकार के महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय को यह भरोसा दिलाया था और आग्रह किया था कि इसमें एसआईटी गठित करने के आदेश पारित न करें क्योंकि प्रशासन दो सप्ताह मे स्वयं यह कार्य पूरा कर लेगा। अदालत ने इस पर एसआईटी गठित नही की थी लेकिन दो सप्ताह के बाद जब दोबारा मामला सुनवाई के लिये लिया तब तक एक भी मामले में विभाग ने कोई कारवाई नही की थी। बल्कि यह सामने आया कि जिलाधीश शिमला इसमें तीन माह का और समय मांग रहे थे और वित्तायुक्त अपील ने 1987 का एक मामला जिलाधीश शिमला को भेजा। जिसे दस दिन में निपटाने के आदेश के उच्च न्यायालय को देने पड़े। क्योंकि अदालत के सामने यह भी आया कि शायद इस मामले की फाईल ही गायब हैं वन विभाग के डिमारकेशन लेने के प्रयास पर उच्च न्यायालय ने कड़ी निन्दा करते हुए यह कहा We further notice that the Forest Department has filed applications for demarcation before the appropriate authorities, including the Deputy Commissioner, Shimla. We fail to understand that as to why such process stands adopted by the Forest Department, for if the encroachment is on the forest land, then where is the question of the same being got demarcated prior to the ejectment of encroachers. if at all, any one has to move for demarcation. It has to be the encroacher claiming title over the land in question and not the Forest Department.
सरकारी तन्त्र की इस स्थिति को देखने के बाद अन्ततः उच्च न्यायालय को इसमें एसआईटी का गठन करना पड़ा है और सौ बीघे से अधिक के कब्जों के मामले इस एसआईटी को सौंपे गये हैं। इन मामलों को देखने से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि इतने बड़े स्तर पर इन्हे कैसे अन्जाम दिया गया। क्योंकि सौ बीघे से अधिक जो 13 मामले एसआईटी को सौंपे गये हैं उनमें दो मामले एक ही गांव के ऐसे हैं जिनमें 345.54 और 318.96 बीघे पर अवैध कब्जे किये गये। तीन मामलों में 292.38, 279.09 और 239.22 बीघे पर अतिक्रमण हुआ है। शेष आठ मामलों में 199.35 से लेकर 110.3 बीघे तक अतिक्रमण है। जहां लैण्ड सीलिंग की सीमा से भी अधिक का अतिक्रमण तन्त्र की मिली भगत के बिना नही हो सकता। लेकिन साथ ही यह सवाल उठता है कि राजनीतिक नेतृत्व क्या कर रहा था? यह अतिक्रमण पिछले बीस वर्षों से अधिक समय का है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि यह सबकुछ राजनीतिक नेतृत्व के आशीर्वाद के बिना नही घट सकता। जबकि वीरभद्र तो सत्ता में आये ही फारैस्ट माफिया के खिलाफ लड़ाई लड़ने के वायदे के साथ थे। लेकिन आज वनभूमि पर सबसे अधिक अवैध कब्जे प्रदेश में रोहडू में ही सामने आये हैं। परन्तु इन बीस वर्षों में वीरभद्र के साथ ही भाजपा भी बराबर में सत्ता में भागीदार रही है और उसने भी इन अवैध कब्जाधारकों को संरक्षण देने में कोई कमी नही रखी है इस परिदृष्य में आज यह आवश्यक हो जाता है कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में यह अवैध कब्जे हुए हैं और फिर जो इन्हे लगातार संरक्षण देते आये हैं उन्हे चिन्हित करके जब तक उन्हे सज़ा नही दी जाती है तब तक सब रूकने वाला नही है। इन अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ भी प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले की अनुपालना सुनिश्चित की जानी चाहिये जिसमें इनके खिलाफ मनीलाॅंडिंग के तहत कारवाई किये जाने के आदेश किये गये थे। यह है तेरह मामले जो एसआईटी को सौंपे गये हैं।
ये है अवैध कब्जे