शिमला/बलदेव शर्मा
मुख्यमन्त्री सिंह वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला को दो माह के लिये प्रदेश की शीतकालीन राजधानी बनाने का ब्यान दिया है। मुख्यमंत्री का यह ब्यान हकीकत में बदल पाता है या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि 2017 चुनावी वर्ष है और चुनावों के नाम पर राजनेता हर कुछ ब्यान देते हैं जिनका हकीकत से कोई वास्ता नही होता है। वीरभद्र सिंह ने भी यह ब्यान मन्त्रीमण्डल की बैठक के बाद दिया है और यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या इस पर मन्त्री परिषद में कोई विचार हुआ है या नही। क्योंकि यदि
इस समय शिमला प्रदेश की राजधानी है और अंग्रेजी हकूमत ने जब शिमला बसाया था उस समय उनके दिमाग में इसे राजधानी नगर नही बल्कि एक पर्यटक स्थल बनाने का नक्शा था। एक पर्यटक स्थल के हिसाब से ही यहां के लिये बिजली पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का ढ़ाचा तैयार किया गया था। लेकिन जब से शिमला को एक नियमित रूप से राजधानी नगर बनाया गया है। तब से लेकर आज तक शिमला का जितना प्रसार हुआ उसके मुताबिक आज यहां की आवश्यक सेवाओं का सारा प्रबन्धन बुरी तरह से चरमरा गया है। इस बार की बर्फबारी ने इसका तल्ख अहसास भी करवा दिया है। इस वर्ष बर्फबारी में आवश्यक सेवाओं के तहस-नहस हो जाने के कारण हर प्रभावित व्यक्ति ने प्रशासन और शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को कोसा है। बहुत संभव है कि इस स्थिति की व्यवहारिक गंभीरता को स्वीकारते हुए ही वीरभद्र ने यह ब्यान दिया हो। क्योंकि राजधानी नगर में जो भी होगा उसमें हर वर्ष नये निमार्ण होगें ही और उनके लिये आवश्यक सेवाओं का प्रबन्धन भी अनिवार्यता रहेगी ही। परन्तु आज शिमला नये निमार्णों और प्रबन्धनों का बोझ उठा पाने के लिये सक्षम नही रह गया है। आज शिमला के आधे से ज्यादा हिस्से में हर घर तक एेंबुलैन्स और फॉयर टैण्डर नहीं पहुंच पाता है। पार्किंग की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि नयी गाड़ी खरीदने से पहले पार्किंग की उपलब्धता का प्रमाणपत्र देना होगा। इसके बिना नयी गाड़ी के पंजीकरण पर रोक है। शिमला में एक लम्बे अरसे से अवैध निर्माण होते आ रहे हैं जिनके लिये नौ बार रिरटैन्शन पॉलिसियां लायी गयी हैं। अब तो अवैध निमार्णों का प्रदेश उच्च न्यायालय तक ने कड़ा संज्ञान लिया है और अवैधता के लिये जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने तक निर्देश दे रखे हैं।
इस परिदृश्य में आज यदि निष्पक्षता से आकलन किया जाये तो व्यवहारिक रूप से शिमला को आगे लम्बे अरसे तक राजधानी बनाये रखना संभव नही होगा। इस समय शिमला स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद की जा रही है। भारत सरकार भी इसके लिये खुला आर्थिक सहयोग दे रही है। स्मार्ट सिटी की अवधारणा पुराने शहरों पर लागू नही होती है। इस अवधारणा के तहत नया ही शहर बसाया जाना होता है। क्योंकि स्मार्ट सिटी के लिये हर घर तक सीवरेज ऐन्बुलैन्स और फायर टैण्डर का पहुंचना आवश्यक है। इसी के साथ हर घर की अपनी पार्किंग होनी चाहिये। इन बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य और शॉपिंग कम्पलैक्स आदि आते हैं। आज शिमला के हर घर को यह सुविधाएं उपलब्ध होना व्यवहारिक रूप से ही संभव नही है चाहे इसके लिये जितना भी निवेश क्यों न कर लिया जाये।
ऐसे में जब आज स्मार्ट सिटी बनाई जानी है तो उसके लिये यह बहुत आवश्यक और व्यवाहारिक होगा कि प्रदेश के किसी केन्द्रिय स्थल पर स्मार्ट सिटी की अवधारणा पर एक राजधानी नगर ही बसाने का प्रयास किया जाये। क्योंकि शिमला में बर्फ के मौसम में करीब तीन महीने और बरसात में दो महीने के लिये सामान्य जनजीवन में बाधा आती ही है। इससे पूरा शासन और प्रशासन प्रभावित होता है। आज शिमला में आवश्यक सेवाओं को मैन्टेन करने के लिये ही प्रतिवर्ष सैकड़ों करोड़ खर्च हो रहे हैं जो कि पूरी तरह से अनुत्पादिक खर्चा है। इसलिये आज सारे
दूसरी राजधानी की आवश्कता
राजनीतिक और उनके नेतृत्व को दलगत हितों से ऊपर उठकर इस पर विचार करना चाहिये। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने चाहे जिस भी मंशा से सर्दीयों के दो माह के लिये धर्मशाला शीतकालीन राजधानी बनाने की बात की हो लेकिन उसमें अपरोक्ष में यह स्वीकार्यता तो है ही कि शीतकाल के लिये राजधानी के रूप में शिमला सक्षम नहीं रह गया है। धर्मशाला में जब विधानसभा भवन बनाया गया था तब उसके पीछे शुद्ध रूप से राजनीतिक स्वार्थ रहे हैं अन्यथा जिस भवन का वर्ष में इस्तेमाल ही एक सप्ताह भर होना है उसके लिये इतना बड़ा निवेश किया जाना कतई जायज नही ठहराया जा सकता वह भी तब जब सरकार को हर वर्ष एक हजार करोड़ से अधिक का कर्ज लेना पड़ रहा हो। इसलिये मेरा सुझाव है कि अब जब स्वंय वीरभद्र सिंह ने यह बात छेड़ दी है तो उसे आगे बढ़ाने के लिये सबको आगे आना चाहिये। अन्यथा आने वाली पीढीयां वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व को बराबर कोसती रहेंगी।