शिमला। सरकारी भूमि से अवैध कब्जे हटाने का लेकर आये प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेशों पर वन विभाग ने पुनः अपनी कारवाई शुरू कर दी है। सरकारी भूमि पर से अवैध कब्जे हटाने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी दो बार आदेश पारित कर चुका है। जस्टिस दलबीर सिंह की खण्ड पीठ के स्पष्ट आदेश हैं कि अतिक्रमणकारी केवल अतिक्रमणकारी है और इस नाते उसका कोईे अधिकार नहीं रह जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के बाद उच्च न्यायालय के भी ऐसे लोगांे को राहत देने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं। अब जब नये सिरे से उच्च न्यायालय के आदेशो पर कारवाई शुरू हुई है तब से फिर लोग इसके विरोध में खडे़ होने शुरू हो गये हैं। उच्च न्यायालय ने इस विरोध का संज्ञान लेते हुए इसेे गैर कानूनी कारर दे दिया है। उच्च न्यायालय के कडे़ रूख के बाद यह मामला सदन में भी गूंजा विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने अतिक्रमणकारियों का पक्ष लेते हुए छोटे अतिक्रमणकारियों के हक में सरकार द्वारा नीति बनाये जाने कि मांग रखी है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने तो उच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत स्टैण्ड लेते हुए यहां तक वन विभाग के अधिकारियों को कह दिया कि पहले बड़ो के खिलाफ कारवाई करो। छोटों के खिलाफ वह कारवाई नहीं होने दंेगे। इन छोटों को गरीब भूमिहीन के रूप में परिभाषत करते हुए पक्ष और विपक्ष दोनों का तर्क है कि इन लोगों ने थंोडी़-थोड़ी भूमि का अतिक्रमण करके अपनी रोजी रोटी का प्रबन्ध किया है।
सरकार इन नाजायज कब्जा धारकों के लिये किस हद तक उच्च न्यायालय से टकराती है और उच्च न्यायालय इसमें कितनी राहत देता है। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यहां सरकार से कुछ सवाल पूछे जाने आवश्यक हैं। स्मरणीय है कि 1975 में आपातकाल के दौरान केन्द्र सरकार ने एक नीति बनाकर किसी को भी भूमिहीन नही रहने दिया था। इस नीति के तहत गांवों में हर भूमिहीन को दस दस कनाल जमीन दी गयी थी। शहरी क्षेत्रों में भी ऐसे भूमिहीनों को छोटी दुकान आदि बनाने के लिये जमीनें दी गयी थी। राजधानी शिमला में भी सैंकडो की संख्या में ऐसे आंवटन उस दौरान हुए थे जो आज कई-कई बार बेचे जा चुके हैं। वर्ष 2002 में तत्कालीन धूमल सरकार ऐसे अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये एक नीति लेकर आयी थी। इस नीति के तहत ऐसे अवैध कब्जा धारकों से वाकायदा आवेदन मांगे गये थे और उस समय 1,67,339 मामलें अवैध कब्जों के समाने आये थे। प्रदेश उच्च न्यायालय ने उस समय भी इस नीति का अनुमोदन नहीं किया था। आज उच्च न्यायालय अपने उसी स्टैण्ड पर है और अब तो सर्वोच्च न्यायालय भी ऐसी अवैधता के खिलाफ आदेश पारित कर चुका है। आज पर्यावरण और हरित कवर को बचाने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चिन्ता और चिन्तन चल रहा है। यहां भी एनजीटी इस दिशा में पूरी सक्रियता के साथ आ खड़ा हुआ है। लेकिन हमारे राजनेता इस सबके बावजूद ऐसी अवैधता के पैरोकार बन कर सामने आ रहे हैं क्यों?
हिमाचल प्रदेश में पिछलें करीब तीस वर्षो में बीस वर्ष वीरभद्र सत्ता में रहे है और दस वर्ष प्रेम कुार धूमल। इसी अवधि में राजधानी शिमला में निर्माण नीतियों/नियमों को ढेंगा दिखाकर सैंकड़ो अवैध निर्माण हुए हैं। इन अवैध निर्माणों को नियमित करने के लिये दोनों के शासनकाल में रिटैन्शन पालिसीयां आयी और आज सरकारी भूमि पर हुए लाखों अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये यह दोनों नेता सारे आपसी विरोधों के बाद एक स्वर हो गये हैं। पांच-दस बीघा के अतिक्रमणकारी को छोटा करार देकर उन्हे नियमित करने की वकालत की जा रही है। मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि पहले बड़ो के खिलाफ कारवाई करो। लेकिन वह यह भूल रहें है कि इन बड़ो के खिलाफ कारवाई आप ही ने तो करनी है और यह कब्जे भी आप ही के सामने हुए हैं और तब आप आंखे बन्द करके बैठे रहे है। इसलिये आज आपसे यह अपेक्षा है कि आप ऐसी अवेैधता के पक्षधर बनने की बजाये उसके खिलाफ कारवाई करने के लिये सामने आयें।