शिमला/शैल। प्रदेश के पूर्व डीजीपी आई डी भण्डारी ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करके सक्रीय राजनीति में कदम रख दिया है। भण्डारी के शामिल होने से आम आदमी पार्टी प्रदेश में कितना आगे बढ़ पाती है यह तो आने वाले समय में ही पता लगेगा। वैसे आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उताकर प्रदेश की राजनीति में कदम रख दिया था। उस समय पार्टी की बागडोर कांगड़ा से भाजपा के सांसद रहे पूर्व मन्त्री डा.राजन सुशांत ने संभाली थी आज राजन सुशान्त ‘‘आप’’ छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। उस समय जिन लोगों ने ‘‘आप से चुनाव लड़ा था उनमें से आज केवल शिमला से प्रत्याशी रहे सुभाष ही पार्टी में बने हुए हैं। शायद उनके पास अधिकारिक तौर पर कोई पद भी नहीं है। अभी पार्टी ने नगर निगमों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में भाग लिया था। पार्टी के ही सूत्रों के मुताबिक शायद एक दो लोग ही पचास या इससे अधिक वोट ले पाये हैं। सात वर्षों में पार्टी अपना जनाधार क्यों नहीं बना पायी है। शायद अब तक चार लोग पार्टी की प्रधानगी कर चुके हैं। पार्टी अपना आधार क्यों नहीं बना पायी और क्यों इतनी बार प्रधान बदलने पड़े इस सवाल पर शायद अब तक कोई मन्थन नहीं हो पाया है। यह स्पष्ट है कि पार्टी अभी तक अपनी विश्वसनीयता नहीं बना पायी है।
प्रदेश में अब तक दो ही पार्टीयों के हाथ में सत्ता रही है। सपा, बसपा भी यहां पर प्रयास कर चुकी हैं। टीएमसी ने भी प्रयास किया है। हिविंका और हिलोपा तो कुछ चुनावी सफलता भी हासिल कर चुकी थी लेकिन फिर भी अपने को कायम नहीं रख पायी है। आज भी हिमाचल स्वाभिमान पार्टी, हिमाचल जन क्रान्ति पार्टी और अपना हिमाचल अपनी पार्टी प्रदेश में गठित है। लेकिन कोई भी कांग्रेस-भाजपा का विकल्प बनने की उम्मीद जनता में नहीं जगा पाया है। ऐसा क्यों हुआ है यदि इसके कारण की पड़ताल की जाये तो यह सामने आता है कि हिविंका को छोड़कर शेष सभी पार्टीयां एक समय भाजपा में रह चुके लोगों द्वारा ही खड़ी की गयी है। इन पार्टीयों की विडम्बना यह रही है कि यह कभी भी भाजपा की नीतियों के खिलाफ खड़ी नहीं हो पायी है। इनके निशाने पर हमेशा कांग्रेस ही रही है। इससे यह संदेश जाता रहा है कि शायद भाजपा की ही प्रायोजित ईकाईयां रही हैं। केवल हिविंका कांग्रेस की पृष्ठभूमि से निकले लोगों द्वारा गठित थी इसीलिये 1998 में सत्ता की कूंजी उसके हाथ आयी थी। उस समय यदि हिविंका-भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी न करती तो शायद आज प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य कुछ और ही होता।
इस समय ‘‘आप’’ में भी जो लोग सक्रियता दिखा रहे हैं उनमें अधिकांश की पहली निष्ठा भाजपा है। बल्कि कुछ हल्कों में तो इसे भाजपा की ही प्रायोजित ईकाई माना जाता है। क्योंकि दोनों दलों भाजपा और ‘‘आप’’ को 2014 में सत्ता अन्ना के आन्दोलन के प्रतिफल के रूप में मिली थी। अन्ना का आन्दोलन एकदम संघ- भाजपा का प्रायोजित प्रयोग था यह अब सबको स्पष्ट हो चुका है। ऐसे में जब तक ‘‘आप’’ इस प्रतिछाया से बाहर नहीं आ पाती है तब तक उसकी कांग्रेस-भाजपा का विकल्प बनने की कोई संभावना नहीं रह जाती है। फिर जिस तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने बहुत कुछ दिल्ली की जनता के एक बड़े हिस्सों को मुफ्त दे रखा है वैसा ही दिल्ली से बाहर भी उससे अपेक्षा की जाती है। जबकि अन्य प्रदेशों में ऐसा संभव नहीं है क्योंकि हर प्रदेश कर्ज में डुबा हुआ है केवल दिल्ली ही एक ऐसा प्रदेश है जिसका बजट उसकी राजस्व आय के बराबर है और दिल्ली सरकार पर कोई बड़ा कर्ज नहीं है। जबकि हिमाचल में तो कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज लिया जाता है। ऐसे में आज ‘‘आप’’ द्वारा प्रदेश के हर मृतक फौजी को एक-एक करोड़ की राशी देने की घोषणा करना प्रदेश का कर्जभार और बढ़ाने की दिशा में पहला कदम माना जायेगा। ‘‘आप’’ की इस घोषणा का व्यवहारिक रूप से क्या असर पड़ता है यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। क्योंकि यह घोषणा प्रदेश की आर्थिक स्थिति का कोई आकलन और उस पर व्यापक चर्चा किये बिना किया गया है।
शिमला/शैल। सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के छात्रों तथा गरीब बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध करने के लिये करीब 34 छात्रवृति योजनाएं शुरू कर रखी हैं। यह योजनाएं सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई कर रहे इन वर्गों के छात्रों पर बराबर लागू होती हैं। इस छात्रवृति योजना में एक समय करीब 250 करोड़ का घपला होने के आरोप लगे थे। इन आरोपों पर शिक्षा विभाग ने राज्य परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण से प्रारिम्भक जांच करवाई थी और उसकी रिपोर्ट पर 16-11-2018 को पुलिस थाना छोटा शिमला में एफआईआर दर्ज करवायी थी। आगे चलकर यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। यह जांच शैक्षणिक सत्रा 2016-17 तक सीमित थी। इसमें सीबीआई ने 266 संस्थानों का रिकार्ड कब्जे में लिया है। शिक्षा विभाग और कुछ प्राईवेट संस्थानों के लोगों को गिरफ्रतार भी किया गया है। इस जांच पर अभी तक कोई अन्तिम फैसला नहीं आया है।
इन योजनाओं के तहत यह बच्चे प्रदेश से बाहर स्थित संस्थानों में भी पढ़ाई कर रहे हैं। पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति योजना के तहत स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री करने के लिये इन छात्रों को प्रतिवर्ष करीब 3,80,000 रूपये दिये जाते हैं। स्वभाविक है कि इन वर्गों के छात्र इतना खर्च अपनी जेब से नही कर सकते और सरकार द्वारा छात्रवृति भुगतान पर ही इनकी पढ़ाई निर्भर करती है। पंजाब के मोहाली स्थित विद्या ज्योति संस्थान की हिमाचल स्टूडैण्ट वैल्फेयर ऐसोसियेशन के प्रैस नोट से यह सामने आया है कि इन वर्गों के छात्रों को वर्ष 2017-18 और 2019 की छात्रवृति का भुगतान अभी तक नहीं हुआ है। यह छात्र कई बार सरकार के सामने अपनी समस्या रख चुके हैं। सीबीआई केस के नाम पर इनकी छात्रवृति रोकी गयी है जबकि इनका दाखिला ही 2016 के बाद का है।
शिमला/शैल। प्रदेश से डीजीपी सहित तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने केन्द्र मे जाने के लिये आवेदन कर दिया है। डीजीपी संजय कुंडु तो मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं इस नाते सरकार के बारे में सबसे अधिक जानकारीयां उनके पास होना स्वभाविक है। फिर पुलिस के तो तन्त्र की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह रहती है कि वह सरकार के आंख, कान और नाक की भूमिका पूरी ईमानदारी और सक्रियता से निभाये। चुनावों के दौरान तो सत्तारूढ़ दल सबसे अधिक विश्वास पुलिस की सूचनाओं पर करता है। सीआईडी चुनावों से पहले यह सर्वे तक करती है कि जनता का रूझान किस दल की ओर कितना है। ऐसे में जब पुलिस प्रमुख ही चुनावों से पहले ही केन्द्र मे जाने के प्रयासों में लग जाये तो स्वभाविक है कि इस पर चर्चाएं तो उठेंगी ही। क्योंकि बहुत सारे ऐसे मामले होते हैं जिन्हें आगे बढ़ाने के लिये पुलिस की राय ली गयी होती है। ऐसे मामलों का चुनावों पर प्रभाव भी पड़ता है। चर्चा है कि स्वास्थ्य विभाग को लेकर जो मामला दर्ज किया गया था वह दो मन्त्रीयों और कुछ पुलिस अधिकारीयों के दवाब में ही लिया गया फैसला था। मुख्यमन्त्री शायद इस पक्ष में नही थे। इसी तरह कुल्लु में एक मामला दर्ज हुआ। चर्चा है कि सीआईडी यह मामला दर्ज करने के पक्ष नहीं थी और पुलिस ने फिर भी यह मामला दर्ज कर लिया। ऐसे मामले जब भी देर-सवेर अदालत में पहुंचते हैं तब वह फिर चर्चा में आ जाते हैं। तब फिर नेतृत्व पर सवाल आते हैं। ऐसे बहुत सारे मामले हैं जो आने वाले दिनों में चर्चा के विषय बनेंगे।
इस परिदृश्य में इन वरिष्ठ अधिकारीयों का दिल्ली जाने के लिये आवेदन करना राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय होना स्वभाविक हो जाता है क्योंकि अभी सरकार ने मण्डी और धर्मशाला क्षेत्र में दो मीडिया कोआर्डिनेटर नियुक्त किये हैं। यह नियुक्तियां भी अब सरकार के चौथे वर्ष में हुई हैं। इन नियुक्तियों से भी यही संदेश जाता है कि सरकार का सूचना और जन संपर्क विभाग भी शायद सरकार की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उत्तर पाया है इसीलिये उपचुनावों से पहले इन नियुक्तियों को अंजाम दिया गया है। अभी मण्डी, कांगड़ा और शिमला लोकसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं। इन्ही को ध्यान में रखकर इन्ही क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले पत्रकारों को यह नियुक्तियां दी गयी हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनो में शिमला और हमीरपुर के क्षेत्रों में भी ऐसी ही नियुक्तियां की जायेंगी।
किसी भी सरकार के लिये पुलिस और सूचना एवम् जन संपर्क विभाग चुनावी दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ऐसे में जब इन्हीं विभागों में चुनावों से पहले इस तरह की स्थितियां बनना शुरू हो जायें तो उसके कई अर्थ लगने शुरू हो जाते हैं। फिर इस समय तो भाजपा केन्द्र से लेकर राज्यों तक सभी जगह परफारमैन्स को लेकर लगातार आकलनों मे जुट गयी है। केन्द्र के मन्त्रीमण्डल में फेरबदल के दौरान एक दर्जन मन्त्रीयों की छुट्टी किया जाना उत्तराखण्ड में मुख्यमन्त्री का बदलना और अब कर्नाटक में मुख्यमन्त्री बदलने की कवायद शुरू होना इसी आकलन के परिणाम माने जा रहे हैं। हिमाचल में भी इसी आकलन के लिये शिमला और धर्मशाला में पांच दिन तक कोर कमेटी का मन्थन चला था। इस मंथन में 2017 में जिन 68 लोगों ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था। उन सबको बुलाया गया था। इस बैठक में हुई चर्चा के बाद जो रिपोर्ट कार्ड तैयार हुआ और केन्द्र को सौंपा गया उसमें बड़े पैमाने पर नॉन-परफारमैन्स आयी है। यह नॉन परफारमैन्स ही इस समय केन्द्र के सामने बड़ा सवाल बना हुआ है। इसीलिये पुलिस और सूचना एवम् जन संपर्क विभागों में चल रही गतिविधियां विश्लेष्कों के लिये महत्वपूर्ण बनी हुई हैं।
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