शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने ‘वन रैंक वन पैन्शन’ योजना जिस ढंग से लागू की है उससे देश के पूर्व सैनिक पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं है। इसके लिये उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से तेज कर दिया है। वह फिर से जन्तर-मन्तर पर धरने प्रदर्शन पर बैठ गये हैं। इस योजना के लागू करने मे क्या त्राटियां है। इसको लेकर सरकार और पूर्व सैनिकों में मतभेद हो सकते हैं। प्रशासनिक तन्त्रा के सामने भी इस संद्धर्भ में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। जिन्हें सुलझाने में समय लग सकता है। लेकिन यह तो पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि अभी तक सारे पूर्व सैनिकों को पैन्शन के बकाये की पहली किश्त भी नहीं मिल सकी है। जिस पूर्व सैनिक राम किश्न ग्रेवाल ने इस पर आत्महत्या कर ली उसे भी पहली किश्त तक नही मिल पायी है। आज पूर्व सैनिकों की तर्ज पर अर्धसैनिक बल भी अपने लिये उन्ही के समान सारे लाभ मिलने की मांग लेकर आ गये हैं। हो सकता है कल कोई और वर्ग भी ऐसी ही मांग लेकर सामने आ जाये। पूर्व सैनिक पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय वन रैक वन पैन्शन की मांग करते आ रहे हैं। बल्कि इसी मांग के कारण पूर्व सैनिकों को सेना से वापसी के बाद सिविल में भी नौकरीपाने का प्रावधान किया गया और इस नौकरी मे सेना में की हुई नौकरी को भी वरियता के लिये शामिल कर लिया गया। आज इस नौकरी पाने और वरियता भी कायम रहने के सरकार के दोहरे लाभ के नियम को सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया है। लेकिन सरकार पूर्व सैनिकों के प्रति सदैव संवेदनशील और गंभीर रही है इसमें भी कोई दो राय नही है।
परन्तु आज जो पूर्व सैनिक सन्तुष्ट नही हैं इसके लिये लोकसभा चुनावों से पहले उनसे किया गया वायदा है। यह वायदा भी स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। भले ही वह उस समय प्रधानमंत्री नही थे लेकिन आज प्रधान मन्त्री हैं इसलिये चुनावों से पूर्व किये गये हर वायदे को तय समय के भीतर पूरा करने की जिम्मेदारी भी उन्ही की है। फिर वह रह मंच पर यह दावा भी करते आ रहे हैं कि उन्होने वन रैंक वन पैन्शन योजना को पूरी तरह लागू कर दिया है जबकि पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वर्ग आज भी इसके लिये आन्दोलन की राह पर है। ऐसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि आपके राजनीतिक विरोधीयों को आपके दावों में कहीं भी कोई भी अपवाद सामने मिलता है तो उस पर विरोध के स्वर तो मुखर होंगे ही। आज रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या सरकार और प्रधान मन्त्रा के दावों के विपरीत एक ऐसा अपवाद बन कर सामने आयी जिसे नजर अन्दाज कर पाना संभव ही नही है। फिर इस समय भारत पाक सीमा पर जिस तरह से तनाव चल रहा है उससे ही सैनिक और पूर्व सैनिक सबके लिये एक चर्चा और चिन्ता का विषय बन चुके हैं। क्योकि सरकार ने भी सर्जिकल स्टा्रईक को जिस तरह से एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देश के सामने प्रचारित किया उसको लेकर भी प्रतिक्रियाएं आ गयी थी। सरकार पर सेना की उपलब्धि पर राजनीति करने का आरोप लगा। सरकार सर्जिकल स्टा्रईक को विधानसभा चुनावों में लाभ लेने का प्रयास कर रही है यह भी आरोप लगा। सरकार ने इन आरोपों का खण्डन करते हुए विपक्ष पर ओच्छी राजनीतिक करने का आरोप लगाया।
इस परिदृश्य में जब एक पूर्व सैनिक आत्महत्या करेगा और उसका सुसाईट नोट तथा परिजनों से हुई अन्तिम बातचीत का रिकार्ड सामने आ जायेगा तो स्वाभाविक है कि विपक्ष इस मुद्दे को हाथ से नहीं जाने देगा। विपक्ष ने ऐसा ही किया राहूल के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला। आम आदमी पार्टी और केन्द्र में तो वैसे ही अच्छे संबध नहीं है फिर जब आम आदमी पार्टी की किसान रैली में राज्यस्थान के एक किसान ने आत्महत्या की थी तो उस पर भाजपा ने भी ऐसी ही राजनीति की थी। अब आप ने भी भाजपा को उसी की भाषा में जबाव दिया है। लेकिन इसमें दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से सैनिक के परिजनों से दुर्व्यवहार किया है उसको किसी भी तर्क से जायज़ नही ठहराया जा सकता। इस पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर मोदी के मन्त्री जनरल वी.के.सिंह और हरियाणा के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर ने ब्यान दिये है। उससे निश्चित रूप से सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठेंगे ही। दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से राहूल गांधी और अरविन्द केजरीवाल के साथ व्यवहार किया है। उसकी अपेक्षा लोकतन्त्र में किसी सरकार से नही की जा सकती। विरोध के स्वरों को पुलिस बल की ताकत से नही दबाया जा सकता है। सरकार के इस आचरण से जनता में यह सन्देश गया है कि सरकार अपनी असफलताओं को छुपाने के लिये बल प्रयोग का सहारा ले रही है और लोकतन्त्र में यह सब अब स्वीकार्य नही हो सकता। इसी के साथ देश की राजनीतिक ज्मात को यह भी समझना होगा कि चुनावी लाभ के लिये घोषनाएं और दावे करने से पूर्व उन्हें व्यवहारिक पक्षों को सामने रखना होगा। अन्यथा हर दावे का अन्तिम परिणाम इसी तरह का रहेगा और वह लोकतन्त्र के लिये घातक सिद्ध होगा ही।