वाशिंगटन।। अमेरिका में भारतीय राजनयिक की गिरफ्तारी और उसके साथ हुए अमानवीय व्यवहार को लेकर भारत द्वारा उठाए गए कई कदमों के बाद अमेरिका ने भारत से अपील की कि वह विएना संधि के सिद्धांतों को कायम रखे और भारत में तैनात अमेरिकी राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
अमेरिकी विदेश विभाग की उप-प्रवक्ता मैरी हर्फ ने अपने नियमित संवाददाता सम्मेलन में कहा, हमने उच्च स्तर पर भारत सरकार को अपनी उम्मीदों से अवगत कराया है कि भारत विएना संधि के तहत राजनयिक संबंधों तथा वाणिज्य दूत संबंधों को लेकर अपने सभी दायित्वों को निभाना जारी रखे।
हर्फ ने कहा, हम भारत के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम करते रहेंगे कि हमारे राजनयिकों और वाणिज्य दूत अधिकारियों को पूर्ण अधिकार और सुरक्षा मुहैया हो।
हमारे प्रतिष्ठानों की रक्षा सुरक्षा हो..हम इस पर भारतीयों के साथ काम करते रहेंगे। वह देवयानी खोबरागडे के साथ कथित अमानवीय व्यवहार को लेकर भारत द्वारा अमेरिकी राजनयिकों के कुछ विशेषाधिकार छीने जाने के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दे रही थीं।
हर्फ ने दावा किया कि भारत सरकार को सितंबर में खोबरागडे के खिलाफ वीजा फर्जीवाड़े के आरोपों के बारे में सूचित कर दिया गया था।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, विदेश विभाग ने भारतीय दूतावास को सितंबर में एक भारतीय नागरिक द्वारा न्यूयॉर्क में तैनात भारत की उप-महावाणिज्य दूत के बारे में लगाए गए आरोपों के बारे में लिखित में सूचित कर दिया था। हर्फ ने कहा कि अमेरिका अपने प्रतिष्ठानों की उचित सुरक्षा के लिए भारत सरकार के साथ बातचीत जारी रखेगा।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी इस मुद्दे पर भारतीय अधिकारियों के संपर्क में हैं।
वहीं देवयानी के वकील डेनियल एन अर्शहाक ने कहा, अपने राजनयिक दर्जे के कारण डॉ देवयानी को मुकदमे से छूट मिली हुई है। उन्होंने कहा, यह पूरा अभियोजन फैसले में बेहद गंभीर भूल को दर्शाता है और यह अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल की शर्मनाक असफलता है।
उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि मामले को जल्द राजनयिक और भारतीय तथा अमेरिकी सरकार के उच्चतर स्तर के प्राधिकार द्वारा हल कर लिया जाएगा और एक गलत अभियोजन जारी रखना हमारे देशों के बीच आपसी हितों के लिए ठीक नहीं होगा।
अमेरिकी प्रशासन की ओर खोब्रागडे के साथ हुए सलूक पर अर्शहाक ने कहा कि उनकी बेटी के स्कूल के सामने सड़क पर गिरफ्तारी और कपड़े उतारकर तलाशी लेने की कोई वजह ही नहीं है।
इधर, भारतीय राजनयिक के साथ न्यूयॉर्क में हुए गलत व्यवहार के विरोध में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलने से इनकार कर दिया है।
इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और बीजेपी नेता नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के दल से मिलने से इनकार कर दिया था। इससे पहले वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने भी अपना विरोध दर्ज कराया था।
दरअसल, न्यूयॉर्क में तैनात भारतीय काउंसलेट की अधिकारी देवयानी खोबरागडे को अपनी नौकरानी के वीजा के लिए फर्जी दस्तावेज देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन जिस तरह से उनकी गिरफ्तारी की गई थी उस पर भारत सरकार ने अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया था।
इससे पहले खबरें आई थीं कि अमेरिका के न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागडे की गिरफ्तारी के समय कड़ी तलाशी (कपड़े उतारकर) ली गई थी और उसे नशेड़ियों के साथ जेल में रखा गया था।
इससे पहले, द्रमुक की महापरिषद ने पार्टी अध्यक्ष एम करुणानिधि और महासचिव के अनबाझगन को 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए चर्चा करने और गठबंधन संबंधित मुद्दों पर निर्णय करने का पूर्ण अधिकार दिया था।
एक प्रस्ताव में कहा गया था, 'यह महापरिषद पार्टी अध्यक्ष, महासचिव को गठबंधन दलों से संपर्क करने, सीटों के बंटवारे पर चर्चा करने और चुनावों के लिए गठबंधन बनाने की खातिर समिति की घोषणा का पूर्ण अधिकार देती है। करुणानिधि की अध्यक्षता में महापरिषद की आज यहां हुई बैठक में यह निर्णय किया गया।'
साथ ही उन्होने एक-एक चिट्ठी बीजेपी और कांग्रेस को भी लिखी है। उन्हे उपराज्यपाल से समय मिला है या नही मिला के जवाब में केजरीवाल ने बताया कि अभी उपराज्यपाल ने कहा है कि इसके लिये हमने कोई समय सीमा तय नहीं की है आप जब तैयार हो जाये हमे चिट्ठी सौंप दिजिये हम आपको बुला लेंगे।
केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस को लिखी उन चिट्ठियों की कॉपी जनता को सौंपी जायेगी। केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ने हमे बिना शर्त समर्थन देने की बात कही है। हम आज भी अपनी बात पर कायम हैं कि हम किसी भी दल को समर्थन ना देंगे ना लेंगे। उन्होंने कहा कि आप का जन्म भ्रष्टाचार से कराहती जनता के दर्द से हुआ है। ऐसे में दोनो दलों से हाथ मिलाने का प्रश्न ही नही है।
केजरीवाल को अब चिट्ठी के जवाब का इंतजार है। अरविन्द केजरीवाल ने 17 मुद्दों पर दोनो पार्टियो की राय मांगी है। सोनिया गांधी और राजनाथ की नाम लिखी चिट्ठी में उन्होने पूछा है कि क्या ये दोनो दल 17 मुद्दो पर बिना शर्त समर्थन देंगे।
ये वही मुद्दे हैं जो आम आदमी पार्टी के मेनीफेस्टो में भी शामिल थे। केजरीवाल ने कहा है कि वो बीजेपी और भाजपा के जवाब के बाद उस पर जनता के साथ चर्चा करेंगे और सरकार बनाने ना बनाने का फैसला जनता की राय के बाद लेंगे।
केजरीवाल ने कांग्रेस पार्टी के बिना शर्त समर्थन देने पर कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाया है। उन्होने कहा कि हमे देर रात पता चला कि कांग्रेस ने उपराज्यपाल को हमे बिना शर्त समर्थन देने की बात कही है। हम आश्चर्य में हैं कि हमे बिना शर्त समर्थन देने के पीछे उनकी मंशा क्या है।
केजरीवाल ने सवाल उठाते हुए कहा कि हमने तो सुना था कि एक एक विधायक को खरीदने के लिये करोड़ो रूपये लगते हैं फिर बिना मांगे हमे समर्थन कैसे मिल रहा है।
अरविन्द केजरीवाल ने बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाते हुये कहा कि वो बार बार अपना स्टैंड बदल रही है। कभी कहते हैं कि वो जनता की भलाई के लिये हमे समर्थन देने को तैयार हैं कभी कहते हैं हम सरकार बनाने की जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। दोनो ही दलों के समर्थन देने के पीछे की मंशा समझ से बाहर है।
इस बीच, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली में सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार के लिए आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को शनिवार को बातचीत के लिए बुलाया है, जिनकी पार्टी के 28 विधायक हैं और जो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। ऐसी संभावना है कि बहुमत की कमी बताकर आप भी सरकार बनाने से इंकार कर देगी।
इससे पूर्व उपराज्यपाल के साथ मुलाकात के बाद भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हर्ष वर्धन ने कहा कि दिल्ली की जनता द्वारा स्पष्ट बहुमत नहीं दिए जाने के कारण भाजपा विपक्ष में बैठना पसंद करेगी। उपराज्यपाल ने हषर्वर्धन को दिल्ली में सरकार के गठन की संभावनाओं का पता लगाने के प्रयासों के तहत बुलाया था।
वर्धन ने संवाददाताओं से कहा कि चूंकि भाजपा दिल्ली चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है इसलिए उपराज्यपाल ने सरकार के गठन के बारे में विचार विमर्श के लिए बुलाया था।
हमने उन्हें बताया कि हमारे पास स्पष्ट बहुमत के लायक सीटें नहीं हैं इसलिए पार्टी विपक्ष में बैठना पसंद करेगी।
वर्धन ने उपराज्यपाल को एक पत्र भी दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि लोगों ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर अपना समर्थन दिया हालांकि ऐसी स्थिति में जब हमें स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया है, हम पार्टी की उच्च नैतिक परंपराओं का पालन करते हुए विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे।
पत्र में उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता की मुख्य परेशानी कांग्रेस का कुशासन और उद्देश्यहीन नीतियां हैं। लोगों की समस्याओं को सुनने की बजाय कांग्रेस सरकार ने उनपर ध्यान ही नहीं दिया। इसलिए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पराजय मिली और पार्टी केवल आठ सीटों पर सिमट गई।
पत्र के अनुसार, उनकी नेता भी अपनी सीट हार गईं। हम विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली के लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट देखना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका क्योंकि हम चार सीटों से बहुमत से चूक गए।
मीडिया के साथ अपने संवाद में वर्धन ने कहा कि भाजपा खरीद फरोख्त में नहीं पड़ेगी क्योंकि वह ईमानदारी की राजनीति पर भरोसा करती है। राजनीति ईमानदारी से होनी चाहिए। हमारे लिए विपक्ष में बैठना और लोगों की सेवा करना बेहतर होगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह आप को समर्थन देंगे, वर्धन ने कहा कि आप को समर्थन देने की बात ही कहां उठती है क्योंकि पार्टी पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वह न तो किसी को समर्थन देगी और न ही किसी का समर्थन लेगी।
गौर हो कि भाजपा को उसके सहयोगी अकाली दल की एक सीट मिलाकर 70 सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटें मिली हैं, जबकि आम आदमी पार्टी को 28 सीटें हासिल हुई हैं।
कांग्रेस की आठ सीटें हैं और जदयू को एक सीट पर जीत हासिल हुई है, जबकि मुंडका सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा।
वर्धन ने कहा कि अगर कोई अन्य पार्टी सरकार बनाना चाहती है तो वह उसका स्वागत करेंगे, लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई वादा नहीं किया कि भाजपा इस तरह की सरकार को समर्थन देगी या नहीं।
इस तरह के सुझाव भी हैं कि पहली बार चुनाव मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी, जो दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है, को भाजपा अथवा कांग्रेस के बाहरी सहयोग से सरकार बनानी चाहिए, लेकिन आप ने इस ख्याल से कतई इंकार किया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या उनका विचार राजधानी को ताजा चुनाव की तरफ धकेलना है, वर्धन ने कहा कि उनकी पार्टी को खंडित जनादेश के परिणामों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि आप के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को ही यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी पार्टी कांग्रेस अथवा भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने की बजाय ताजा चुनाव पसंद करेगी।
उपराज्यपाल कार्यालय ने एक वक्तव्य में कहा कि हर्षवर्धन ने सरकार बनाने में असमर्थता जताई है क्योंकि भाजपा के पास अपने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के साथ दिल्ली विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं है।