शिमला/बलदेव शर्मा भ्रष्टाचार और कालेधन पर कारवाई करना आसान नहीं है यह नोटबंदी के बाद पैदा हुए हालात से साफ सामने आ गया है। नोटबंदी कालेधन के खिलाफ एक कड़ा और सही कदम है यह संसद के अन्दर सारा विपक्ष भी सिद्धांत रूप से स्वीकार कर चुका है। नोटबंदी पर जिस ढंग से अमल किया गया है उसके कारण
नोटबंदी पर उभरे गतिरोध से संसद सत्र स्वाह हो गया है। इसमे भी हद तो यह हो गयी कि लोकसभा में प्रचण्ड बहुमत लेकर सरकार बनाने के बावजूद प्रधानमंत्री यह कह रहे हंै कि उन्हें संसद में बोलने नही दिया जा रहा है। इसलिये उन्होने जनता से सीधे संवाद का रास्ता चुना है। लेकिन जनता से सीधे संवाद मे प्रधानमंत्री जो बोल रहे है वह व्यवहार में सामने नही आ रहा है। प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि पचास दिन में सारी कठिनाईयां समाप्त हो जायेंगी। लेकिन अब पचास दिन के बाद धीरे-धीरे समाप्त होने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस फैसले से कालाधन रखने वाले परेशान हो गये हैं परन्तु अभी तक कालाधन रखने वाले किसी की भी मौत नही हुई है मौत केवल लाईन में लगने वालों की हुई है। आम आदमी को शादी व्याह के लिये 2.50 लाख कैश ड्रा की सीमा लगा दी गयी फिर उसमें भी कई और शर्तें लगा दी गयी। जबकि जिन बडे़ लोगों ने शादी समारोहों पर सैंकडों करोड़ खर्च कर दिये उन्होने कितना भुगतान डिजिटल किया है इस पर उठे सवालों का कहीं से कोई जवाब नही आ रहा है।
दूसरी ओर विपक्ष में राहुल गांधी नोटबंदी को सबसे बड़ा घोटाला करार देते हुए यह कह रहे हंै कि उन्हे संसद में बोलने नही दिया जा रहा है। राहुल गांधी ने यह भी दावा किया है कि उनके पास प्रधान मन्त्री मोदी के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं जिन्हें वह संसद मे रखना चाहते हंै। लेकिन यदि संसद नही चल रही है तो राहुल मोदी की तर्ज पर जनता से सीधा संवाद स्थापित करके वहां इस घोटाले का पर्दाफाश क्यों नही करते? क्या देश संसद से बड़ा नही है? संसद और सरकार दोनों ही देश की जनता के प्रति जवाबदेह हैं। लेकिन राहुल का जनता के मंच को न चुनना कहीं न कहीं यह इंगित करता है कि वह इस पर राजनीति पहले करना चाहते है और राजनीति की गंध आते ही राहुल गांधी का पक्ष कमजोर हो जाता है। जबकि इसमे केजरीवाल राहुल से ज्यादा स्पष्ट हैं क्योंकि नोटबंटी को घोटाला करार देकर इस पर एक पत्र जनता के नाम जारी करके उसमें इस फैसले के बाद 63 उद्योगपतियों के 6000 करोड़ बट्टे खातों में डालने का तथ्य उजागर कर दिया। केजरीवाल के इस आरोप का खण्डन नही आ पाया है।
इस परिदृश्य में अन्त में जो स्थिति उभरती है उसमे यह स्पष्ट हो जाता है कि नोटबंदी कालेधन के खिलाफ जितना सख्त कदम है उसे उसी अनुपात में असफल बनाया जा रहा है। इसमें यह सवाल उभरता है कि जिन लोगों पर इस फैसले पर अमल करवाने की जिम्मेदारी थी क्या उनका इस बारे में आकलन ही सही नही था या फिर वह स्वयं इसके खिलाफ थे। आज इस फैसले पर हुए अमल से देश के हर कोने में रोष है क्योंकि हर जगह लोगों को नोट लेने में लाईनों में लगकर खाली हाथ लौटना पड़ा है। इसलिये रोष को शांत करने के लिये हर बैंक की हर शाखा तक पहुंच कर कारवाई सुनिश्चित करनी होगी क्योंकि नोटों के वितरण की जिम्मेदारी इन्ही पर थी और इस व्यवस्था के संचालन की जिम्मेदारी सरकार पर है। इसलिये अन्तिम जवाब सरकार से ही आना है।