Thursday, 18 September 2025
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बेरोजगारी भत्ता विकल्प नहीं है

शिमला/शैल।मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने वर्ष 2017-18 का बजट सदन में रखते हुए प्रदेश के उन बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है जिनकी शैक्षिणक योग्यता जमा दो या इससे अधिक होगी। बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में था इस वायदे को लेकर कांग्रेस सरकार और संगठन में किस तरह की बहस होती रही है यह जगजाहिर है। इस वायदे को पूरा करने के लिये जी एस बाली और विपल्व ठाकुर जैसे नेताओं ने वीरभद्र पर जो दबाव बनाया था वीरभद्र सिंह उस दबाव के आगे झुके नहीं थे। यहां तक की जब 8 मार्च को मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के अभिभाषण पर हुई बहस का जबाव दिया तब भी कहा कि जब सरकार के पास संसाधन होंगे तब बेरोजगारी भत्ते के देने पर विचार करेंगें। स्पष्ट है कि राज्यपाल अभिभाषण पर हुई बहस का जबाव देते वक्त तक वीरभद्र यह भत्ता दिये जाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन बजट भाषण पढ़ते समय इसकी घोषणा कर दी गयी। इस परिपेक्ष में यह सवाल उठता है कि दो दिन के भीतर राज्य सरकार के संसाधनों मे कोई वृद्धि नही हुई है इसका प्रमाण 2017-18 के बजट में दर्ज चार हजार करोड़ अधिक के घाटे की स्वीकारोक्ति है। ऐसे में स्वाभाविक है कि इस घोषणा के शुद्ध राजनीतिक कारण हैं। पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिये हुए चुनावों के इग्जिपोल जब आने शुरू हुए तो उन नतीजों में कांग्रेस के लिये कहीं से भी कोई सुखद संकेत नही मिला। हिमाचल में भी इसी वर्ष के अन्त में विधानसभा चुनाव होने है और इस नाते यह इस कार्यकाल का आखिरी बजट सत्र है। इसलिये ऐसी घोषणा इसी समय पर की जा सकती थी जो कि हो गयी। यह योजना कैसे लागू की जायेगी इसके लिये नियम आने वाले दिनो में बनेंगे। इस घोषणा से यह तय है कि बेरोजगारी भत्ते का बोझ अब आने वाली सरकारों को उठाना ही पडे़गा सरकार चाहे जिसकी भी बने।
राजनेता और राजनीतिक दल अपने सत्ता स्वार्थों के आगे कुछ भी दांव पर लगा सकते  है अपने रराजनीतिक स्वार्थ के लिये कोई भी फैसला जनता पर थोप देगें भले ही उसे पूरा करने के लिये संसाधन कर्ज लेकर ही जुटाने पड़े। आज हिमाचल प्रदेश में संसाधनों के नाम पर 31 मार्च 2016 को राज्य का कर्जभार करीब 39000 करोड़ दिखाया गया है। इसमें वर्ष 2016-17 का कर्ज जोडकर यह आंकडा 45000 हजार करोड़ से ऊपर हो जायेगा। इस इतने भारी भरकम कर्ज से सरकार ने क्या संपति खडी की है? प्रदेश में कौन सा उद्योग सरकारी क्षेत्र में स्थापित हुआ है। जिससे सरकार को नियमित आय हो रही है? ऐसा कुछ भी नजर नही आता है। कर्ज का ब्याज अदा करने के लिये कर्ज लेना पड़ रहा है। प्रदेश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है रोजगार कार्यालयों में दर्ज संख्या के अनुुसार यह आंकडा 8,24,478 है। इसके मुताबिक इनको बेरोजगारी भत्ता देने के लिये 800 करोड़ से अधिक का बोझ सरकार पर पडे़गा। लेकिन यह बेरोजगारी भत्ता देने से समस्या हल हो जायेगी? क्या इनके लिये रोजगार के अवसर नही पैदा करने पडेंगे? इस समय सरकार ही प्रदेश में रोजगार का सबसे बडा स्त्रोत है हर व्यक्ति रोजगार देखता है। सरकार के पास अपने कर्मचारियों की कुल संख्या कारपोरेट सैक्टर को मिलाकर तीन लाख के करीब है। प्रदेश के निजिक्षेत्र में भी करीब 2.50 लाख कर्मचारी है। ऐसे में सरकारी और निजि क्षेत्र में एक ही दिन में पुराने कर्मचारियो को निकालकर नये कर्मचारी भर्ती कर दिये जाये तो भी रोजगार कार्यालयों में दर्ज करीब आधा आंकड़ा बेरोजगारों का शेष रह जाता है इसका अर्थ है कि इस दिशा में जो भी नीति और नियम रहे हैं उन्हे तुरन्त प्रभाव से बदलने की आवश्यकता है।
आज प्रदेश में जितने भी प्रशिक्षण संस्थान खोले गये  है उनमें प्रशिक्षित युवाओं का अगर यह आंकलन किया जाये कि उनमें से कितनों को रोजगार उपलब्ध हो पाया है तो यह आंकडा भी 20% से नीचे ही रहता है। आज कौशल विकास के नाम पर भी जो योजना अमल में है उसमें भी कालान्तर में रोजगार मिल पायेगा इसको लेकर गंभीर शंकायें उठ खडी हुई हैं। क्योंकि सरकार की स्र्टाटअप येाजना से आकर्षित होकर जितने लोग इसमें आये थे उसको लेकर जो सर्वे हुए हैं उनकी रिपोर्ट के मुताबिक जो आंकड़े आये  हैं उनमें सफलता का प्रतिशत दस से कम है। स्र्टाटअप छोड़कर यह लोग वापिस नौकरी की तलाश कर रहे  हैं। आईटी का जो सैक्टर तेजी से उभरा था उसमें सबसे ज्यादा छंटनी की तलवार चल पडी है। बैंकिग क्षेत्र में भी ऐसी स्थिति की आंशका उभर गयी है। इसलिये आज इस राष्ट्रीय परिदृश्य को समाने रखकर बेरोजगारी की समस्या का हल खोजना होगा। इस संद्धर्भ में कृषि से बड़ा कोई क्षेत्र नही है। जिसमें रोजगार के अवसर अन्य क्षेत्रों से कहीं अधिक हैं। लेकिन इस क्षेत्र की ओर सबसे कम ध्यान दिया जा रहा है। कृषि को उद्योग का दर्जा देकर उसके उत्पादों को मुल्य निधार्रण ओद्यौगिक उत्पादों के समकक्ष लाना होगा। मूल्य निर्धारण में अप्रंसागिकता के कारण आज कृषि को अन्तिम विकल्प के रूप में लिया जाता है जबकि रोजगार के चयन में कृषि को पहली पंसद बनाये जाने की आवश्यकता है।

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