Thursday, 18 September 2025
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भाजपा के सता में आते ही सभी मामलों की जांच करवायेगीःअनुराग ठाकुर


शिमला/शैल। हर बार चुनाव से पहले सता हासिल करने के लिये विपक्षी पार्टी ने सता में रही पार्टी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाये हैं और दावे किये हैं कि सत्ता में आते ही इन सभी मामलों की जांच करवा कर दोषियों को सजा दिलायंेगंे। लेकिन सता में आने के बाद आज तक तो कारवाई नही हुई है। इस बार फिर वही आरोंपों का दौर शुरू हो चुका है चुनावी वर्ष है अनुराग ठाकुर ने भी भाजपा के सता में आते ही सभी मामलों की जांच करवा कर दोषियों को सजा दिलावाने की बात कही है।
पिछले दिनों विधायक बंबर ठाकुर और कांग्रेस महासचिव रामलाल ठाकुर के बीच चल रहे आरोप प्रत्यारोपों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं ने खुद ही भाजपा के आरोपों की पुष्टि कि है की बिलासपुर में वन माफिया सक्रिय है। अनुराग ठाकुर ने कहा कि भाजपा शुरू से प्रदेश में चल रहे माफिया राज पर अपनी आवाज बुलंद करती आ रही है। बिलासपुर में भी प्रदेश कि तरह वन माफिया और खनन माफिया सक्रिय है। इस पर आवाज उठाई लेकिन प्रदेश कि कांग्रेस सरकार ने हमेशा इसे मानने से इंकार किया और अपना पल्ला झाड़ती रही लेकिन अब बिलासपुर में खुद कांग्रेस महासचिव ने कांग्रेस विधायक पर वन माफिया के साथ मिलकर करोड़ों के भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया है। इसकी पुष्टि पूर्व मंत्री और कांग्रेस महासचिव ने की है। वही विधायक ने कांग्रेस महासचिव पर खनन माफिया के साथ मिलकर अवैध तरीके से फोरलेन के लिए के रेत बजरी सप्लाई करने का आरोप लगाया है। भाजपा द्वारा राज्यपाल को प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सौंपी गयी चार्जशीट में इस बात का उल्लेख है। लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसे रद्दी का कागज बताकर इसकी जांच करने से इंकार किया लेकिन अब खुद कांग्रेस के नेता ही एक दूसरे पर आरोप कर हमारे आरोपों कि पुष्टि कर रहे हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र को चाहिए कि वे तुरंत इस मामले कि जांच कराये ताकि बिलासपुर की और प्रदेश की जनता को सही तथ्य मालूम चलें । अनुराग ठाकुर ने कहा कि हमे पता है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त है इसलिए वे कभी भी इसकी जांच नहीं करवाएंगे।

ग्राम सभा के लोग -अकुशल और उपद्रवी

शिमला/शैल। ग्रामसभा के लोग अकुशल और उपद्रवी होते हैं यह फतवा दिया है प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका संख्या 8345 में। यह याचिका पर्यावरण संर्घष समिति लिप्पा और प्रदेश पावर कारपोरेशन के बीच है। नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल ने हाईडल परियोजनाओं की स्थापना से पहले ग्राम सभा का आयोजन करके स्थानीय लोगों की सहमति लेने के निर्देश दिये हैं। अब स्थानीय लोगों के मुकाबले में परियोजना लगाने वाली कंपनी की औकात कहीं बडी होगी। इसलिये ऐसे निर्देशों को ऐसी ही धारणा से बदला जा सकता है। लेकिन हिमाचल नीति अभियान कुल्लु ने सरकार की इस धारणा पर कड़ा एतराज जताया है। प्रदेश पावर कारपोरशन का अध्यक्ष प्रदेश का मुख्य सचिव होता है।
अब अगर प्रदेश के मुख्य सचिव की आदिवासियों को लेकर अकुशल और उपद्रवी होने की धारणा हो तो उसे कौन चुनौती दे सकता है। वह भी तब जब दूसरी ओर एक बड़ी हाईडल कंपनी की प्रतिष्ठा और हितों का सवाल हो। पर्यावरण संघर्ष समिति लिप्पा बन अधिकारियों की वकालत कर रही है। उसका मानना है वन अधिकार कानून की प्रस्तावना में ही वनों के आस-पास रहने वाले लोगों को वन उपयोग अधिकार दिये हुए हैं। जन जातीय मन्त्रालय भारत सरकार ने भी इन लोगों के लिये वन उपयोग अधिकारों को पूरी स्पष्टता से दर्ज करने के निर्देश दिये हैं बल्कि इसके लिये एक निगरानी समिति गठित करने के भी निर्देश दे रखे हैं। बल्कि सरकार ने एक मामले में अदालत में शपत पत्र देकर यह कहा है कि वह वन अधिकार अधिनियम को पूरी तरह लागू कर रही है।
लिप्पा में पावर कारपोरेशन की प्रस्तावित हाईडल परियोजना का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। इसके लिये ग्राम सभा के वाकयदा प्रस्ताव पारित कर रखा है। हाईडल कंपनी के हितों की रक्षा के लिये सरकार को इन आदिवासी लोगों की ग्राम सभा को अकुशल और उपद्रवी की संज्ञा देनी पड़ गयी है। अब देखना है कि अदालत भी सरकार की इस धारणा पर मोहर लगा देती है या इनकी सहमति को अधिमान देती है।

हिमाचल की खुशहाली व आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक ‘सेब’

 शिमला। विविध कृषि-जलवायु, स्थलाकृतिक विविधता एवं विभिन्न उंचाई वाले क्षेत्रा, उपजाऊ, गहरी एवं शुष्क मिट्टी जैसी अनुकूल परिस्थितियां हिमाचल प्रदेश को शीतोष्ण एवं उष्ण-कटिबंधीय फलों के उत्पादन के लिये एक उपयुक्त स्थल बनाती हैं। राज्य सरकार द्वारा बागवानी क्षेत्रा में दिए जा रहे विशेष बल के फलस्वरुप आज प्रदेश में 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रा को फलोत्पादन के अंतर्गत लाया जा चुका है, जबकि वर्ष 1950-51 में महज 792 हेक्टेयर क्षेत्रा बागवानी के अधीन था। इसी प्रकार, वर्ष 1950-51 में फलों का उत्पादन केवल 1200 टन था, जो आज बढ़कर 8.19 लाख टन तक पहुंच गया है।
हालांकि राज्य में प्रगतिशील एवं मेहनती उत्पादकों द्वारा विभिन्न प्रकार की फल फसलें उगाई जाती हैं, लेकिन सेब राज्य के सात जिलों की लगभग 1.70 लाख परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है। प्रदेश में फल उत्पादन के अंतर्गत कुल क्षेत्रा में से 49 प्रतिशत सेब के अधीन है, जो कुल फल उत्पादन का 85 प्रतिशत है। सेब का उत्पादन मुख्यतः शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मण्डी, चम्बा तथा सिरमौर जिलों में किया जाता है। जनजातीय जिला लाहौल-स्पिति के लोग भी अब बड़े पैमाने में सेब के पौधों का रोपण कर रहे हैं। वर्ष 1950-51 में सेब के अधीन 40 हेक्टेयर क्षेत्रा था, जबकि वर्ष 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर क्षेत्रा में सेब की खेती की जाती थी, जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 1,09,553 हेक्टेयर हो गई है। यह दर्शाता है कि राज्य की अधिकांश आबादी सेब की फसल पर निर्भर है।
हिमाचल प्रदेश की लगभग 3500 करोड़ रुपये की सेब आर्थिकी न केवल राज्य की खुशहाली की रीढ़ है, बल्कि इससे प्रदेश तथा अन्य राज्यों के हजारों हितधारक जैसे ट्रांसपोटरों, कार्टन निर्माताओं, नियंत्रित वातावरण भण्डारण/शीत भंडारण मालिकों, थोक फल बिक्रेताओं, फल विधायन इकाइयों के मालिकों के अतिरिक्त लाखों लोगों को प्रत्यक्ष अथवा अपरोक्ष रोजगार मिलता है। सेब आर्थिकी ने प्रदेश के लोगों का अभूतपूर्व तरीके से जीवन स्तर में बदलाव लाया है, जिसका श्रेय मेहनतकश सेब उत्पादकों के साथ-साथ राज्य सरकार द्वारा उठाये गए विभिन्न कदमों जैसे बागवानों को उच्च पैदावार किस्मों के सेब तथा बेहतर विपणन के लिये प्रदान की जा रही अधोसंरचना को जाता है।
राज्य सरकार सेब उत्पादकों के विभिन्न समस्याओं का समग्र समाधान करने के लिए वचनब( है। प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में उत्पादकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिये राज्य सरकार ने उनके कल्याण के लिए अनेक योजनाएं लागू की हैं। प्राकृतिक आपदाओं से बागवानों की मूल्यवान फसलों को सुरक्षित रखने के लिए राज्य में मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरू की गई है। आरम्भ में यह योजना सब फसल के लिए 6 खण्डों तथा आम की फसल के लिए 4 खण्डों में लागू की गई है। इस योजना की लोकप्रियता को देखते हुए इसके दायरे राज्य के अन्य खण्डों में भी बढ़ाया जा रहा है। वर्ष 2015-16 के दौरान यह योजना सेब के लिए 36 खण्डों, आम फसल के लिए 41 खण्डों, किनू के लिए 15 खण्डों, पलम के लिए 13 खण्डों तथा आडू फसल के लिए 5 खण्डों में कार्यान्वित की गई है।
इसके अतिरिक्त, ओलावृष्टि से सेब की फसल को बचाने के लिए इस योजना के अन्तर्गत राज्य के 17 खण्डों में अतिरिक्त कवर प्रदान किया गया है। वर्ष 2014-15 के रबी की फसल के दौरान मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत सेब के लिए 97,246 उत्पादकों को लाया गया है। सेब उत्पादकों ने अपने 61,69,865 सेब पौधों का बीमा करवाया है, जिसके लिए प्रदेश सरकार 25 प्रतिशत प्रीमियम की अदायगी पर 9.22 करोड़ रुपये का अनुदान वहन करेगी। योजना के अन्तर्गत 34.50 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति प्रदान कर 92,423 किसानों को लाभान्वित किया गया है।
राज्य में विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित 1115 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना भी कार्यान्वित की जा रही है। सात वर्षों की अवधि तक कार्यान्वित की जाने वाली इस परियोजना के अन्तर्गत फसल उत्पादन में वृ(ि करने एवं क्षमता निर्माण के लिए बागवानों को नई तकनीक प्रदान करने पर बल दिया जाएगा। फल फसलों विशेषकर सेब को ओलावृष्टि से बचाने के लिए राज्य सरकार ने एंटी हेलनेट पर अनुदान को 80 प्रतिशत तक बढ़ाया है।
किसानों को उनके उत्पादों की बिक्री के लिए बेहतर विपणन सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से, राज्य सरकार ने वर्तमान कार्यकाल के दौरान 27.45 करोड़ रुपये की राशि खर्च करके 10 विपणन मण्डियों एवं एकत्राण केन्द्रों को क्रियाशील बनाया है। इनके अलावा, निरमण्ड, घुमारवीं, पालमपुर चरण-2 तथा चरण-1 में चार उप-मण्डियों का निर्माण पूरा किया गया है। कुल्लू जिला के चैरीबेहल, कांगड़ा के फतेहपुर तथा ऊना जिले के भदशाली में तीन उप-मण्डियों का निर्माण कार्य जल्द ही पूरा होगा। अन्य 6 उप-मण्डियों का कार्य प्रगति पर है और राज्य सरकार शिमला जिले के मेंहदली, सुन्नी, टूटू, ढली चरण-2, सोलन जिले के परवाणु तथा कांगड़ा के धर्मशाला में सात उप-मण्डियों की स्थापना कर रही है।
राज्य में सेब एंव फल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों से कृषि अर्थव्यवस्था को नए आयाम मिलेंगे।

1892 में देश की पहली सहकारी सभा हिमाचल के गांव में हुई थी गठित

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सहकारी सभाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश को देश में सहकारिता संस्थापक राज्य होने का गौरव प्राप्त है। देश की पहली सहकारी सभा वर्ष 1892 में प्रदेश के ऊना जिले के गांव पंजावर में गठित की गई थी। तब से लेकर आज तक सहकारिता आंदोलन ने केवल समुदायों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में बदलाव लाया है। बल्कि समाज के कमजोर वर्गों, महिलाओं एवं युवाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। इन सभाओं के माध्यम से सृजित धनराशि ने राज्य के आर्थिक विकास में सरकार की सहायता भी की है।
राज्य में प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों को सहकारिता आंदोलन से जोड़ने पर विशेष बल दिया गया था। उस दौरान राज्य में कुल 843 सहकारी सभाएं थीं। जिनमें 25000 सदस्य थे और अधिकांश सभाएं निष्क्रिय थी। आज राज्य में 1.37 लाख सदस्यों की 4837 विभिन्न सहकारी सभाएं क्रियाशील हैं। इन सभााओं की अशं पूंजी 291.34 करोड़ रुपये और जमा पूंजी 196.40 करोड़ रुपये है।
सहकारी सभाओं ने कृषकों, बागवानों तथा अन्य कमजोर वर्गों के लोगों को उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए कृषि एवं गैर कृषि कार्यों के लिए अल्प अवधि/ मध्यम अवधि तथा दीर्घकालीन अवधि के लिए 6713 करोड़ रुपये के ट्टण दिए हैं। इसके अतिरिक्त चालू वित्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत सहकारी समितियों के माध्यम से 893 करोड़ रुपये मूल्य की उपभोक्ता वस्तुएं तथा 151 करोड़ रुपये की रासायनिक खाद/ बीज एवं कीटनाशक इत्यादि वितरित किए गए हैं। सभाओं ने 187 करोड़ रुपये मूल्य की कृषि और बागवानी उत्पादों का विपणन भी किया है। जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
सहकारी सभाओं को आर्थिक रूप से व्यवहार सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने प्रथम चरण में राज्य के सभी जिलों में राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम के अन्तर्गत समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन पूरा कर लिया है।
राज्य सरकार की संस्तुति पर राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम ने समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं का दूसरा चरण तीन वर्षों के लिये 3546.71 लाख रुपये की संघटित लागत के साथ बिलासपुर/ हमीरपुर और सिरमौर जिलों में आरम्भ करने की स्वीकृति प्रदान की है।
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम ने राज्य सरकार की संस्तुतियों पर इन परियोजनाओं का दूसरा चरण हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा/ शिमला तथा कुल्लू तीन और जिलों के लिए अगले तीन वर्षों के लिए स्वीकृत किया है जिसकी संघटित लागत 8170.64 करोड़ रुपये है।
इन स्वीकृत धनराशियों में से 2013.12 लाख रुपये परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों हि0प्र0 राज्य सहकारी बैंक शिमला तथा कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला को जारी कर दिए गए हैं। सभी नई परियोजनाएं क्रियाशील हो चुकी हैं।
दूसरे चरण की इन समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत अधोसंरचना विकास गोदामों, विक्रय दुकानों एवं कार्यालय, वर्कशैडों का निर्माण, गोदामों की मुरम्मत, फर्नीचर की खरीद, आवश्यक उपकरणों सहित कंप्यूटरों की खरीद पर बल दिया गया है। इन परियोजनाओं में सहकारी सभाओं के कर्मचारियों/ प्रबन्धन समिति सदस्यों तथा पीआईटी कर्मियों के लिए प्रशिक्षण का समुचित प्रावधान किया गया है।
राज्य सरकार के सतत् प्रयासों एवं प्रोत्साहन के परिणामस्वरुप अधिक से अधिक लोग सहकारिता आंदोलन से जुड़ रहे हैं तथा कमजोर वर्गों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान एवं ग्रामीण आर्थिकी में अपना योगदान दे रहे हैं।

दूरदर्शन केद्र शिमला में सीबीआई

शिमला/शैल। दस जून को दूरदर्शन केन्द्र शिमला में सुबह ही सीबीआई की टीम का दस्तक देना इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। जैसे ही सीबीआई टीम के दूरदर्शन केन्द्र में पहुंचने की खबर फैली इसी के साथ पूरे मीड़िया का ध्यान केन्द्रित हो गया। ऐसा होना स्वाभाविक था। इसके कारण जो समाचार प्रकाशित हुए उनमें इस दस्तक देने को रेड का नाम मिल गया। रेड के कारणों तक की चर्चा हो गयी। इस चर्चा से दूरदर्शन केन्द्र का प्रबन्धन कुछ विचलित होने के कारण एक स्पष्टीकरण जारी हुआ है। इस स्पष्टीकरण में सीबीआई की दस्तक को औचक निरीक्षण कहा गया है। यह भी हो गया कि सीबीआई की टीम के साथ प्रसार भारती के अधिकारी भी शामिल थे।
स्पष्टीकरण में इस केन्द्र पर लगे रहे अनियमितताओं घूसखोरी और झूठे बिल बनाये जाने के आरोपों को निराधार करार दिया गया है। लेकिन यह भी साथ ही कहा गया है कि‘‘यह औचक निरीक्षण पंजाब के दो डिस्ट्रीब्ूयटर्ज की आपसी रंजिश से पैदा हुई शिकायतों पर आधारित थी और सीबीआई टीम इन्ही कंपनियों से संबधित दस्तावजों की जांच के लिये आयी थी और उन्ही से संबधित दस्तावंेजो को जांच के लिये लेकर गयी है।
इस स्पष्टीकरण के मुताबिक दो डिस्ट्रीब्यूटरों को लेकर कोई शिकायत थी। स्वाभाविक है कि जब संबधित विभाग में इनसे जुडी़ शिकायतों पर कोई करवाई नही की गयी होगी तब इसकी शिकायत सीबीआई के पास गयी होगी।
सीबीआई किसी भी विभाग के प्रशासनिक निरीक्षण के लिये नही जाती है क्योेंकि हर विभाग के प्रशासनिक निरीक्षण की जिम्मेदारी उसके अधिकारीयों की रहती है। सीबीआई तो तभी हरकत में आती है जब विभाग को लेकर कोई वित्तिय अनियमितताओं के आरोप लगें। आरोप तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाते है कि कितने प्रमाणिक थे और प्रमाणित हो पाये है। इस संद्धर्भ में भी अभी तक कोई जांच रिपोर्ट तो सामने आयी नही है। यह भी स्वाभाविक है कि जिसके खिलाफ आरोप लगते हंै वह कभी भी जांच परिणाम आने से पहले अपने को दोषी नही मानता है इस संवध में आया स्पष्टीकरण अपरोक्ष में आरोपों की स्वीकारोक्ति ही बन जाता है।
इसलिये दूरदर्शन कर्मियों की ओर से आया स्पष्टीकरण आज हर कहीं चर्चा का विषय बना हुआ है।

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