इस समय प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों /निकायों में आऊट सोर्सिंग के माध्यम से काम कर रहे कर्मचारियों को सरकार में नियमित करने के लिये पाॅलिसी लाये जाने की चर्चा हो रही है। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने इन कर्मचारियों को ऐसा आश्वासन दे रखा है। मुख्यमन्त्री ने यह आश्वासन चुनावी गणित को सामने रखकर दिया है क्योंकि इन कर्मचारियों की संख्या तीस हजार से अधिक कही जा रही है। सरकार में कर्मचारी भर्ती के लिये वाकायदा आर एण्ड पी रूल्ज बने हुए हैं। इन नियमों को सदन से भी स्वीकृति प्राप्त है और इनमें आऊटसोर्स कर्मचारी जैसा कोई वर्ग नहीं है। सरकार में इस समय कान्ट्रैक्ट के आधार पर भी कर्मचारी कार्यरत है। बल्कि स्कूलों में तो पीटीए और एसएमसी नाम के भी अध्यापक काम कर रहे है। आर एण्ड पी रूल्ज में ऐसे कर्मचारियों का कोई प्रावधान नहीं है। हिमाचल हाईकोर्ट में भी जस्टिस आर.बी. मिश्रा की पीठ ने कान्ट्रैक्ट पर रखे गये कर्मचारियों को चोर दरवाजे की भर्ती करार दिया है। रूल्ज के मुताबिक कर्मचारियों का एक ही वर्ग है और वह नियमित कर्मचारी। जो कर्मचारी नियमित नही है वह तदर्थ कर्मचारी माना जाता है। इन कर्मचारियों को भर्ती करने की एक तय प्रक्रिया है।
लेकिन इस तय प्रक्रिया की अवहेलना करके अस्सी के दशक में ही शिक्षा विभाग में वालॅंटियर शिक्षक भर्ती किये गये थे। इन शिक्षको को बड़े बाद में सरकारी खर्च पर ट्रेनिंग करवाई गयी थी और उसके बाद यह नियमित हुए। इसके बाद आयी हर सरकार ने शिक्षा विभाग में भर्ती की तय प्रक्रिया को नजर अन्दाज करके चोर दरवाजे से विद्या उपासक पैरा टीचरज, पीटीए, एसएमसी के नाम पर भर्ती के रास्ते अपनाये। 1993 से 1998 के दौर में हजारों कर्मचारी चिटों पर भर्ती किये गये। अब तो हर विभाग में चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी कर्मचारियो को कान्ट्रैक्ट पर रखा जा रहा है। बल्कि कान्ट्रैक्ट से भी आगे निकलकर अब आऊट सोर्सिंग के माध्यम से कर्मचारी भर्ती किये जा रहे है। कानून की नजर से ऐसी सारी भर्तीयां गैर कानूनी है। सरकार भी किसी चीज के लिये तय प्रक्रिया को नजर अन्दाज नही कर सकती है। हाईकोर्ट ऐसी सारी नियुक्तियों को चोर दरवाजे की भर्तीयां करार दे चुका है लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। इसीलिये तो अब आऊट सोर्स पर रखे गये कर्मचारियों को नियमित करने के लिये पाॅलिसी लायी जा रही है।
सरकार का ऐसी कोई पाॅलिसी लाना एकदम गैर कानूनी है। लेकिन यहां पर यह समझना आवश्यक है कि सरकार को ऐसा करने की आवश्यकता क्यों हो जाती है। लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना सरकार की सवैंधानिक जिम्मेदारी है संविधान की धाराओं 38, 39, 41 में इसका स्पष्ट उल्लेख है। इसके साथ धारा 14 और 16 के तहत सबको एक समान अवसर उपलब्ध करवाना भी सरकार की जिम्मेदारी है। इन्ही धाराओं में यह सुनिश्चित किया गया है कि समान काम के लिये समान वेतन दिया जायेगा। कर्मचारी चाहे कान्ट्रैक्ट पर हो या अन्य किसी भी आधार पर रखा गया हो उसके वेतन में नियमित कर्मचारी के वेतन के मुकाबले में कोई अन्तर नहीं किया जा सकता। यह सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब मामले में दिये फैसले में स्पष्ट कर दिया है। एक लम्बे समय से सरकार सीधे नियमित भर्ती करने की बजाये कान्ट्रैक्ट आदि पर भर्तीयां करती आ रही थी। जब ऐसी भर्तीयां में भी चयन प्रक्रिया अनुपालना करने की विवशता आ गयी तो उसके बाद आऊट सोर्सिंग का माध्यम अपना लिया गया है। आऊट सोर्सिंग में कोई प्रक्रिया की बाध्यता नही है। जो भी सामने आ गया यदि वह न्यूनतम योग्यता को पूरा करता है तो उसे रख लिया जाता है। ऐसे कर्मचारी को केवल न्यूनतम दिहाड़ी जो कि जिलाधीश के माध्यम से तय होती है वही वेतन दिया जाता है। जबकि जिस भी विभाग में ऐसे कर्मचारी को तैनात किया जाता है वहां से ज्यादा वेतन लिया जाता है। इस तरह प्रति कर्मचारी उसको भर्ती करने वाला लेवर स्पलायर दो-तीन हजार का अपना कमीशन रख लेता है। कानून में ऐसे कर्मचारी के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नही होती है। क्योंकि वह सरकार का कर्मचारी न होकर लेवर स्पलायर का कर्मचारी होता है।
सरकार इस चलन से पूरी तरह परिचित है। लेकिन लेवर स्पलायर किसी न किसी राजनेता/अधिकारी से पोषित होता है और उसके पास आने वाले कर्मचारी को किसी चयन प्रक्रिया का सामना नही करना पड़ता है। इसलिये यह सारा चक्र चलता रहता है। इस समय प्रदेश के स्कूलों में कार्यरत कम्यूटर शिक्षक इसी आऊट सोर्स के माध्यम से रखे गये कर्मचारी हैं। लेकिन सरकार ने इस ओर कभी ध्यान नही दिया कि जब आज कम्यूटर प्रशिक्षण/शिक्षण एक अनिवार्यता बन गया है तो उसके लिये स्थायी व्यवस्था क्यों नही बनायी गयी। क्योंकि आऊटसोर्स का अर्थ केवल यही है कि एक सीमित समय के लिये ही आपके पास काम है जबकि वास्तव में ऐसा नही है। ऐसे में स्थायी काम को आऊट सोर्स के माध्यम से करवाना जायज़ नही ठहराया जा सकता फिर भी इन कर्मचारियों को आज सरकार में नियमित करने में संविधान की धारा 14 और 16 का सीधा उल्लंघन है क्योंकि इन्हें आऊटसोर्स के माध्यम से रखने पर किसी चयन प्रक्रिया की अनुपालना नही की गयी है ऐसे में सरकार का यह कदम भी एकदम चिटों पर भर्ती जैसा ही हो जायेगा।