Friday, 19 September 2025
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सामूहिक नेतृत्व से कुछ प्रश्न

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिये भाजपा और कंाग्रेस दोनों के उम्मीदवारों की सूचियां आ चुकी हैं। नामांकन भरे जा रहे हंै। कांग्रेस यह चुनाव वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में लड़ रही है। यह कांग्रेस हाईकमान घोषित कर चुकी है। तय है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो उसकेे अगले मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ही होंगे। दूसरीे ओर भाजपा हाईकमान नेे किसी को भी नेता घोषित नहीे किया है। कल को यदि भाजपा को बहुमत मिलता है तो उसका मुख्यमन्त्राीे कौन होेगा यह किसीे को भी आज की तारीख में मालूम नही है। भाजपा सामूहिक नेतृत्व के साये तले यह चुनाव लड़ने जा रही है। इस सामूहिक नेतृत्व का अर्थ होता है कि एक नेता विशेष के व्यक्तित्व और सोच/दर्शन के स्थान पर पार्टी की सोच/दर्शन के नाम पर यह चुनाव लड़ा जायेगा। पार्टी के आगे व्यक्ति गौण हो जाता है यह सामूहिक नेतृत्व का स्वभाविक गुण होता है।
प्रदेश में इससे पहले तीन बार भाजपा की सरकारें रह चुकी हैं। 1990 में शान्ता कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और सरकार बनी भले ही वह बावरी मस्जिद राम मन्दिर विवाद के चलते पूरा कार्यकाल नही चला पायी। उसके बाद 1998 और 2007 में धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़े गये और दोनांे बार सरकारें बनी तथा पूरा कार्यकाल चली। लेकिन केन्द्र मंे मोदी सरकार से पहलेे भाजपा अकेलेे अपने दम पर सरकार नही बना पायी। इस समय केन्द्र मंे प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा की सरकार है। इसी बहुमत के कारण राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के दोनों पद भी भाजपा को मिल पाये हैं। आज केन्द्र में भाजपा की स्पष्ट सरकार होने के कारण पार्टी अपनेे आर्थिक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दर्शन को अमली शक्ल देने की पूरी स्थिति में है तथा वह ऐसा कर भी रही है। इसलिये आज पंचायत से लेकर संसद तक के हर चुनाव में पार्टी की विचारधारा ही मुख्य भूमिका में रहेगी। भाजपा संघ परिवार की एक राजनीतिक इकाई है यह सब जानते हंै इसलियेे विचारधारा के नाम पर संघ का ही दर्शन प्रभावी और हावि रहेगा। इस नाते प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा का पूरा अभियान इसी दर्शन के गिर्द केन्द्रित रहेगा यह स्वभाविक है। क्योंकि कांग्रेस और वीरभद्र के जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया था वह सुक्ख राम परिवार के भाजपा में शामिल होने से अब अप्रभावीे हो गया है।
इसलिये आज केन्द्र सरकार के आर्थिक फैंसले और उसकी दूसरी नीतियां चुनावी चर्चा बनेगे यह तय है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि प्रदेश मंे यह चुनाव अनचाहे हीे मोदी बनाम वीरभद्र बन जायेगा भले ही वीरभद्र इससे लाख इन्कार करते रहें। क्योंकि केन्द्र की ओर से प्रदेश को जो कुछ दिया गया है या घोषित किया गया है उसे भुनाना भाजपा की आवश्यकता होगी। लेकिन जब यह सब भुनाया जायेगा तब केन्द्र के फैसलेे भी जन चर्चा में आयेंगे जिनका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा है और जनता में एक रोष की स्थिति पैदा होती जा रही है। किसी भी सरकार की सफलता का सबसे बड़ा मानक उसके आर्थिक फैसले होते हंै। आज केन्द्र की भाजपा सरकार के मुखिया मोदी जी हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमन्त्री थे। वहां वह लगातार तीसरी बार जीत गये थे। वैसे लगातार तीसरी बार जीतने वालों में भाजपा के शिव राज सिंह चैहान और डा. रमण सिंह भी आते हंै। लेकिन क्योंकि मोदी संघ के प्रचारक भी रह चुके हंै इसलिये संघ ने केन्द्रिय नेतृत्व के लिये उन्हें चुना। मोदी के कार्याकाल में गुजरात में कितना विकास हुआ है इसका एक अनुमान तो इसी से लगाया जा सकता है कि अभी गुजरात के चुनाव की तारीखें घोषित होनी है और मोदी को वहां के लिये एक ही दौरे में 22500 करोड़ की घोषणाएं करनी पड़ी हंै। अभी ऐसी ही और घोषणाएं भी हो सकती हैं। सभंवतः इन्ही घोषणाआंे के लिये हीे हिमाचल के साथ वहां के चुनाव घोषित नही किये गये हैं। इन घोषणाओ में सबसेे दिलचस्प तो यह रहा है कि मोदी को अपने ही गृह नगर बड़नगर में स्वास्थ्य सुविधायंे उपलब्ध करवाने के लिये 500 करोड़ की घोषणा करनी पड़ी है। क्या इससे यह प्रमाणित नही हो जाता कि बतौर मुख्यमन्त्री वह अपने गृह नगर को समुचित स्वास्थ्य सुविधा तक नही दे पाये हंै।
इससे भी महत्वपूर्ण तो यह है कि मोदी के कार्याकाल में गुजरात सरकार का कर्जभार रिर्जब बैंक की एक स्टडी के मुताबिक 2.1 लाख करोड़ से अधिक जा पहुंचा था गुजरात विधानसभा में वहां के वित्तमन्त्री नितिन पटेल 2015-16 के बजट अनुमान प्रस्तुत करते हुए हाऊस को यह जानकारी दी थी कि इस वर्ष सरकार का कर्जभार 1,82,098 करोड़ हो चुका है। इस पर कांग्रेस विधायक अनिल जोशियारा के प्रश्न पर प्रश्नकाल के दौरान यह बताया गया कि 2014-15 में यह कर्ज 1,63,451 करोड़ था जो अब 18,647 करोड़ बढ़ गया है। इसी पर अनुपूरक प्रश्न के उत्तर मंे बताया गया कि इससे पूर्व के दो वर्षो में 19,454 और 24,852 करोड़ का कर्ज लिया गया। इसी जानकारी में यह भी बताया गया कि 2013-14 में 13061 करोड़ ब्याज और 5509 करोड़ मूलधन वापिस किया गया। 2015-16 में 14.495 करोड़ ब्याज और 6205 करोड़ मूलधन कें रूप में लौटाया गया। इन आंकडो से यह समझ आता है कि जो प्रदेश जितना प्रतिवर्ष ब्याज अदा कर रहा है मूलधन की किश्त तो उसके आधे सेे भी कम वापिस की जा रही है ऐसे पूरा कर्ज लौटाने में कितना समय लग जायेगा। इसी के साथ यह भी प्रश्न उठता है कि जब अपने ही गृह नगर को मोदी आज केन्द्र के पैसे से स्वास्थ्य सुविधा दे रहे हैं तो फिर यह दो लाख करोड़ का कर्ज कहां निवेश हुआ। क्या इस कर्ज से कुछ बड़े औद्यौगिक घरानों के लिये ही सुविधायें जुटायी गयी है। क्योंकि आज केन्द्र के सारे बड़ेे आर्थिक फैसलों का लाभ भी इन्ही बडे़ घरानों को मिलता दिख रहा है और आम आदमी के हिस्से केवल जीएसटी से कीमते बढ़ना, पैट्रोल डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ना ही हिस्से में आयेगा। आज आम आदमी से अनुरोध है कि इस चुनाव में वह इन जवलन्त प्रश्नों पर नेताआंे सेे जवाब मांगेे। पार्टीयों के ऐजैण्डे की जगह अपने इन सवालों पर चुनाव को केन्द्रित करे।

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