Thursday, 18 September 2025
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व्यवस्था परिवर्तन के जुमले ने पहुंचाया सरकार को गिरने की कगार पर

शिमला/शैल। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद प्रदेश की राजनीतिक स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। कांग्रेस के संकट को संभालने के लिये हाईकमान द्वारा भेजे गये पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बाद यह संकट और गहरा गया है। क्योंकि इस रिपोर्ट पर उठी चर्चाओं के अनुसार इस संकट के लिये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह और उनके मंत्री बेटे विक्रमादित्य सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुये प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने का सुझाव दिया गया है। इसी के साथ मुख्यमंत्री द्वारा भी अपनी गलतियां स्वीकार करने की बात करते हुये लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पर विचार करने की बात की गई है। यदि सही में पर्यवेक्षकों की ऐसी ही रिपोर्ट है तो यह अन्तःविरोधी है और संकट को गहराने वाली है। क्योंकि एक के अपराध की सजा अभी और दूसरे के अपराध पर बाद में विचार किया जायेगा। क्या इस स्थिति को कांग्रेस जन स्वीकार कर पायेंगे? यदि पर्यवेक्षकों के इस सुझाव को मानते हुये इस पर अमल भी कर लिया जाये तो क्या कांग्रेस प्रदेश में लोकसभा की कोई सीट जीत पायेगी? शायद नहीं। जब सरकार बन जाती है तो मुख्यमंत्री प्रमुख हो जाता है और संगठन दूसरे स्थान पर चला जाता है। स्मरणीय है कि जब सुक्खविंदर सिंह सुक्खू प्रदेश अध्यक्ष थे और स्व. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे और दोनों में भेद चल रहे थे। तब कांग्रेस चुनाव हार गयी थी और उस हार के लिये बतौर अध्यक्ष सुक्खू ने मुख्यमंत्री वीरभद्र को जिम्मेदार ठहराया था। सुक्खू का उस समय का ब्यान वायरल हो चुका है। सुक्खू का यह तर्क तब भी सही था और आज भी सही है। कार्यकर्ता सरकार के कार्यों को लेकर जनता में जाता है। सरकार की उपलब्धियों पर चुनाव लड़े जाते हैं उसके ब्यानों पर नहीं। आज हिमाचल की सबसे बड़ी समस्या युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी है। हिमाचल बेरोजगारी में देश का छटा राज्य हो गया है। युवाओं को रोजगार देने की गारंटी दी गई थी। लेकिन विधानसभा के इस बजट सत्र में यह प्रश्न पूछे गये थे कि सरकार ने एक वर्ष में कितना रोजगार उपलब्ध करवाया है। ऐसे हर सवाल के जवाब में सूचना एकत्रित की जा रही का ही जवाब दिया गया है। ऐसे जवाब में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि लोग पार्टी को समर्थन देंगे। इस परिदृश्य में यह सवाल अहम हो जाता है कि यदि कार्यकर्ता जनता के सवालों को लेकर अपने नेताओं से सवाल नहीं पूछेंगे तो किससे पूछेंगे? प्रदेश नेतृत्व द्वारा जवाब न दिये जाने पर हाईकमान तक बात पहुंचाई जायेगी। यदि हाईकमान भी बात नहीं सुनेगा तो फिर बगावत के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। क्योंकि जनता सुप्रीम होती है। पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट से यही झलकता है कि इस समय सरकार और पार्टी को बचाने की बजाये मुख्यमंत्री को बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं। भले ही कांग्रेस के हाथ से हिमाचल में सरकार और संगठन दोनों ही निकल जायें। क्योंकि बागी विधायक और पार्टी अध्यक्ष पिछले एक वर्ष से हाईकमान को वस्तुस्थिति से अवगत करवाते आ रहे हैं और उनकी बात नहीं सुनी गयी। सारे प्रदेश को व्यवस्था परिवर्तन की जुमले के गिर्द घुमाया गया और आज मित्रों के बोझ से ही सरकार गिरने पर पहुंच गई है। जबकि यह व्यवस्था परिवर्तन आज तक परिभाषित नहीं हो सका है।

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