Thursday, 18 September 2025
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क्या कालेधन का आंकड़ा जारी होगा

 शिमला/बलदेव शर्मा 

2014 के लोक सभा चुनावों की तैयारीयों के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उस समय एक स्ट्रैटेजिक एकशन कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी का अध्यक्ष डा0 सुब्रमण्यम स्वामी को बनाया गया। उस कमेटी में डा0 स्वामी के अतिरिक्त रा, सैन्य खुफिया विभाग और आई वी आदि के सेवानिवृत अधिकारी शामिल थे। उस कमेटी ने यह पाया था कि देश में जाली नोट एक बड़ी समस्या बन चुके हैं और इस समस्या से निपटने के लिये नोटबंदी ही एक कारगर कदम हो सकता है। आज नोटबंदी का फैंसला उसी कमेटी की सिफारिशों का परिणाम है। नोटबंदी से पहले स्वैच्छा से आय घोषणा योजना लायी गयी। यह सारे कदम कालेधन और जाली करंसी के चलन को बन्द करने के लिये उठाये गये है। सिद्धान्त रूप से इस पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि इन समस्याओं से निपटने के लिये इससे बेहतर और कोई कदम नहीं हो सकता था। राजनाथ सिंह द्वारा पार्टी के अन्दर ऐसी कमेटी का गठित किया जाना डा0 स्वामी ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया है। 

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी के भीतर जब इस तरह की चर्चा एक कमेटी के रूप मे रह चुकी है जिस पर अब अमल किया गया है। तो निश्चित है कि सरकार के पास इस फैंसले को सफल बनाने के प्रयास करने के लिये पर्याप्त समय था। लेकिन जिस ढंग से इस पर अमल किया गया है उससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि इस दिशा मे तैयारियों में भारी कमी रही है। तैयारीयों की कमी ही विपक्ष का आरोप है और इसी कमी के कारण इसके घोषित वांच्छित परिणाम मिलने पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। क्योंकि नयी करंसी अभी 8 नवम्बर के बाद बाजार में बैंकों में आयी है लेकिन इसी के साथ जाली करंसी फिर बाजार में आ गयी और पकड़ी गयी है। कालाधन पांच सौ और हजार के नोटों के रूप में लोगों ने जमा कर रखा था यह धारणा थी लेकिन आज नयी करंसी में भी करोड़ो लोगों के पास छापो में मिला है। कालेधन और जाली नोटों का आतंकी गतिविधियों मे प्रयोग होता था यह भी धारणा थी। नोटबंदी के बाद आंतकी घटनाओं में कुछ कमी अवश्य आयी है लेकिन यह कितने दिनों तक बनी रहेगी कहना कठिन है क्योंकि कालाधन और जाली नोट नयी करंसी में भी सामने आ गये है
नोटबंदी से पैदा होने वाली कठिनाईयां पचास दिन बाद समाप्त हो जायेंगी। इस वायदे के साथ प्रधानमन्त्री ने देश की जनता से पचास दिन का समय मांगा था। अब यह समय पूरा हो गया है लेकिन अभी भी बैंको से निकासी की सीमा चैबीस हजार ही है। यह सीमा कब बढ़ती है कितनी बढ़ती है आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। मंहगाई में कितनी और कब कमी आती है अभी यह स्पष्ट नही हो पा रहा है क्योंकि नोटबंदी के बाद पैट्रोल और डीजल की कीमतें दो बार बढ़ गयी है। इसलिये कीमतों के कम होने की संभावना नही के बराबर है। लेकिन कालाधन धारकों के खिलाफ कारवाई का जो वायदा किया गया था उसके परिणाम कब सामने आते है अब जनता को इसका इन्तजार है। पांच सौ और एक हजार के नोटों के रूप में 15.3 लाख करोड़ की करंसी बाजार में होने के आंकडे़ सामने आये है। नोटबंदी की घोषणा के बाद 8 नवम्बर से इन नोटों का चलन बन्द हो गया। 8 नवम्बर के बाद बैकों से किसी को पुराना नोट जारी नहीं हुआ यह स्पष्ट है। इसके बाद पुराना नोट या तो बैक में आकर बदला गया या फिर खाते में जमा किया गया। 30 दिसमबर तक 15-16 लाख करोड़ के पुराने नोट बैंकों में वापिस आने का अनुमान है। इसका अधिकारिक आंकडा अभी तक जारी नही हुआ है। 27 दिसम्बर तक यह आंकडा 11.5 लाख करोड़ का रहा है। अब जब इतनी संख्या में यह पुराने नोट बैंक में वापिस आ गये हैं तो स्पष्ट है कि इसी में कालाधन और जाली नोट भी शामिल है जो आंकडे चर्चा मे है  उनके मुताबिक 1.5 से 2 लाख करोड़ के करीब जाली नोट है। यह आंकडे जो भी रहे हो इसमें महत्वपूर्ण यह है कि बैंको के पास जो भी पुराने नोट वापिस आये है वह सारा कैश लोगोें के घरों में मौजूद था। अब यह सारा पैसा वापिस आ गया है तो पहचान करना आसान होगा कि इसमें से कितना कालाधन है और किसका है। क्योंकि यह पैसा बैंक में तो था नहीं घरों में था। घरों में इतना कैश इसलिये था क्योंकि इस पर टैक्स नही दिया गया था और टैक्स न देने के कारण कालाधन था। किसके पास टैक्स की सीमा से ज्यादा पैसा था इसकी पहचान करके यदि उसे सजा नही दी जाती है तो फिर प्रधानमन्त्री पर से लोगों का विश्वास समाप्त हो जायेगा। क्योंकि जब कालेधन वाले कोे सजा ही नही मिलेगी तो फिर उसके खिलाफ कारवाई क्या हुई क्योंकि यदि सही मायनों में कालेधन को समाप्त करना है तो यह देश के सामने लाना होगा कि सोने और अचल संपत्ति के रूप मे किसके पास क्या है।
अब जो विधान सभा चुनाव होने जा रहे  है तो कालेधन पर की गयी कारवाई के असर की परीक्षा होगी। कौन सा राजनीतिक दल और कौन सा प्रत्याक्षी कितना खर्च करता है और यह खर्च कितना डिजिटल या चैक से होता है क्योंकि निकासी की सीमा चैबीस हजार रहने से एक माह में केवल 96000 ही बैंक से मिल सकता है चाहे वो पार्टी हो या प्रत्याक्षी और इतने से चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है। यह चुनाव आयोग और सरकार के लिये भी कड़ी परीक्षा होगा।

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