Friday, 19 September 2025
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ममता गोयल प्रकरण से नगर निगम शिमला की कार्य प्रणाली सवालों में

 

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला ने 1997 में रोज़गार कार्यालय के माध्यम से कंप्यूटर सहायक का पद भरा था। रोज़गार कार्यालय ने इसके लिये नगर निगम को बीस नामों की सूची भेजी थी। जिसमें से ममता गोयल का चयन इस पद के लिये हो गया बाद में CWP(T) No. 4704 of 2008 के माध्यम से एक सीमा विष्ट ने इस नियुक्ति को इस आधार पर उच्च न्यायालय में चुनौतीे दे दी कि अकेले रोज़गार कार्यालय के माध्यम से ही नाम मंगवाकर यह चयन नही किया जा सकता। इस याचिका पर 31-8-2010 को फैसला आया। इस फैसले में इस चयन को अवैध करार देते हुए नियुक्ति को रद्द कर दिया गया। उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले को ममता गोयल ने डबल बैंच में चुनौती दे दी। यह एलपीए न0 177 of 2010 उच्च न्यायालय में कार्यवाहक मुख्यन्यायधीश जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप शर्मा की पीठ में सुनवाई के लिये आयी और इस पर 8-11-2017 को फैसला आ गया। इस फैसले में एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए डबल बैंच ने ममता गोयल के चयन को सही करार दे दिया। 

इस तरह ममता गोयल को उच्च न्यायालय से राहत तो मिल गयी। लेकिन इसी मामलें में सीमा विष्ट ने 23-9-2010 को नगर निगम में एक आरटीआई डालकर ममता गोयल के चयन से जुड़े सारे दस्तावेज़ मांग लिये। सीमा विष्ट की इस आरटीआई के तहत जो दस्तावेजी सूचना आयी है उसमें निगम ने ममता गोयल के तीन सर्टीफिकेट संलग्न किये हैं। इनमें एक एम ए इतिहास (Fourth Semester) का रज़ल्ट कार्ड है। इसमें ममता रानी पुत्री जसवन्त राय नेगी के नाम से यह प्रमाणपत्र जारी हुआ है। एम.ए. 1989 में की गयी है। इसके बाद 1992 में कृष्णा कंप्यूटरज़ से सर्टीफिकेट कोर्स किया गया। इसमें भी नाम ममता रानी पुत्री जसवन्त राय दर्ज है। 1995 में हिमाचल कंप्यूटर सैन्टर से डिप्लोमा कोर्स किया गया। इसमें नाम ममता गोयल पुत्री बिहारी लाल गोयल दर्ज है। इस तरह आरटीआई में आये तीनों प्रमाण पत्रों में से दो में नाम ममता रानी पुत्री जसवन्त राय दर्ज है एक में ममता गोयल पुत्री बिहारी लाल गोयल दर्ज है।
नगर निगम ने यह सारा रिकार्ड सीमा विष्ट की आरटीआई में ममता गोयल के संद्धर्भ में उसे उपलब्ध करवाया है। इस रिकार्ड से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि ममता रानी पुत्री जसवन्त राय और ममता गोयल पुत्री बिहारी लाल गोयल एक ही व्यक्ति नही हो सकता। लेकिन निगम में नौकरी एक ही ममता कर रही है। 2008 से 2017 तक यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में रहा है। वहां पर याचिका का संद्धर्भ मात्र इतना था कि अकेले रोज़गार कार्यालय से ही नाम मंगवाकर चयन क्रिया पूरी की जा सकती है या नही। उसको लेकर फैसला आ गया है। लेकिन आरटीआई में नगर निगम ने जा दस्तावेज उपलब्ध करवाये हैं उनसे स्पष्ट प्रमाणित होता है कि ममता पुत्री जसवन्त राय और ममता पुत्री बिहारी लाल गोयल दो अलग-अगल प्राणी हैं। यहां पर यह भी सवाल खड़ा होता है कि यह रिकार्ड तो शुरू से ही निगम के पास उपलब्ध था। फिर 2008 से यह मामला उच्च न्यायालय में भी पंहुच गया था। फाईनल फैसला अब नवम्बर 2017 में आया है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि यह फाईल समय-समय पर निगम प्रशासन के संज्ञान में रही है। फिर भी रिकार्ड में छिपे इतने बडे़ विरोधाभास पर किसी की नज़र क्यों नही गयी और इसे उच्च न्यायालय के संज्ञान में क्यों नही लाया गया। इस प्रकरण से नगर निगम की कार्यप्रणालीे पर कई गंभीर सवाले खड़े हो जाते हैं।
































































































 



 




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