Thursday, 18 September 2025
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पुराने नोट जमा करवाने की सुविधा से किसे लाभ मिल रहा है

शिमला/बलदेव शर्मा 

आठ नवम्बर को रात आठ बजे प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने यह घोषणा की कि आज रात बारह बजेे के बाद पांच सौ और एक हजार के नोट लीगल टैण्डर नहीं रहेंगे। यह केवल कागज के टुकड़े रह जायेंगे। इन नोटों के स्थान पर पांच सौ और दो हजार के नये नोट जारी किये गये है। प्रधान मन्त्री ने इस फैंसले को कालाधन और उसके धारकों के खिलाफ बडा़ कदम बताते हुए आम को भरोसा दिलाया था कि इस फैंसले से जो व्यवहारिक पेरशानीयां सामने आयेंगी वह पचास दिन में समाप्त हो जायेंगी। मोदी ने देश से पचास दिन का बिना शर्त सहयोग मांगा था और देश ने यह सहयोग उन्हें दिया है। प्रधान मन्त्री नेे यह भी दावा किया गया था कि इससे मंहगाई कम होगी। आठ नवम्बर को यह घोषित नही किया था कि पुराने नोट कितने समय तक कहां कहां उपयोग में रहेंगे। इसके लिये समय -समय पर नियमों में संशोधन होता रहा और पुराने नोटों के उपयोग की सहूलियत मिलती रही। इसी में कालेधन के धारकों को भी यह सुवधा दी गयी कि वह भी अपना धन घोषित कर सकते है उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जायेगी उनसे कुछ पुछा नहीं जायेगा। केवल उनके लिये टैक्स आदि की मात्रा बढ़ा दी गयी। इस सब में जो फैसला नहीं बदला वह यही कि पुराने नोटों का चलन बाजार के लिये बन्द हो गया। अब पुराने नोट केवल रिजर्व बैंक की धरोहर रह जायेंगे। पुराने नोटों को जमा करवाने की समय सीमा में जो बढौत्तरी होती रही है उसके लिये यह तर्क आता रहा है कि रिजर्व बैंक ने पांच सौ और हजार के जितने नोट प्रिंट किये थे वह सारे वापिस नही आये हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब पुराने नोटों की वैधता ही आठ नवम्बर से समाप्त हो गयी है तब रिजर्व बैंक इन्हे अपने पास लेकर क्या करेगा । 

नोटबंदी कालाधन समाप्त करने के लिये लायी गयी। कालाधन वह धन होता है जिस पर आयकर नही दिया जाता है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही है कि आयकर छिपानेे का प्रयास ही कालेधन का जनक बन जाता है। अन्यथा हर खरीद -फरोख्त पर हम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से 56 करों की अदायगी करते है। यह कर उन पर भी बराबर लागू रहते हैं जिनकी आय आयकर के दायरेे में नही आ पाती है। इस समय भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक तीन प्रतिशत लोग आयकर अदा कर रहें हैं। 92 प्रतिशत वह लोग है जिनकी आय ही दस हजार या इससे कम है। इनके पास आयकर से छिपाने के लिये है ही कुछ नहीं । इस तरह केवल पांच प्रतिशत लोग बच जाते हैं जो आयकर की चोरी करके कालाधन अर्जित कर रहें हैं। इन पांच प्रतिशत कालाधन धारकों के खिलाफ कारवाई के लियेे नोटबंदी लायी गई। यहां यह भी विचारणीय है कि करंसी के मुद्रण, नियमन और संचालन की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है। रिजर्व बैंक एक स्वायतः संस्था है। उसका हर फैसला उसके निदेशक मण्डल में पूरी तरह गहन विचार के साथ लिया जाता है और तब उस फैंसले से सरकार को सूचित किया जाता है। करंसी के मुद्रण में यह सुनिश्चित किया जाता है कि उतनी ही करंसी प्रिंट की जायेगी जितना ही आपके पास गोल्ड का धातू है इसलिये विश्व भर में गोल्ड ही इसका मानक बन चुका है। इसका अर्थ है कि गोल्ड के सुरक्षित भण्डार के अनुपात में ही करंसी का मुद्रण होता है। 

अब जब नोटबंदी की गयी तब यह आंकडे सामने आये की पांच सौ और हजार के नोट कुल करंसी के 86 प्रतिशत है। अब जब 86 प्रतिशत करंसी का चलन वैध नही रहा तब यह पुराना किसी के घर तिजोरी में बन्द रहे या रिजर्व बैंक के पास रहे उसकी कीमत तो एक कागज के टुकडे से अधिक नही है। फिर 86प्रतिशत करंसी का अनुपातित गोल्ड रिजर्व तो सुरक्षित पडा ही है। इसमें नुकसान तो केवल छपाई और कागज की कीमत का ही है। कालाधन और बेनामी संपत्ति की घोषणा की समय सीमा 30 सितम्बर को समाप्त हो गयी थी । अब नोटबंदी में आम आदमी को जो 92प्रतिशत के आंकडे में आता है उसको पुराने नोट बदलने के लिये काफी समय मिल गया है। अब इस समय इन कालाधन धारकों को पुराने नोट जमा करवानेे की सुविधा क्यों दी जा रही है। इस सुविधा से कालाधन धारकों को तो लाभ ही मिल रहा है इससे उनका नुकसान तो नहीं हो रहा है। क्या यह सुविधा देने से कालेधन के खिलाफ कारवाई के सारे दावों पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। अब जब छापों में नये नोट फिर से इन कालाधन धारकों के पास मिल रहें हैं तो उससेे भी यही प्रमाणित होता है कि इन लोगों पर इस फैसले का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। इसमें यदि पुराने नोटों को बदलने के लिये एक तय सीमा के बाद छूट न दी जाती और बिजली, पानी टैलिफोन आदि सारी सेवाओं के बिलों के भुगतान में यह सुविधा देने की बजाये इन बिलों का भुगतान ही पाचस दिन किश्तों में लिया जाता तो उसके परिणाम कुछ और ही होते। अब पुराने नोटों को जमा करवाने के समय को बढ़ाने से नोटबंदी का पूरा फैसला सवालों के घेरे में खड़ा हो जाता है।

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